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मंगलवार, दिसंबर 06, 2011

रुद्राक्ष की उत्पत्ति

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रुद्राक्ष की उत्पत्ति
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (दिसम्बर-2011)

रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:, अक्ष्युपलक्षितम्  
अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:।  
पुटाभ्यां चारुचक्षुर्भ्यां पतिता जलबिंदवः   
तत्राश्रुबिन्दवो जाता वृक्षा रुद्राक्षसंज्ञकाः॥                 .

रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रतिक माना जाता है रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रु से हुइथी इस लिये इसे रुद्राक्ष कह जाता है रुद्र का अर्थ है शिव और अक्ष का अर्थ है आँख। दोनो को मिलाकर रुद्राक्ष बना।
रूद्र+अक्ष  शब्द का संयोग रूद्राक्ष कहलाता है । रुद्र का अर्थ है । भगवान शिव का रौद्र रूप और अक्ष का अर्थ है आँख । दोनो को मिलाकर रुद्राक्ष बना ।
रुद्राक्ष भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष रुप से फलदायी सिद्ध होता हैं।
धर्मग्रंथों, शास्त्रों व पुराणों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां पाठको के मार्गदर्शन के लिए कुछ प्रमुख ग्रंथो में उल्लेखित रुद्राक्ष से संबंधित जानकारीयां दी जा रही हैं।
रुद्राक्ष के गुणो का विस्तृत वर्णन लिंगपुराण, मत्स्यपुराण, स्कंदपुराण, शिवमहापुराण, पदमपुराण, महाकाल संहिता मन्त्र, महार्णव निर्णय सिन्धु, बृहज्जाबालोपनिषद्, ……………..>>
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एक कथा के अनुसार:
एक बार भगवान शिव ने सैकडों हजार वर्षो तक अंतर्ध्यान रहे। जब भगवान शिव ने ध्यान पूर्ण होने के बाद जब शिवजी ने अपने नेत्र खोले, तो उनके नेत्र से आंसुओं की धारा निकलने लगी। शिवजी के नेत्रों से निकली यहं दिव्य अश्रु-बूंद भूलोक पर गिरी, भूलोक पर जहां-जहां भी अश्रु बुंदे गिरे, उनसे अंकुरण फूट पडा! बाद में यही रुद्राक्ष के वृक्ष बन गए। कालांतर में यही रुद्राक्ष शिव भक्तो के प्रिय बन कर समग्र विश्व में व्याप्त हो गए।


दूसरी कथा के अनुशार:
एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने यहां यज्ञ का आयोजन किया। हवन करते समय दक्षने भगवान शिव का अपमान कर दिया। शिवजी के अपमान पर क्रोधित होकर शिव की पत्नी सती ने स्वयं को अग्निकुंड में समाहित करलिया। सती का जला शरीर देख कर शिव अत्यंत क्रोधित हो गए।
            भगवान शिव ने उन्मत कि भांति सती के जले हुए शरीर को कंधे पर रख……………..>>
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स्कंद पुराण की कथा:
एक बार भगवान कार्तिक ने अपने पिता भगवान शिवजी से पूछा:- हे पिता श्री ! यह रुद्राक्ष कया हैं?
रुद्राक्ष को धाराण करना इस लोक और परलोक में श्रेष्ठ क्यों माना जाता हैं?
रुद्राक्ष के कितने मुख होते हैं? उसके कौन से मंत्र हैं? मनुष्य रुद्राक्ष को किस प्रकार धारण करें? कृपा कर यह सब आप मुझे विस्तार से समझाए?
शिव जी बोले हे षडानन रुद्राक्ष की उत्पत्ति का वर्णन मैं तुम्हें संक्षिप्त में बता रहा हूं।
शंकर उवाच:
श्रृणु षण्मुख तत्त्वेन कथयामि समासतः।
त्रिपुरो नाम दैत्येन्द्रः पूर्वमासीत्सुदुर्जय:॥

अर्थात: हे षडानन (छह वाला) स्कंदजी ! तुम सुनो, पूर्वकाल में त्रिपुर नामक एक महान शक्तिशाली व पराक्रमी दैत्यों का राजा हुआ था। त्रिपुर को जीतने में देव-दानव में से कोई भी समर्थ नहीं था।
उसने अपने पराक्रम से संपूर्ण देवलोक को जील लिया। तब ब्रह्मा, विष्णुअ, इन्द्रादि सभी देव एवं मुनि गण मेरे पास आए और दैत्यराज त्रिपुर को मारने की प्राथना की। तब मैने त्रिपुर को मारने ……………..>>
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तेनाश्रुबिंदुभिर्जाता मर्त्ये रुद्राक्षभूरुहाः।
उस नेत्र से निकले अश्रृ बिंदु से भूलोक में रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हो गए।
भक्तों पर कृपा करने के लिए एवं संसारका कल्याण हो इस लक्ष्य से मेरे ये अश्रुबिंदु रुद्राक्ष के रुप में व्याप्त हो गये और रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए, ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से ……………..>>
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संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष -पत्रिका दिसम्बर-2011 का अंक पढें
इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।

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