Daridrata se mukti, daridrata nivaran, daridrata se chhutakara, दरिद्रता से मुक्ति
निर्धनता से मुक्ति
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका
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अहो दुःखमहो दुःखमहो दुःखं दरिद्रता (दरिद्रता व्यक्ति का सब से बडा दुःख हैं)
विश्व के हर देश, समाज और संस्कृति में कई तरह कि मान्यताए प्रचलित होती हैं, जो व्यक्ति के अंतर मन में लम्बे समय तक घर कर जाती हैं। इस विषय में जबतक योग्य मार्गदर्शन या ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता तबतक व्यक्ति अपनी समस्याओं से छुटकारा नहीं प्राप्त कर पाता।
एसी हि मान्यता धन अभाव में भारतीय समाजमें अत्याधिक प्रचलित हैं वह हैं,
- भाग्य में जो लिखा हैं वहीं होगा!,
- नसीब में जो होगा वहीं होता हैं!,
- भगवान कि इच्छा के आगे किस कि चलती हैं!,
- भगवान ने दुःख लिखा हैं तो क्या करे!,
- हमारे तो अमुख ग्रह हि खरब चल रहे हैं,
- हमारा तो नसीब ही खराब हैं.............. इत्यादि एसे अनेको शब्द से हर व्यक्ति अच्छी तरह वाकीफ हैं।
सर्वशून्या दरिद्रता ।
अर्थात: जब दरिद्रता आती हैं तब मानव का सर्वस्व चला जाता हैं।
इन शब्दो से तो एसा प्रतित होता हैं मानो व्यक्ति इन शब्दो का प्रयोग करके अपने दरिद्र होने का गौरव व्यक्त कर रहा हों! मानो जेसे दरिद्रता उसके लिये किसी जंग में जीते हुवे मेडल जेसी हों! एसे हि भ्रम पैदा करने वाली धारणाओं के चलते व्यक्ति का आज यह हाल हैं। एवं इसी कारण वह धन उस्से दिन प्रति दिन दूर होता चलाजाता हैं। इस लिये कुछ लोगो के पास में जीवन के सभी सुख साधन उप्लब्ध होते हैं तो कोइ भीख मांग रहा होता हैं।
व्यक्ति आज दरिद्र हैं, निर्धन हैं तो वह उसके निजी कर्मो का फल मात्र हैं। आपकी दरिद्रता किसी ग्रह के कारण नहीं ग्रह तो केवल व्यक्ति के कर्मो का फल प्रदान करने हेतु विधाताके सहयोगी हैं।
दरिद्र व्यक्ति अपनी गलतीयां अपने नसीब और भगवान पर लाद देते हैं। एसा व्यक्ति अपनी गलतीयां सुधार कर अपने कर्मो के बल से धनवान नहीं बनना चाहता। इस कारण व्यक्ति स्वयं हि अपने भाग्य को कोस रहा हैं।
व्यक्ति अपने जीवन में दरिद्रता को पीछे छोड आगे बढने के उपाय खोजने बजाय एसे शब्दो का प्रयोग कर अपने आस-पास में नकारात्मक उर्जा (ओरा) निर्मित करलेता हैं। जिसके फल स्वरुप नकारत्मक उर्जा उसे जीवन में अथक परीश्रम करने के बावजूद भी उसे उचित सफलता दिलाने हेतु असमर्थ रहती है। यदि व्यक्ति के मन में हि दरिद्रता का नकारात्मक भाव घर कर गया हैं तो
उसके जीवनमें धन-समृद्धि केसे आयेगी? केसे वह व्यक्ति जीवन के समस्त भौतिक सुख समृद्धि एवं ऎश्वर्य को प्राप्त करने में सफल हो पायेग? हालकि हर व्यक्ति धन प्राप्ति हेतु मेहनत करने कि इच्छा नहीं रखता, लेकिन उसकी खूब प्रगती हो, वह जीवन में खूब आगे बढे, ढेर सारा धन कमाये एसे दिवा स्वप्न वह खूब देखता हैं, उसे स्वप्न लोक में विचरण करना तो रास आता हैं, लेकिन व्यक्ति अपने उन सपनो को पूर्ण करने का सार्थक प्रयास नहीं करता।
उत्पद्यन्ते विलीयन्ते दरिद्राणां मनोरथाः ।
अर्थात: दरिद्र मानव की इच्छाएँ मन में उठती हैं और मनमें हि विलीन हो जाती हैं अथवा पूरी नहीं हो पाती
यदि आप एसे व्यक्ति को एसा कहें कि आप भी धनवान हो सकते हैं, तो वह निराशावाले भाव से हास्य तरंग बिखेरते हुवे आप से कहेगा क्या भाई आप मेरा मजाक उडारहे हों। मैं यो मुश्किल से अपने और अपने परिवार के लिये दों वक्त कि रोटी जुटा पारहा हुं, और आप धनवान होने कि बात करते हैं। व्यवहारीकता से देखे तो उसकी बात भी गलत नहीं हैं, सामान्य या अति सामान्य व्यक्ति जो मुश्किल से अपनी जरुरतो को पूरा करा हैं। वह व्यक्ति होने कि सोच केसे सकता है? अपनी हालत को मुश्किल से टिकाके रखने का प्रयास कर रहा हो वहा अपनी प्रगति कि उसे सुझ केसे सकती हैं? लेकिन इस व्यवहारीक बात को वहीं तक सीमीत रखकर अपने मुद्दे पर वापस आते हैं।
सामान्य व्यक्ति जब अपने धनवान होने के स्वप्न देखता हैं तो उसे लगता हैं वह गलत चक्कर में पड जायेगा, इस लिये ज्यादातर मामलो में व्यक्ति अपने धनवान होने का विचार यहीं पर रोक देता हैं। यहि सबसे बडी भूल हो जाती हैं, धनवान होने कि विचारों को व्यक्ति को रोकना नहीं चाहिये। उन विचारों को अपने अंतर मन में प्रवेश करने दें, उन विचारों को समय के साथ साथ द्रढ बनाए। वर्तमान कि प्रतिकूल परीस्थिती को ध्यानमें रखने के साथ हि भविष्य में समृद्धि प्राप्त करने के विचार भी अपने अंदर तरंगीत करते रहें।
हमारे ॠषी-मुनी ने हजारो वर्ष पूर्व अपने तपोबल से ज्ञात कर लिया था कि मनुष्य कि शक्तियां अपार और अनंत हैं। जीसे आज का आधुनिक विज्ञान भी मान चुका हैं कि एक व्यक्ति अपनी वास्तवीक शक्ति का मात्र ३(तीन) प्रतिशत इस्तेमाल करता हैं। थिक इसी प्रकार आपके भीतर भी परमात्मा कि अपार शक्तियां मौजुद हैं बस उन शक्तिओं को उजागर करने कि जरुरत मात्र हैं, आप अपने अंदर उठनेवाली इन तरंगो के कारण आपके आस-पास का वातावतण सकारात्मक उर्जा से भर जायेगा एवं यह उर्जा आपके अंतर मन कि गहराई तक प्रवेश कर गई तो इन शक्तियो से आपको आत्म बल कि प्राप्ति होगी जो आपको इस और अग्रस्त होने का मार्ग स्वतः हि खूलने लगेगा। फिर आपकी मंझिल आपसे दूर नहीं रह जायेगी। व्यक्ति यदि एक बार चाहले तो वह अपनी स्थिती में परिवर्तन लासकता हैं बस जरुरत हैं एक द्रढ संकल्प कि।
उद्यमे नास्ति दारिद्रयम् ।
अर्थात: उद्यम करने से दरिद्रता की नहीं रह जाती ।
हर निर्धन या दरिद्र व्यक्ति को यहि सोच रखनी चाहिये कि मुझे धनवान बनना हैं।
यदि इस बात पर भी यदि आपको हसी आजाये तो समज लेना कि यह आपके विचारों कि निर्धनता हैं। यह वहीं मानसिकता हैं।
जो सदीयों से हमारे देश के अनेक व्यक्ति के अंदर घर कर गई हैं। इसका तात्पर्य कुछ एसा प्रतित होता हैं कि मानो व्यक्ति कह रहा हों कि हे समृद्धि आप मेरे पास आये ये मेरी इच्छा हैं पर आप मेरे पास आयेगी इस बात पर मुझे विश्वास नहीं। मुझे संदेह हैं, कि मैं आपको पासकता हुं! सायद आप मेरे जेसे निर्धन व्यक्ति के लिये नहीं हैं।
क्योकि आप यहा अपनी निर्धनता का कारणा भी ढूंढ लेता हैं, इस लिये आप निर्धन हैं। अभी तक मेने समृद्धि पाने के सभी प्रयास किये जो निष्फल रहे, और आप मेरे से दूर हि रही हैं। इस लिये मुझे विश्वास नहीं हैं, और मेने तुजे पाने के इच्छाभी त्यागदी हैं। क्योकि तुझे पानेका जितना चाहे प्रयास करलूं पत आप मिलोगे उसकी मुझे आशा नहीं हैं।
जिस व्यक्ति के भीतर एसे विचार आते हो वह केसे धनवान हो सकता हैं! लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मंत्र जाप साधना इत्यादि करले पर मनमें यदि अलक्ष्मी के विचार घर कर जाये फिर व्यक्ति दरिद्र रह जाये इसमें कोन सी नयी बात हैं।
दरिद्रः पुरुषः लोके शववल्लोकनिन्दितः ।
अर्थात: दुनिया में दरिद्र मानव मुर्दे की तरह निंदनीय गिना जाता है ।
दरिद्रता-गरीबी-दीनता हीनता एक अभिशाप हैं। गरीब या निर्धन व्यक्ति को सब लोग ओछि नजरोसे देखते हैं, उसका सब तिरस्कार करते हैं, अपमानित करते हैं एवं निर्धन व्यक्ति हमेशा समाज कि अवहेलना का शिकार होता हैं।
दरिद्रता के विचार जब व्यक्ति के अंदर घरकर जाते हैं तो वह समाज के डर से अपने जीवन को दुःख दर्द एवं अभावो के सहारे हि खिचता चलाजाता हैं उसे अभावों में जीवन जीने कि आदत पड जाती हैं। निर्धनता का भार उसे भीतर से झंझोरकर रख देता हैं जिसके फल स्वरुप व्यक्ति के विवेक विचार इत्यादि का दमन होजाता हैं।, जिस कारण व्यक्ति परिश्रम हिन व आलसी बनजाता हैं। उसकी सोचने समझने और मन को सकारत्मक उर्जा से तरंगीत करने वाले भाव संकूचित होते चले जाते हैं। अब यह विचार अंदर जाने वाले नहीं हैं एसे हि विचार उसे हमेशा कि लिये दरिद्र,गरीब, दीन, अभागा, कायर और दूसरों कि दया पर जीवन जीनेवाल बनादेता हैं। कोइ उसे पसंद नाहीं करता! व्यक्ति चिंता हि आग में जलता रहता हैं। परेशानीया उसका पीछा नहीं छोडती।
लम्बे समय तक दरिद्रता का बोझ ढोणे वाला व्यक्ति समय से पहले वृद्ध होजाता हैं, वह तुच्छ, हीन, कंगाल, रोग से पीडित आसक्त होकर समय बितने के साथ मंदबुद्धिअ का बनजाता हैं। व्यक्ति स्वयं हि अपना घातक शत्रु बन जाता हैं। उसका जीवन अंधकारमय प्रतित होता हैं।
व्यक्ति मेहनत मेहनत करता हैं, मजदूरी करता हैं। उसकी मेहनत का उसे पूरा मूल्य भी नहीं मिलता!, वह मांग भी नहीं सकता। उसका चारों और से शोषण होता हैं, लोग उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं।
सामान्य सामान उठाने वाले मजदूर जो फटे कपडोमें होते हैं उसे उसकी मजदूरीका 15-20 रुपये देने के लिये आनाकानी कर उसे 5-10 रुपये देनेवाले लोग हमने बहोत देखे हैं वहीं लोग बडी होटलों में सूट-बूटा टाई बांधे वेटरको उसके बीना मंगे अपना रुतबा और अपने धनवान होने का दिखा करने के लिये उसे 50-100 रुपये टीप में देने से नहीं हिचकिचातें एसे लोग भी बहोत देखे हैं हमने और आपने।
यहा गहराई से सोचने वाली एक बात हैं यहा व्यक्ति वहीं हैं सिर्फ उसके आस-पासका माहोल बदल जाता हैं, और इस माहोल के बदलने से उसके वर्तन में बदलाव आजाता हैं। इसाका कारण हैं मजदूर का स्वयं का धन नहीं प्राप्त करने कि अपनी अक्षमता, दरिद्रता का विचार करना एवं उसका दरिद्र दिखना इन दोनो कारणो से धनवान मजदूर को दबाता हैं।
यह कहावत हो आपने सुनिही होगी "जो दिखता हैं वहीं बिकता हैं" इसी कारण से वेटर अपनी उत्तम सेवा एवं रौबदार कपडो के दम के साथ उसकी आसपासका महौल जो कि आलिशान एवं शानदार होता हैं। इस कारण से उन्हें टिप के तौरपर बिना मांगे रुपये मिलजाते हैं।
कुपात्र दानात् च भवेत् दरिद्रो दारिद्र्य दोषेण करोति पापम् ।
पापप्रभावात् नरकं प्रयाति पुनर्दरिद्रः पुनरेव पापी ॥
अर्थात: कुपात्र को दान देने से दरिद्री बनता है । दारिद्र्य दोष से पाप होता है । पाप के प्रभाव से नरक में जाता है; फिर से दरिद्री और फिर से पाप होता है ।
हमने बहोत सारे एसे लोग भी देखे हैं जो हर महिने हजारो लाखो रुपये कमाते हैं फिर भी अन्य लोगो के सामने रोते फिरते हैं, मेरे पास धन नहीं हैं, घर में खाने के पैसे नहीं हैं, मेरी तो हालत बहोत खरब चल रहीं हैं............ इत्यादि ढेरो वाक्य सुने हैं।
क्या मिलता हैं? धन होते हुवे भी रोने से। एसे रोने से कोई देकर नहीं जाने वाल आपको धन। हां इस्से, उधर मांगने वाले मांगने कि हिम्मत नहीं करेंगे। लेकिन बिनामांगे हि क्यो रोना?
एसे लोगो के पास भविष्य में वास्तव में धन नहीं रह जाता। यातो उनका धन-संपदा उनकी संताने नष्ट कर देती हैं, घर में किसी ना किसी प्रकार का रोग लगारहता हैं जिसके कारण उनका संचित किया हुवा धन भी डॉक्टरो के चक्कार काट काट कर खत्म होजाता हैं और उपर से कर्ज कर लेते हैं, कोइना कोइ विवादो में उनका धन फसा रहता हैं चाहे वह किसी को सूद में दिया हो या कहीं पूंजी निवेश में नुक्शान ही होते हुवे लोगो को हमने स्वयं देखा हैं।
यदि आप यह कार्य कर रहें हैं तो अपनी आंखे खोल दें और अपने निर्धन होने का रोना छोडदे।
हमारे देश में आज भी लाखो करोडो लोग अपने भाग्य को दोष देनेवाले भरे पडे हैं।
दरिद्रता का मुख्य कारण हैं व्यक्ति का आलसी होना।
आलस कबहुँ न कीजिए, आलस अरि सम जानि।
आलस से विद्या घटे, सुख-सम्पत्ति की हानि॥
इस लिये आप चाहें जिस किसी भी कारण से निर्धन हो, तो आप निराश मत होईये आलस्य एवं नकारात्म विचारों को त्यागकर अपने प्रयासो को सफल बनाने हेतु प्रयास रत हो जाए। यदि आपको अपने कार्यो में सफल होने का मर्ग प्राप्त नहीं हो रहा हैं। तो आप आध्यात्मिक माध्यम से सहायता प्राप्त करने का प्रयास करें।
निर्धनता-दरिद्रता निवारण हेतु गुरुत्व कार्यालय द्वारा संचालित ब्लोग
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>> आने वाले अक्टूबर/नवम्बर अंक में में दरिद्रता निवारण हेतु अनेको जानकारी एवं उपाय उपलब्ध कराने हेतु हम प्रयास रत हैं।