सात फेरे और सात वचन
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (दिसम्बर-2010)
हिंदु संस्कृति में विवाह के समय वर-वधू पवित्र अग्नि के समक्ष सात फेरे के साथ में सात वचन लेते हैं जिसे आने वाले सात जन्मों तक दोनो को एक साथ इसी पवित्र रिश्ते में बंधे रहने का प्रतीक माना जाता हैं। इस विवाह विशेष अंक के साथ हम आपको इन सातो वचनो से अवगत करने का प्रयाश कर रहें हैं। विभिन्न हिंदू सभ्यता में विवाह में 4,5 और 7 फेरे लिये जाते हैं। इस सभ्यता के अनुरुप वचनो में उयोग में लाये जाने वाले मंत्रो में भी भिन्नता पाई जाती हैं।
विवाह के समय फेर इत्यादि आवश्यक कार्य संपम्म हो जाने पर भी विवाह संपन्न नहीं मानाजाता जब तक कन्या वर के वाम (बाऎं) भाग में नहीं आती। जबतक कन्या वर के वाम (बाऎं) भाग में नहीं आती तब उसे कुमारी ही मानाजाता हैं। एसे में विवाह को विधि विधान से संपन्न करने के लिये कन्या को वर से सात वचन माँगने का विधान बताया गया हैं। जिससे कन्या के भावी जीवन की सुख, सुरक्षा, मान-सम्मान, गरिमा-गौरव तथा अस्मिता की पूर्णता से रक्षा हो सके। वर द्वारा सात वचनों को स्वीकारने के पश्चात हिं कन्या निश्चिंत होकर भावी जीवन का प्रारम्भ करती हैं अर्थातः विवाह को संपन्न मानाजाता हैं। साधारण रुप से सात वचन को सप्तपदी रूप जानाजाता हैं।
प्राचीनकाल से सात वचनों का भारतीय समाज में अधिक महत्व रहा हैं। इस सात वचनों का तात्पर्य वर-वधू को श्रेष्ठ और सुखी दांपत्य जीवन की ओर प्रेरित करना होता हैं।
अपनी कन्या का विवाह करते समय हर माता-पिता के मन में यह आशंका अवश्य रहती हैं, कि विवाह पश्चात उनकी पुत्री का दांपत्य जीवन कैसा व्यतीत होगा? ससुराल में सुख से रह पायेगी या नहीं? कन्या के माता-पिता की इसी आशंका को दूर करने के लिए ही हजारो पूर्व हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों द्वारा सात वचनों को रखा गया था। जिसके फलस्वरुप कन्या को विवाह पश्चात किसी कष्ट का सामना न करना पडे इस लिये कन्या अपने पति के वामांग (बाऎं) में आने से पूर्व उससे सात वचन मांगती हैं।
विवाह के पश्चयात पत्नि की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ उसकी अस्मिता तथा गरिमा की रक्षा करने का दायित्व भी पति का ही होता हैं। दांपत्य सम्बंधों में भी मधुरता, प्रेम, अनुराग, त्याग, समर्पण आदि कि भावना हो इसी उद्देश्य से इन वचनो को स्वीकार करना हीं नहीं उसे निभाना भी अति आवश्यक होता हैं।
हिंदु संस्कृति में वरवधू पवित्र अग्नि के सात फेरे लेते है। फेरे लेते समय वधू वर से सात वचन और वर वधू से पांच वचन मांगता हैं।
कन्या द्वारा वर से लिये जाने वाले सात वचन इस प्रकार हैं।
• प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृहणीयात
अर्थातः यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।
• द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृहणियात
अर्थातः दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।
• तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात
अर्थातः युवा, प्रौढ़ और वृद्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।
• चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृहणीयात
अर्थातः गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।
• पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृहणीयात।
अर्थातः गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।
• षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात
अर्थातः वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।
• सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि
अर्थातः मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।
इन वचनो में कन्या कहती हैं यदि आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।
वर द्वारा कन्या से लिये जाने वाले वचन इस प्रकार हैं।
उद्याने मद्यपाने च पितागृहगमनेन च
आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम!!
अर्थातः निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।
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