Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


बुधवार, दिसंबर 02, 2009

बजरंग बाण

Bajarang Baan
॥ बजरंग बाण ॥

॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

जैसे कूदि सिंधु महिपारा । सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता । शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर । अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

॥ दोहा ॥

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

कुछ संस्करणों में उपरोक्त दोहा "उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै"
के स्थान पर निम्न प्रकार से उल्लेखित किया गया है।

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान॥

हनुमान चालीसा

Hanuman Chalisa


||  हनुमान चालीसा ||


||  दोहा ||
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

||  चौपाई ||

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ ॥१॥

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥ ॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥ ॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥ ॥४॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।। ॥५॥

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥ ॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥ ॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥ ॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥ ॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥ ॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥ ॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥ ॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ ॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ ॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥ ॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥ ॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥ ॥१७॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ ॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥ ॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ ॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥ ॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥ ॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥ ॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥ ॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ ॥२५॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ ॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥ ॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥ ॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ ॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥ ॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥ ॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥ ॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥ ॥३३॥

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥ ॥३४॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥ ॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ ॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥ ॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥ ॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ ॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥ ॥४०॥

||  दोहा ||

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥


|  इति श्री हनुमान चालीसा सम्पूर्ण |

मूर्ति

Dev Poojan Me Vastu - Murti,

देव पूजन मे कुछ वास्तुशास्त्री घर मे पत्थरकी मूर्ति का अथवा मन्दिर का निषेध करते है।
वास्तवमे मूर्ति का निषेध नही है, पर एक बितेसे/१२ अंगुल अधिक ऊंची मूर्ति का निषेध है।*


अगुड्ष्ठपर्वादारभ्य वितस्तिर्यावदेव तु।
गृहेषु प्रतिमा कार्या नाधिका शस्यते बुधैः॥
                                            (मत्स्यपुराण २५८।५२)

अर्थान्त
"घरमे अंगूठके पर्वसे लेकर एक बित्ता परिमाणकी ही मूर्ति होनी चाहिये। इस्से बडी मूर्ति को विद्वानलोग घर मे शुभ नही बताते।"




शैलीं दरुमयीं हैमीं धात्वाघाकारसम्भवाम।
प्रतिष्ठां वै पकुर्वीत प्रसादे वा गृहे नृप॥
                                              (वृद्धपाराशर)

अर्थान्त:
"पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओंकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा घर या घर मन्दिर में करनी चाहिये।"
घर या घर मन्दिर में एक बित्ते से अधिक बडी पत्थर की मूर्तिकी स्थापना से गृहस्वामीकी सन्तान नहीं होती। उसकी स्थापना देव मन्दिर मे ही करनी चाहिये।


गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंखद्वयं तथा सूर्यो नाच्यौं शक्तित्रयं तथा।।
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्रामशिलाद्वयम।
तषां तु पूजनेनैव उद्वेगं प्राप्तुयाद गृही॥
                               (आचारप्रकाश:आचारेन्दु)

अर्थान्त:
"घर मे दो शिव लिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य-प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारकाकेचक्र (गोमति चक्र) और दो शालग्रामका पूजन करनेसे गृहस्वामीको उद्वेग (अशांति) प्राप्त होती है।"


*अंगूठेके सिरे से लेकर कनिष्ठा के छोरतक एक बित्ता होता है। एवं एक बित्तेमें १२ अंगुल होते है।

अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करे:-

GURUTVA KARYALAY
BHUBANESWAR (ORISSA)
INDIA
PIN- 751 018
CALL:- 91 + 9338213418, 91+ 9238328785

Email:- gurutva_karyalay@yahoo.in
gurutva.karyalay@gmail.com
chintan_n_joshi@yahoo.co.in

हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का चमत्कार

Hanumaan Chalisa Evam Bajarang Baan kaa Chamatkar

आज हर व्यक्ति अपने जीवन मे सभी भौतिक सुख साधनो की प्राप्ति के लिये भौतिकता की दौड मे भागते हुए किसी न किसी समस्या से ग्रस्त है। एवं व्यक्ति उस समस्या से ग्रस्त होकर जीवन में हताशा और निराशा में बंध जाता है। व्यक्ति उस समस्या से अति सरलता एवं सहजता से मुक्ति तो चाहता है पर यह सब केसे होगा? उस की उचित जानकारी के अभाव में मुक्त हो नहीं पाते। और उसे अपने जीवन में आगे गतिशील होने के लिए मार्ग प्राप्त नहीं होता। एसे मे सभी प्रकार के दुख एवं कष्टों को दूर करने के लिये अचुक और उत्तम उपाय है हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ




हनुमान चालीसा और बजरंग बाण ही क्यु ?


क्योकि वर्तमान युग में श्री हनुमानजी शिवजी के एक एसे अवतार है जो अति शीघ्र प्रसन्न होते है जो अपने भक्तो के समस्त दुखो को हरने मे समर्थ है। श्री हनुमानजी का नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तो के सारे संकट दूर हो जाते हैं। क्योकि इनकी पूजा-अर्चना अति सरल है, इसी कारण श्री हनुमानजी जन साधारण मे अत्यंत लोकप्रिय है। इनके मंदिर देश-विदेश सवत्र स्थित हैं। अतः भक्तों को पहुंचने में अत्याधिक कठिनाई भी नहीं आती है। हनुमानजी को प्रसन्न करना अति सरल है


हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ के माध्यम से साधारण व्यक्ति भी बिना किसी विशेष पूजा अर्चना से अपनी दैनिक दिनचर्या से थोडा सा समय निकाल ले तो उसकी समस्त परेशानी से मुक्ति मिल जाती है।


“यह नातो सुनि सुनाइ बात है ना किसी किताब मे लिखी बात है, यह स्वयं हमारा निजी एवं हमारे साथ जुडे लोगो के अनुभत है।”


उपयोगी जानकारी
हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के नियमित पाठ से हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए प्रस्तुत हैं कुछ उपयोगी जानकारी ..


• नियमित रोज सुभह स्नान आदिसे निवृत होकर स्वच्छ कपडे पहन कर ही पाठ का प्रारम्भ करे।
• नियमित पाठ में शुद्धता एवं पवित्रता अनिवार्य है।
• हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ करते समय धूप-दीप अवश्य लगाये इस्से चमत्कारी एवं शीघ्र प्रभाव प्राप्त होता है।
• दीप संभव न होतो केवल ३ अगरबत्ती जलाकर ही पाठ करे।
• कुछ विद्वानो के मत से बिना धूप से हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ प्रभाव हिन होता है।
• यदि संभव हो तो प्रसाद केवल शुद्ध घी का चढाए अन्य था न चढाए
• जहा तक संभव हो हनुमान जी का सिर्फ़ चित्र (फोटो) रखे ।
• यदि घर मे अलग से पूजा घर की व्यवस्था हो तो वास्तुशास्त्र के हिसाब से मूर्ति रखना शुभ होगा। नही तो हनुमान जी का सिर्फ़ चित्र (फोटो) रखे।
• यदि मूर्ति हो तो ज्यद बडी न हो एवं मिट्टी कि बनी नही रखे।
मूर्ति रखना चाहे तो बेहतर है सिर्फ़ किसी धातु या पत्थर की बनी मूर्ति रखे।
• हनुमान जी का फोटो/ मूर्ति पर सुखा सिंदूर लगाना चाहिए।
• नियमित पाठ पूर्ण आस्था, श्रद्धा और सेवा भाव से की जानी चाहिए। उसमे किसी भी तरह की संका या संदेह न रखे।
• सिर्फ़ देव शक्ति की आजमाइस के लिये यह पाठ न करे।
• या किसी को हानि, नुक्सान या कष्ट देने के उद्देश्य से कोइ पूजा पाठ नकरे।
• एसा करने पर देव शक्ति या इश्वरीय शक्ति बुरा प्रभाव डालती है या अपना कोइ प्रभाग नहि दिखाती! एसा हमने प्रत्यक्ष देखा है।
• एसा प्रयोग करने वालो से हमार विनम्र अनुरोध है कृप्या यह पाठ नकरे।
• समस्त देव शक्ति या इश्वरीय शक्ति का प्रयोग केवल शुभ कार्य उद्देश्य की पूर्ति के लिये या जन कल्याण हेतु करे।
• ज्यादातर देखा गया है की १ से अधिक बार पाठ करने के उद्देश्य से समय के अभाव मे जल्द से जल्द पाठ कने मे लोग गलत उच्चारण करते है। जो अन उचित है।
• समय के अभाव हो तो ज्यादा पाठ करने कि अपेक्षा एक ही पठ करे पर पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से करे।
• पाठ से ग्रहों का अशुभत्व पूर्ण रूप से शांत हो जाता है।
• यदि जीवन मे परेशानीयां और शत्रु घेरे हुए है एवं आगे कोइ रास्ता या उपाय नहीं सुझ रहा तो डरे नही नियमित पाठ करे आपके सारे दुख-परेशानीयां दूर होजायेगी अपनी आस्था एवं विश्वास बनाये रखे।


हनुमान चालीसा और बजरंग बाण

शनिवार, नवंबर 21, 2009

स्वप्न मे झाड़ू देखना

•अगर मन एंम आत्मा पर धूल या गंदगी का ढेर लगा है, तो स्वप्न मे झाड़ू देखना जीवन में आत्मा की सफाई करने का संकेत देता है।

•बहोत अच्छा संकेत है स्वप्न मे झाड़ू देखने का तात्पर्य है अपबे अन्दर की नकारात्मक शक्ति एवं व्यक्ति को चारों ओर घेरे अंधविश्वास का दूर होने का संकेत है।

•स्वप्न मे झाड़ू देखना संकेत है दूर्भाग्य का दूर हो कर सौभाग्य का आगमन होना या सौभाग्य का उदय होना। स्वप्न मे झाड़ू देखने वाले की बदनसीबि दूर होती है।

•फेंगशुई एवं पश्चिमी संस्कृतियों में व्यापार संरक्षण के लिए झाड़ू को दरवाजे पर य पीछे रखा जाता है। 

•रोजमर्रा की व्यावहारिक जिंदगी में झाडू को गंदगी दूर कर ने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।

बुरी नजर

कई संस्कृतियों मे यह विश्वास है की व्यक्ति पर ईर्ष्या या नापसंद के कारणों से अन्य द्वारा बुरी नजर लगति है। जिसे निर्देशित है की एक बार नजर लगते ही चोट लगना, नुक्सान होना, दुर्भाग्य प्रारंभ होना, बीमार होना आदि कई सारे कारण ओर वजह बनाकर कुछ व्यक्तियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है कि इस व्यक्रि कि नजर लगने की वजह से एसा हो रहा है।
सदी से अधिक समय काल से इस तरह कि मानयता एवं परंपरा कई संस्कृतियों में चली आरही है।

हिन्दु संस्कृति

हिन्दु संस्कृति मे बुरी नज़र ज्यादा तर क्षेतो मे "द्रष्टि दोष" या "नज़र"(दृष्टि अभिशाप) "आरती". के माध्यम से निकाल दि जाती है। वास्तविकता मे नज़र हटने मे अलग-अलग अर्थ शामिल है। मानव के द्वारा लगी बुरी नज़र हटाने के लिये पवित्र अग्नि लौ के माध्यम से पारंपरिक हिंदू मान्यता से जिसमें व्यक्ति के चेहरे के चारों ओर थाली से एक परिपत्र गति में अग्नि लौ "आरती". करते है ताकि बुरे प्रभाव को नष्ट होजाए। नये खरिदे गये वाहन के पहियो के निचे नींबू कूचल जत है ताकि उस्के उपर से सारी परेशानी एवं बुरे प्रभाव नष्ट होजाये ओर बुरी नज़र का प्रभाव दुकान मकन ओर वाहनों को भी होत है, इस लिये लोग नींबू मिर्च लगते है ताकि बुरे प्रभव से बचा जाये। नव विवाहित कन्या या छोटे बच्चों को "बुरी नज़र को रोकने के लिये काजल (कुमकुम) का टिका लगाने कि प्रथा चलि आरही है, क्योकि कम उम्र के बच्चोको अच्छि ओर बुरि दोनो तर्ह कि नजर लगती है कभी मिठि नजर भी लगजाती है और कभी बुरी।

शुक्रवार, नवंबर 20, 2009

किसे धारण करना चहिये

 सूर्य रत्न माणिक्य किसे धारण करना चहिये इस विषय मे बहोत सारे तर्क वितर्क अभि तक चल रहे है। कुछ ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ मे विरोधाभाष है क्योकि सब कि अपनी-अपनी सोच ओर अपना-अपना नजरिया है।


उदाहरण के लिये:-

कुछ ज्योतिष अष्टम स्थान मे सूर्य हो या सूर्य अष्टमेश हो तो सूर्य रत्न माणिक्य नहीं धारण करने कि सलाह देते है। तो कुछ ज्योतिष अष्टम स्थान मे सूर्य हो या सूर्य अष्टमेश हो तो सूर्य रत्न माणिक्य धारण करने कि सलाह देते है।



यदि जन्म कुन्डलि मे सूर्य शुभ भावो का अधिपति होतो उसका रत्न माणिक्य धारण करना शुभ फल देता है।

जिस व्यक्ति कि कुन्डलि मे मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन लग्न होतो वह सूर्य रत्न माणिक्य धारण कर सकता है।

जिस व्यक्ति कि कुन्डलि मे सूर्य ३,६,११ वे भाव मे होतो सूर्य रत्न माणिक्य धारण करना शुभ देखा गया है।

अष्टम स्थान मे सूर्य हो या सूर्य अष्टमेश हो तो सूर्य रत्न माणिक्य नहीं धारण करना चाहिये।

यदि सूर्य लग्न, पंचम, सप्तम मे या नवम स्थान मे होतो उस स्थान का प्रभाव को बढाने के लिये माणिक्य धारण करना शुभ देखा गया है।

जिस व्यक्ति का जन्म २१ जून से २२ जुलाइ के मध्य होउस के लिए माणिक्य धारण करना शुभ होता है।

जिस व्यक्ति का जन्म दिनांक १,१०,१९,२८ हो उसे माणिक्य धारण करना शुभ होता है।

व्यक्ति सूर्य से संबंधित रोग से ग्रस्त हो उसे सूर्य रत्न माणिक्य धारण करने से शुभ फल मिलते देखागया है।



माणिक्य विभिन्न भाषाओ मे निम्न लिखित नामो से जाना जात है।

हिन्दी मे :- चुन्नि, माणिक्य, लाल मणि,

सस्कृत मे :- पद्मराग मणि, माणिक्यम, सोणमल, कुरविंद, वसुरत्न, सोगोधक, स्त्रोण्रत्न, रत्ननायक, लक्ष्मी पुष्प,

फ़ारसी मे :- याकूत,

अरबी मे :- लाल बदपशकनि

लेटिन मे :- रुबी, नर्स,