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बुधवार, दिसंबर 09, 2009

मंत्र की परीभाषा

Mantra ki Paribhasha/Pareebhasha
परिभाषा

मंत्र की परीभाषा: मंत्र उस ध्वनि को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षरों (शब्दों) के समूह से बनता है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में दो प्रकार कि ऊर्जा से व्याप्त है, जिसका हम अनुभव कर सकते है, वह ध्वनि उर्जा एवं प्रकाश उर्जा है। एवं ब्रह्माण्ड में कुछ एसी ऊर्जा से व्याप्त भी व्याप्त है जिसे ना हम देख सकते है नाही सुन सकते है नाहीं अनुभव कर सकते है।

आध्यात्मिक शक्ति इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र सिर्फ़ ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते सकते हैं, ध्वनियाँ तो मात्र मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं जिसे हम सुन सकते हैं।

ध्यान की उच्चतम अवस्था में व्यक्ति का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से ब्रह्माण्ड की अलौकिक शक्तिओ के साथ मे एकाकार हो जाता है।

जिस व्यक्ति ने अन्तर ज्ञान प्राप्त कर लिया है. वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' के महत्व और भेद को जान सकता है।

प्राचीन ऋषियों ने इसे शब्द-ब्रह्म की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर व्यक्ति को मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर ने मे समर्थ हो सकता है.

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