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बुधवार, फ़रवरी 03, 2010

वास्तु सिद्धांत (भाग: २)

Vastu Siddhant Part: 2, Bhaga: 2

वास्तु सिद्धांत (भाग: २)


जिस भवन में प्रात:काल के अलवा दोपहर को भी सूर्य की किरणे प्रवेश करती हो, उस भवन मे रहने वाले व्यक्तिओ का स्वास्थ्य प्रतिकूल रेहता हैं। क्योकि दोपहर के समय भवन पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों नकारात्मक(अल्ट्रा वायलेट) होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होती हैं। इसी वजह से वास्तुशास्त्र में दक्षिण और पश्चिम की दीवारों को ऊंचा रखने का उल्लेख मिलता हैं।

दक्षिण और पश्चिम दिशाओं में उत्तर व पूर्व की तुलना में कम खिड़की-दरवाजे रखे जाते हैं, जिस्से भवन में रहने वाले सदस्य इन नकारात्मक ऊर्जा युक्त सूर्य किरणों के संपर्क में कम से कम रहें। जिस्से उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित जल स्रोतों पर सूर्य की किरणों का नकारत्मक प्रभाव पड़ने से बचाव किया जासकें।

जिस भवन का दक्षिण और पश्चिम (नैऋ त्य कोण), किसी भी प्रकार से नीचा हो या वहां किसी भी प्रकार का भूमिगत जल स्त्रोत होए जेसे का पानी की टांकी, कुआं, बोरवेल, सेप्टिक टैंक इत्यादि स्थित हो तो, वहां रहने वाले के असामयिक मृत्यु का शिकार होने की ज्यादा आशंका बनी रहती हैं। ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक सिद्धान्त एक विज्ञान हैं। घर की बनावट में ही वास्तु सिद्धान्त को अपना कर वास्तुदोषों को दूर किया जा सकता है।

क्योकि वास्तुदोष युक्त घरोमें कुछ समय उस भवन मे बिताने के बादमे जब घर में रेहने वाले व्यक्तिओ के भितर बिमारीया प्रवश कर लेती हैं। और डो. की दवाईया भी अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दिखा पाती एवं व्यक्ति वहा से भी निराश होजात है, तब व्यक्ति यंत्र, मंत्र, तंत्र, ज्योतिष, वास्तु, आदि के माध्यम से किसी भी प्रकार से चाहे कुछ कर के व्यक्ति रोगों से छुटकारा प्राप्त करना चाहता हैं।

एसे में व्यक्ति की सोच होती हैं, जब इतना कुछ कर लिया हैं कोइ विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो रहा तो क्यो ना इन्हे भी आजमा लिया जाये। शायद कुछ लाभ प्राप्त हो जाये?

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