संकष्टी चतुर्थी व्रत
इस दिन श्री विघ्नेश्वर गणेश जी की पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति के समस्त संकट दूर होते हैं, इस लिये इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस बार मंगलवार के दिन चतुर्थी होने से उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता हैं। गणेश पुराणमें उल्लेख हैं की भूमिपुत्र मंगल के कठोर तप से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उन्हें इच्छित वरदान देकर मंगलवार की चतुर्थी को सर्व संकट नाशक होने की शक्ति प्रदान की।
अंगारकी संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत एवं उपवास रखकर गणेश जी की विधि-विधान से विशेष पूजा करने से अधिक लाभ प्राप्त होता हैं।
चतुर्थी के दिन एक समय रात्री को चंद्र उदय होने के पश्च्यात चंद्र दर्शन करके भोजन करे तो अति उत्तम रेहता हैं।
रात में चंद्रमा के उदय हो जाने पर चंद्र देख कर गणपति जी का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक पढकर अर्घ्यदें-
गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायक।
संकष्ट हरमेदेव गृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥१॥
कृष्णपक्षेचतुथ्र्यातुसम्पूजितविधूदये।
क्षिप्रंप्रसीददेवेश गृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥२॥
भावार्थ: सब सिद्धियों के प्रदाता श्रीगणेश जी ! आपको मेरा नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव! आप मेरे द्वारा अर्घ्यग्रहण कीजिए, आपको मेरा नमस्कार है। कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर पूजित देवेश! आप मेरे द्वारा अर्घ्यग्रहण कीजिए, आपको मेरे नमस्कार है।
पश्च्यात इस श्लोक से चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात्री देवी को अर्घ्य प्रदान करें-
तिथीनामुत्तमेदेवि गणेशप्रियवल्लभे।
सर्वसंकटनाशायगृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥
तिथियों में गणेश जी को सर्वाधिक प्रिय देवि! आपको मेरा नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों को नष्ट करने के लिए अर्घ्यस्विकार करें।
शास्तोक्त वचन हैं जो व्यक्ति अंगारकीचतुर्थी के व्रत को विधिवत करता हैं। उसे साल भर की चतुर्थीयोंका फल प्राप्त हो जाता है। व्यक्ति को अपने कार्य मे किसी प्रकार के बाधा-विघ्न नहीं आते। एवं उसके घरे में गणेश जी के साथ मे रिद्धि-सिद्धि का वास होता हैं।
यदि आप समर्थ हैं तो प्राण प्रतिष्ठित गणेश जी की प्रतिमा(मूर्ति) स्थापित कर के विधि-विधान से पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।
मंत्र सिद्ध गणेश प्रतिमा या चतुर्थी व्रत के संबंध मे अधिक जानकारी हेतु गुरुत्व कार्यालय में संपर्क करें।
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