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रविवार, दिसंबर 05, 2010

कुंडली से जाने विवाह का सही समय

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कुंडली से जाने विवाह का सही समय


अक्सर बच्चों के बड़े होते ही माता-पिता को उनकी शादी के लिए चिंता होने लगती हैं। कि उनके बच्चों की शादी कब होगी। इश्चर द्वारा निर्मित इस सृष्टी में व्यक्ति के हर कार्य अपने निश्चित समय पर होते हैं। इसी प्रकार व्यक्ति कि शादी कब होगी, होगी भी या नहीं यह ईश्वर ने पहले से लिख कर रखा होता हैं। इस इश्चर द्वारा लिखे इस समय को यदि व्यक्ति चाहे तो किसी जानकार ज्योतिषी से अपनी जन्म कुंडली दिखवाकर विवाह के समय के बारे में जान सकता हैं। यदि जन्म कुंडली विवाह से संबंधित भाव में शुभ ग्रहों कि अच्छी स्थिती या द्रष्टि हों, जन्म कुंडली में अच्छे योग हो तो शीध्र विवाह के योग बनते हैं। जन्म कुंडली में विवाह से संबंधित भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो शादी विलंब से होती हैं।

• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों कर किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संबंध बना कर सप्तम भावमें उच्च का हों, तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष की आयु में होने कि अधिक संभावनाएं बनती हैं।
• कुंडली में सप्तम भाव में स्वगृही शुक्र हो और द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों, तो किशोर अवस्था या युवान अवस्था में हि व्यक्ति का विवाह होने के योग बनने लगते हैं।
• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में शुभ ग्रहों से लग्नेश व सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन या दृष्टि हो, विशेष कर गुरु का स्थान परिवर्तन या दृष्टि संबंध होने से कन्या का विवाह योग 18 से 20 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनाता हैं एवं पुरुष का विवाह योग 21 से 23 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनाता हैं।
• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह योग 21 वें वर्ष में होने की संभावना बनाता हैं।
यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में लग्नेश बलशाली हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो व्यक्ति का विवाह शीघ्र ……………..>>

विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता हैं। सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने कि अधिक संभावनाएं होती हैं।
इसके विपरीत यदि सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनों किसी भी प्रकार के पाप ग्रह के प्रभाव में हों तो विवाह में विलम्ब होने की संभावना बनती हैं। विवाह के समय का निर्धारण करने के लिये कुंडली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते हैं।
किसी व्यक्ति को जीवन में कितना वैवाहिक सुख मिलेगा यह सब कुंडली में बन रहे योग पर निर्भर करता हैं। यदि शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित होंता हो, और अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं।

कुंडली के योग विवाह समय को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
• यदि जन्म कुंडली में अष्टमेश पंचम भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती हैं।
• यदि जन्म कुंडली में सूर्य एवं चन्द्र का शनि से पूर्ण दृष्टि संबंध रखते हों तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते हैं।
• यदि सप्तम भाव का स्वामी सूर्य या चन्द्र दोनों में से कोई हो तभी इस प्रकार कि संभावना विशेष बनती हैं।
• यदि जन्म कुंडली में शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शुक्र से सप्तम भाव में शनि स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती हैं।

यदि जन्म कुंडली में शनि सप्तमेश होकर एकादश भाव में स्थित हों और एकादशेश दशम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 21 से 23 वर्ष में होने की संभावना ……………..>>


सप्तम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार विवाह समय का निर्णय:-
1. सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हों तो व्यक्ति का विवाह 24 से 26 वर्ष के मध्य होने की संभावना होती हैं।
2. चन्द्र सप्तमेश होने पर व्यक्ति का विवाह 21 से 22 वें वर्ष के मध्य होने की संभावना होती हैं।
3. मंगल सप्तमेश हो तो 24 से 27 के मध्य की आयु में विवाह ……………..>>

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