Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


गुरुवार, दिसंबर 23, 2010

गणेश चतुर्थी व्रत (24-December- 2010)

Ganesh chaturthi Vrat, 24- दिसम्बर - 2010, 24-December- 2010 विक्रम संवत 2067


गणेश चतुर्थी व्रत

>> गणेश चतुर्थी व्रत के बारें में अधिक जानकारे हेतु यहां क्लिक करें
>> http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2010/02/blog-post_1765.html

गुरु पुष्य योग (23- December- 2010)

Guru Pushya Yoga/Guru Pushyaamrut Yoga, guru prushiyami yoga, guru pushya nakshatra, गुरु पुष्य योग, गुरु पुष्य नक्षत्र, 23- December- 2010, 23-दिसम्बर-2010
गुरु पुष्यामृत

23-दिसंबर-2010 को दोपहर 01:50 बजे से पुष्य नक्षत्र प्रारंभ हो रहा है।

गुरु पुष्य योग के बारे में अधिक जानकारी हेतु क्लिक करें।


>>  गुरु पुष्य योग
>>  http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post_2941.html

>> गुरु पुष्यामृत
>>  http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2009/12/blog-post_18.html

>> गुरु पुष्य योग का महत्व
>> http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2010/12/blog-post_23.html

गुरुपुष्य योग का महत्व

Guru Pushya Yoga/Guru Pushyaamrut Yoga
गुरुपुष्य नक्षत्र का महत्व
विद्वानो के मत से पुष्य नक्षत्र के दौरान किए गए कार्यो में निश्चित सफलता प्राप्त होती हैं।

पुष्य नक्षत्र का महत्व क्यों हैं?
शास्त्रो में पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा बताया गया हैं। जिसका स्वामी शनि ग्रह हैं। शनि को ज्योतिष में स्थायित्व का प्रतीक माना गया हैं। अतः पुष्य नक्षत्र सबसे शुभ नक्षत्रो में से एक हैं।
यदि रविवार को पुष्य नक्षत्र हो तो रवि पुष्य योग और गुरुवार को हो तो और गुरु पुष्य योग कहलाता हैं।

शास्त्रों में पुष्य योग को 100 दोषों को दूर करने वाला, शुभ कार्य उद्देश्यो में निश्चित सफलता प्रदान करने वाला एवं बहुमूल्य वस्तुओं कि खरीदारी हेतु सबसे श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायी योग माना गया है।

गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थ अमृतसिद्धि योग बनता है।
शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र के संयोग से सर्वाद्धसिद्धि योग होता है। पुष्य नक्षत्र को ब्रह्माजी का श्राप मिला था। इसलिए शास्त्रोक्त विधान से पुष्य नक्षत्र में विवाह वर्जित माना गया है।

शुक्रवार, दिसंबर 17, 2010

प्रदोष व्रत 18-दिसम्बर-2010

Pradosh Vrat- 18- December- 2010
 
प्रदोष व्रत 18-दिसम्बर-2010

प्रदोष व्रत, शनि प्रदोष व्रत (पुत्र प्राप्ति हेतु उत्तम),


>> प्रदोष व्रत के बारे में अधिक जानकारी हेतु यहा क्लिक करे
http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html

>> प्रदोष व्रत कि कथा

मंगलवार, दिसंबर 14, 2010

शीघ्र मनोनुकूल पति-पत्नी प्राप्ति के उपाय

remedie for early marriage, Remedy for marriage with idol Husband and beutyful wife, shigrah sheegra vivah ke upaym, Astrology remedie for early marriage,vedic remedie for early marriage,

शीघ्र मनोनुकूल पति-पत्नी प्राप्ति के उपाय

लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (दिसम्बर-2010)
http://gurutvajyotish.blogspot.com/

ज्यादातर कन्या और उसके माता-पिता को यह चिंता सताती रहती हैं। बेटी-बेटे का विवाह जल्द से जल्द योग्य पात्र से कैसे हो जायें। और विवाह के पश्चयात बेटी-बेटे का ससुराल और पति-पत्नी कैसी होगी। यह सब हर माता-पिता के मन-मष्तिष्क मे साधारण से उठने वाले प्रश्न हैं? इस प्रकार कि परेशानी दूर करने के लिये और योग्य समय पर उत्तम विवाह के लिए कौनसा उपाय करने से लाभ प्राप्त होता हैं।

• विवाह योग्य लडकी सोमवार को पान एवं सुपारी से शिवलिंग का पूजन करें एवं जल चढ़ाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
• कन्या के गुरुवार का व्रत करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
• सोने की अंगूठी में निर्दोष पुखराज रत्न लड़के के दाएं हाथ में धारण कराएं एवं लड़कि के बाएं हाथ में धारण कराने से विवाह योग शीघ्र बनते हैं।
• कन्या को शिव-पार्वती का नियमीत पूजन करना चाहिये।
• कन्या द्वारा प्रति गुरुवार गाय को चने की दाल खिलाने से विवाह बाधाएं दूर होती हैं।
• कन्या द्वारा भगवान नारायण कि उपासना से लाभ होता हैं।
• नहाने का पानी में सोने का टूकडा डालकर रखें फिर उस जल से स्नान करने कन्या का विवाह शीघ्र हो जाता हैं।
• पानी में एक चूटकी हल्दी मिलाकर स्नान करने से विवाह शीघ्र हो जाता हैं।
• भोजन में केसर का सेवन करने से शीघ्र विवाह होने के योग बनते हैं।
• गुरुवार को किसी गरीब को, ब्राह्मण को या किसी सुहागिन स्त्री को गुरु ग्रह से संबंधित सामग्री दान में देने से कन्या का विवाह शीघ्र हो जाता हैं।
• 27 गुरुवार तक निरंतर देवी मंदिर में गाय के घी का ……………..>>


अन्य अनुभूत प्रयोग

प्रयोग 1
बृहस्पति के वेदोक्त मंत्र का 76000 जप और 7600 मंत्र से दशांश हवन ……………..>>

प्रयोग 2
किसी भी गुरुवार कि रात्रि में स्नानादि से निवृत होकर एक बाजोट पर प्राण-प्रतिष्ठित विवाह बाधा निवारण विग्रह स्थापित कर विग्रह पर द्रष्टी रखकर स्फटिक माला  ……………..>>

>> Read Full Article Please Read GURUTVA JYOTISH December-2010

 
प्रयोग 3
विवाह में आने वाली रुकावटो को दूर करने के लिये एक पीले रेशमी रुमाल में तीन कोनो में साबूत हल्दी ……………..>>

नियम:
• किसी भी उपाय को करते समय, व्यक्ति के मन में यही विचार होना चाहिए, कि वह जो भी उपाय कर रहा हैं उसे करने से वह ईश्वरीय कृपा से अवश्य ही शुभ फल प्राप्त होगा।
• सभी उपाय पूर्णत: सात्विक हैं तथा इसे करने से किसी के प्रतिकूल परिणाम प्राप्त नहीं होते है।
• उपाय से संबन्धित जानकारी पूर्णतः गोपनीय रखनी चाहिये।
• व्यक्ति को सतत यहि श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिये कि उसकी कामनाये शीघ्र पूर्ण होगी।
• कन्या को मासिक धर्म के समय कोई भी उपाय नहीं करना चाहिये।
• उपाय के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करें। मांस मदिरा इत्यादी से परहेज करें।
• उपाय के दौरान संयम का पालन करें। ……………..>>


इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो  से लेख को यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।

सोमवार, दिसंबर 13, 2010

विवाह समय निर्धारण

ग्रहो की महादशा-अन्तर्दशा में विवाह योग, Marriage Yoga in planet's Mahadash and antardasha, marriage Posible in Planets Mahadash-antardasha,

विवाह समय निर्धारण


विवाह का समय निर्धारण करने से पहले कुंडली में विवाह योग उपस्थित है या नहीं यह देखा जाता हैं। विवाह संबंधित योग, विवाह में बाधा, अविवाहित योगो का वर्णन आपके मार्गदर्शन के लिये इस अंक में दिया गया हैं।

जन्म कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र जितने अधिक शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो उतना हि शुभ होता हैं। जन्म कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र तीनो पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जितना कम हो या नहीं हो, उतना शुभ विवाह का समय पर होने में रहता हैं। क्योकि एसा मानाजाता हैं, अशुभ/ पापी ग्रह प्रभाव जन्म कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश एवं शुक्र तीनों को या इन में से किसी एक को प्रभावित करते हो, तो विवाह की अवधि में विलंब होता हैं।

जन्म कुंडली में योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाने पर विवाह के कारक ग्रह शुक्र एवं विवाह के मुख्य भावईवं सहायक भावों की महादशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाये अधिक बनती हैं।

सप्तमेश की महादशा-अन्तर्दशा में विवाह योग
जन्म कुंडली में प्रबल योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का शुक्र से संबन्ध हो तों इस दशा में विवाह हो सकता हैं। इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते हैं।

• जातक कि ग्रह दशा का संबन्ध जब सप्तमेश व नवमेश का हो रहा हों और जन्म कुंडली में सप्तमेश व नवमेश का पंचमेश से भी संबन्ध हों, तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाये होती हैं।
• जन्म कुंडली में सप्तम भाव में शुभ ग्रह स्थित हो, सप्तमेश शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा के आरम्भ होने के समय में विवाह होने की संभावनाये बनाती हैं।
• जन्म कुंडली में शुक्र अथवा सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित हो, तो अपनी महादशा-अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाये बनाता हैं।
• जन्म कुंडली में स्वयं सप्तमेश सप्तम भाव में स्थित हों या कोई अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस ग्रह की दशा के अन्तिम भाग में विवाह की संभावनाये बनाता हैं।
• जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त या द्र्ष्ट हों, गोचर में शनि अथवा गुरु से संबन्ध बनाने पर अपनी महादशा-अन्तर्दशा में विवाह की संभावनाये बनाता हैं।
• जातक कि विवाह योग्य आयु होगई हो, जन्म कुंडली में महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र ग्रह हों, शुभ ग्रह हों और महादशा का स्वामी ग्रह सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महादशा में विवाह होने के योग बनते हैं।
• जातक कि लग्नेश की महादशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा चलरही हो, तो विवाह होने की संभावनाये बनती हैं।
• जन्म कुंडली में सप्तम भाव या सप्तमेश से कोई बली ग्रह द्रष्टि संबन्ध बनात हो, तो उस ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाये बनती हैं।
• जातक कि कुंडली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि अथवा केन्द्र, त्रिकोंण, शुभ भाव में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से हो रहा हो, तो इस दशामें जातक का विवाह हो सकता हैं।
• कुंडली में शुक्र पर जितना शुभ प्रभाव में हो, विवाह उतना शीघ्र होने के योग बनाता हैं और शुक्र जितना पाप प्रभाव में हो उतना विवाह में विलंब होता हैं।
• कुंडली में शुक्र के साथ स्थित ग्रह, सप्तमेश का मित्र ग्रह या कोई बली ग्रह का किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाये बनती हैं।
• जन्म कुंडली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाये अधिक बनती हैं।

शनिवार, दिसंबर 11, 2010

वास्तु दोष से बढते हैं अवैध संबंध

in vastu shastra Architectural defects are increasing illegal relationship, vastu defects are increasing illegal relationship, home structure defects are increasing illegal relationship, Vastu Dosh increasing illegal relationship, Vastu dosh se badhate he Anaitika sambandha, vastu dosh vyakti ko vyabhicari banata hai, अनैतिक संबंध घर में वस्तु दोष से बनते हैं, वास्तु दोष व्यक्ति को व्यभिचारी बनाता हैं।

वास्तु दोष से बढते हैं अवैध संबंधों


दांपत्य जीवन में यदि हर दिन झगड़े हो तो इसका कारण सिर्फ आपसी मतभेद ही नहीं वास्तु दोष भी हो सकता हैं।

• भवन के नैऋत्य कोण(पश्चिम-दक्षिण) अथवा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) के निर्माण में यदि दोष हो, तो पति-पत्नी के संबंध अन्य स्त्री-पुरुष होने कि संभावनाएं बढाता हैं और व्यक्ति एक से अधिक अवैध संबंध बनाने के लिये प्रयास रत रहता हैं। जिस्से परिवार में लड़ाई-झगड़े होते हैं। यदि उचित परामर्श प्राप्त कर इन दोषों को दूर कर दिया जाए तो पति-पत्नी के अन्य महिलाओं से संबंध सवतः हि समाप्त हो जाते हैं।
• नव विवाहित दम्पत्ति के भवन के वायव्य कोण(उत्तर-पश्चिम) के कमरे में सोने से दांपत्य जीवन में नीरसता आती हैं जिस्से पति-पत्नी के संबंध अन्य स्त्री-पुरुष से अवैध संबंध हो सकते हैं।
• किशोर उम्र के बच्चो का कमरा भवन के वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में होने से बच्चे कच्चि उम्र में प्रेम चक्कर इत्यादि के मोह में बंध जाने की संभावनाएं बनती हैं एवं बच्चे एक से अधिक संपर्क रखने का प्रयास भी कर सकते हैं। वायव्य कोण में अत्याधिक नकारात्मक प्रभाव होने पर बच्चे घर से भाग जाना या भाग कर विवाह करने कि संभावनाएं बनी रहती हैं।
• भवन के आग्नेय कोण में दम्पत्ति का बेड रुम हो, तो दोनो का गुस्सा सातवें आसमान पर रहता हैं जिस्से दोनो के बिच में आपसी ताल-मेल का अभाव रहता हैं। इससे मानसिक अशांति रहती हैं।
• भवन के दक्षिण में मुख्य द्वार हो और पश्चिम कि रसोई हो तो उस घर में आपसी मतभेद रहते हैं।
ईशान में रसोई एवं शौचालय हों तो गृह क्लेश रहेगा।
• आईने में सोते समय दंपत्ति का बेड या शरीर दिखता हो, तो दोनो के बिच में किसी का या दोनो का किसी अन्य से अवैध बनने कि संभावनाएं बढजाती हैं।
वास्तु अनुसार कुछ उपाय कर पति-पत्नी के बीच हर दिन होने वाले झगड़े दूर किए जा सकते हैं।

नोट:- केवल विवाह योग्य बच्चो का कमरा हि वायव्य कोण में रखना उचित रहता हैं किशोर उम्र के बच्चो का कमरा वायव्य कोण में उपयुक्त नहीं होता हैं।

यदि आपके घर में एसी स्थितीयां बन रही हैं तो उस्से डरने के बजाय उसके निवारण के उपाय करने चाहिये। अवैध संबंध बनने के और भी बहोत सारे कारण हो सकते हैं। दंपत्ति का कमरा वायव्य कोण में होने का मतलब यह नहीं हैं कि दोनो या दोनो में से एक व्यभिचारी हैं किसी विशेष परिस्थिती के कारण यदि ऎसा नहीं हैं तो ऎसा होने की संभावना बन सकती हैं। इस लिये अग्रीम जानकारी प्राप्त कर सचेत रहना उचित होता हैं।

गुरुवार, दिसंबर 09, 2010

प्रश्न ज्योतिष और विवाह योग

Question Astrology and marrige yoga, horary astrology amd marriage, prashna kundali se jane vivah yoga, love marriage and horary astrology, Prashana jyotish se vivah yoga, horary chart indicate marriage time. प्रश्न कुण्डली और विवाह योग,

प्रश्न ज्योतिष और विवाह योग


प्रश्न कुंडली द्वारा व्यक्ति का विवाह कब होगा इस प्रश्न का विचार करने के लिये कुंडली में द्वितीय, सप्तम और एकादश भाव में कौन से ग्रह उपस्थित हैं, उसी ग्रह कि स्थिती से विवाह का विचार किया जाता हैं।

ज्योतिष में विवाह का विचार सप्तम भाव के साथ-साथ कुंडली में द्वितीय भाव और एकादश भाव से भी विचार किया जाता हैं। सप्तम भाव जीवनसाथी एवं साझेदारी का भाव होता हैं। अत: विवाह से संबंधित प्रश्न का विचार इस भाव से किया जाता हैं। भारतीय ज्योतिष में वैवाहिक सम्बन्ध में शुभता का विचाह एकादश भाव से किया जाता हैं।

इस भावों के नक्षत्र कौन सा नक्षत्र स्थित हैं, इस भावों के स्वामी के नक्षत्र में ग्रह कि स्थिती एवं इस भावो के स्वामी एवं उन ग्रह के मध्य दृष्टि और युति सम्बन्ध को भी देखा जाता हैं। प्रश्न ज्योतिष में सबसे अधिक महत्व नक्षत्रो को दिया जाता हैं।

प्रश्न ज्योतिष द्वारा विवाह के लिए शुभ योग
ज्योतिष में विवाह का कारक ग्रह पुरूष की कुंडली में शुक्र और कन्या कि कुंडली मे गुरू होता हैं। प्रश्न ज्योतिष से विवाह का विचार करते समय पुरूष की कुंडली में चन्द्र और शुक्र कि स्थिती को देखा जाता हैं और कन्या की कुंडली में सूर्य और मंगल कि स्थिती को देखा जाता हैं।
• प्रश्न कुंडली के अनुशार चन्द्रमा तृतीय, पंचम, षष्टम, सप्तम और एकादश भाव में स्थित हैं और चन्द्रमा पर गुरू, सूर्य एवं बुध कि द्रष्टी होतो विवाह कि स्थिती उत्तम होती हैं।
• प्रश्न कुंडली के अनुशार त्रिकोण स्थान अथवा केन्द्र स्थान अर्थात प्रथम, चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव शुभ प्रभाव में हो तो विवाह शीघ्र होने के योग बनते हैं।
• प्रश्न कुंडली के लग्न में यदी स्त्री ग्रह स्थित हो अथवा लग्न और नवम भाव में स्त्री राशि हो या चन्द्र एवं शुक्र इन भावों में स्थित होकर एक दूसरे को देखते हों, तो विवाह योग बनते हैं।
• प्रश्न कुंडली में लग्नेश एवं चंद्र या शुक्र सप्तम भाव में स्थित हो और सप्तमेश लग्न में स्थित हो, तो शीघ्र विवाह योग होते हैं।
• प्रश्न कुंडली के लग्न में गुरू और सप्तम भाव में बुध स्थित हो अथवा चंद्रमा स्वागृही हो, सूर्य दशम भाव में और शुक्र द्वितीय भाव में स्थित हो, तो जल्द विवाय के योग बनते हैं।
• प्रेम विवाह से प्रश्न कुंडली का विचार
• प्रश्न कुंडली में चन्द्रमा तृतीय, षष्ठम, सप्तम, दशम या एकादश भाव में शुभ स्थिति में हो और चन्द्रमा पर सूर्य, बुध और गुरू कि शुभ द्रष्टी हों, तो प्रेम विवाह में सफलता के योग प्रबल होते हैं।
• प्रश्न कुंडली में लग्नेश और सप्तमेश राशि परिवर्तन कर रहे हो, तो प्रेम विवाह के लिये शुभ संकेत हैं।
• प्रश्न कुंडली में लग्नेश और द्वादश राशि परिवर्तन कर रहे हो, तो प्रेम विवाह के लिये शुभ संकेत हो सकता हैं।

विवाह के कुछ शास्त्रोक्त नियम

Shastrokt rules of marriage, Vedic rules of marriage, rules of hindu marriage, rules of indian marriage, हिन्दु संस्कृति में विवाह के शास्त्रोक्त नियम, भारतिय सन्स्कृति मे विवाह हेतु वैदिक नियम, हिंदू सभ्यता मे विवाह के नियम, हिन्दू समाज में विवाह , हिंदु समाज में विवाह,

विवाह के कुछ शास्त्रोक्त नियम


व्यक्ति के गृहस्थ जीवन में प्रवेश के लिए आवश्यक होता हैं विवाह संस्कार। विवाह संस्कारको ग्रंथों में संस्कार की संज्ञा दी गई हैं जिसका मुख्य उद्देश्य वर-कन्या अपने जीवन को संयमित बनाकर संतानोत्पत्ति करके जीवन के सभी ऋणों से उऋण होकर मोक्ष के लिये प्रयास करें। इसलिए विवाह वर्जितकरने के लिये भी हमारी ऋषि-मुनिओं ने कुछ आवश्यक नियम निर्धारित किये हैं।

• यदि वर-कन्या दोनों सगोत्रीय अर्थात दोंनो एक गोत्र के नहीं होने चाहिए। एसा हो, तो विवाह वर्जित हैं।
• कन्या का गोत्र एवं वर के ननिहाल पक्ष का गोत्र एक नहीं होने चाहिए। एसा हो, तो विवाह वर्जित हैं।
• दो सगे भाइयों से का विवाह दो सगी बहनों से करना वर्जित हैं।
• दो सगे भाइयों या दो सगी बहनों अथवा दो सगे भाई-बहनों का विवाह 6 मास के भितर करना शास्त्रों में वर्जित माना गया हैं।
• अपने कुल में विवाह के 6 माह के भीतर मुंडन, यज्ञोपवीत (जनेऊ संस्कार) चूड़ा आदि मांगलिक कार्य वर्जित माने गये हैं।(यदि 6 मास के भीतर संवत्सर हिंदू वर्ष बदल जाता है तो कार्य किए जा सकते हैं)

विवाह जेसे अन्य मांगलिक कार्यों के मध्य में श्राद्ध आदि अशुभ कार्य करना भी शास्त्रों में वर्जित है।
वर-कन्या के विवाह के लिए गणेश जी का पूजन हो जाने के पश्चात यदि दोनों में से किसी के भी कुल में किसी कि मृत्यु हो जाती हैं, तो वर, कन्या तथा उनके माता-पिता को सूतक नहीं लगता और तय किगई तिथि पर विवाह कार्य किया जा सकता है।

दांपत्य जीवन में मंगल, गुरु एवं शुक्र का प्रभाव

mangal, Guru or shukra s effect on Marital Life, mars, jupiter and venus effect on marrital life, marriage life, kuja, brihaspati, shukra ka dampatya jeevana par prabhav, bruhaspati mangal, sukra ka vivaahit jeevan par prabhav,jyotish or dmpatya jeevan, astrology and marital life, birth chart and marital life, horoscope and marrige life, janm kundali se vivahit jeevan, janam patrika me vivah sukha, कुजा, बृहस्पति, शुक्र का विवाह जीवन पर प्रभाव,

दांपत्य जीवन में मंगल, गुरु एवं शुक्र का प्रभाव


किसी भी कुंडली से दांपत्य का विचार करने के लिये मंगल, गुरु एवं शुक्र इन तीनों ग्रहों कि स्थिति और प्रभाव को देखना आवश्य हैं।

वैवाहिक जीवन में गुरु का प्रभाव
• सुखी दांपत्य जीवन के लिये वर-वधू दोनों की कुंडली में गुरु शुभ प्रभाव युक्त होना चाहिये। माना जाता हैं गुरु किशुभ सप्तम भाव पर दृ्ष्टि हों तो वैवाहिक जीवन परेशानियों व दिक्कतों के उपरांत भी दोनों में अलगाव जेसी स्थिति नहीं बनती हैं।
• गुरु का शुभ प्रभाव वर-वधू को एक साथ एवं उनके वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखती हैं। गुरु कि शुभता दांपत्य जीवन की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ, संतान का कारक ग्रह माना जाता हैं।
• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में गुरु पीडित हों तो सबसे पहले तो जातक के विवाह में विलम्ब होता हैं। यदि विवाह हो गया तो संतान प्राप्ति में परेशानियां होती हैं।
• यदी लडके-लडकी किसी कि भी कुंडली में गुरु किसी पाप ग्रह के प्रभाव में हों तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं। यदी गुरु पर पाप प्रभाव हों या गुरु पापी ग्रह की राशि में स्थित हों तो निश्चित रुप से दांपत्य जीवन में अनेक प्रकार की परेशानियां आती हैं।

वैवाहिक जीवन में शुक्र का प्रभाव
• पूर्ण वैवाहिक सुख की प्राप्ति के लिये विवाह और वैवाहिक संबन्धों का कारक ग्रह शुक्र जन्म कुंडली में शुभ प्रभाव में होना अति आवश्यक माना जाता हैं।
• वर-वधू दोनों की कुंडली में शुक्र शुभ प्रभाव युक्त होने पर दांपत्य जीवन में सुखो कि प्राप्ति होती हैं। इसके लिये शुक्र का पूर्ण बली एवं होना भी आवश्यक होता हैं।
• वर-वधू दोनों की कुंडली में शुक्र का किसी भी प्रकार से अशुभ स्थिति में होना पति-पत्नी में से किसी के अपने साथी के अलावा अन्यत्र अवैध संबन्धों कि ओर झुकाव होने के युग बनाता हैं। इसलिये दांपत्य जीवन में सुख प्राप्ति हेतु शुक्र की शुभ स्थिति आवश्यक होती हैं।
• कुंडली में शुक्र यदि स्वयं बली हैं, स्व राशि या उच्च राशि में स्थित तो दांपत्य जीवन में सुखों कि प्राप्ति होती हैं।
• कुंडली में शुक्र यदि केन्द्र या त्रिकोण में हों तो दांपत्य जीवन में सुखों कि प्राप्ति होती हैं।
• कुंडली में शुक्र यदि त्रिक भाव, नीच का अथवा शत्रु भाव में बैठा हों तो जीवन में दांपत्य सुखों में कमी आती हैं।
• कुंडली में शुक्र यदि अस्त अथवा किसी पापी ग्रह से दृ्ष्ट अथवा पापी ग्रह के साथ में बैठा हों तो जीवन में दांपत्य सुखों में कमी आती हैं।
• शुक्र के अशुभ होने पर पति-पत्नी के अलगाव की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती हैं।

वैवाहिक जीवन में मंगल का प्रभाव
विवाह के लिये वर-वधू दोनों की कुंडली मिलन करते समय सबसे पहले मंगल कि स्थिती देखी जाती हैं। देखा जाता हैं कि कहीं जातक मंगली तो नहीं हैं। मंगल किस भाव में स्थित हैं और मंगल किस ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध बना रहा हैं। मंगल कि किस ग्रह से युति हैं। इन सभी बातों का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक होता हैं।

मंगल के कारण जन्म कुंडली में मांगलिक योग का निर्माण होता हैं।
• सभी लडके-लडकी विवाह के बाद सुखी दांपत्य जीवन की कामना करते हैं। यदि लडके या लडकी किसी एक कि मांगलिक योग होने से वैवाहिक सुखों में कमी आती हैं।
• जब मंगल कुंण्डली के लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में स्थित होता हैं तो जातक मांगलिक होता हैं। लेकिन मंगल अन्य भावों में स्थित होने परभी वैवाहिक जीवन के सुख में कमी आने की अनेक संभावनाये होती हैं।
• कुछ विशेष परिस्थिती में कुंडली में मांगलिक योग बनने पर भी इस योग की अशुभता में कमी हो जाती हैं। ऎसे में अधूरी जानकारी के कारण वर-वधू अपने मन में मांगलिक योग से प्राप्त होने वाले अशुभ फलो के कारण भयभीत होते रहते हैं और मंगली दोष को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम अपने मन में पाल कर रखते हैं।

विशेष: कृप्या मंगल से संबंधित योग एवं उसके निवारण के उपायो का विस्तृत वर्णन इसी अंक में पृष्ठ नंबर पर आप पढ सकते हैं।

बुधवार, दिसंबर 08, 2010

9- दिसम्बर - 2010 (गणेश चतुर्थी व्रत)

Ganesh haturthi Vrat, 9-December- 2010 विक्रम संवत 2067,  9- दिसम्बर - 2010


9- दिसम्बर - 2010 (गणेश चतुर्थी व्रत)

>> गणेश चतुर्थी व्रत के बारें में अधिक जानकारे हेतु यहां क्लिक करें
http://gurutvakaryalay.blogspot.com/2010/02/blog-post_1765.html

आपका जीवन साथी कहीं नशे का आदी तो नहीं?

may be your life partners Addicted, your life partners birth chart indicate Addicted, Addiction in Astrology Charts? , Addiction Indicators In Astrology Charts, Addiction Indicators In horoscope Charts, Addiction Indicators In janam patrika, Addiction Indicators In janm kundli, Addiction Indicators In birth chart,

आपका जीवन साथी कहीं नशे का आदी तो नहीं?


भारतीय समाज में नशेको खराब माना गया हैं। क्योकि नशे कि लत या बूरी आदत के कारण व्यक्ति तन, मन, धन, परिवार सब कुछ दाँव पर लगा देने से पीछे नहीं हटता। आज ज्यादातर व्यक्ति किसी न किसी नशे कि लत का शिकार होता हैं।

शौखिया तौर पर शुरु किया गया नशे का अभ्यास समय के साथ-साथ व्यक्ति को लत का शिकार बना देता हैं। जिस्से उसका आने वाला उज्जवल भविष्य नशे के कारण भविष्य के गर्त अंधेरे कि और अग्रस्त कर देता हैं। व्यक्ति के नशे के आदि होने का एक बड़ा कारणा उसके आस-पास का माहौल होता हैं। क्योकि व्यक्ति अपने आसपास में जो महौल देखता हैं उसी महौल के अनुरुप वह ढलने लगता हैं।

जन्म कुंडली में ग्रहों कि स्थिती के अनुशार जातक कि रुचि नशा करने में रहेगी या नहीं। यदि रहेगी तो जातक किस तरह का नशा करेगा। इसका पूर्वानुमान ज्योतिषी संकेतो के आधार पर सरलता से जान सकते हैं। यदि उचित मार्गदर्शन और उचित उपायो से कोई भी माता-पिता या अन्य कोई व्यक्ति अपने स्वजनो को नशेकी लत में पडने से पहले बचा सकता हैं।

• जन्म कुंडली में लग्न में पाप ग्रह स्थित हो तो व्यक्ति किसी ना किसी नशे का शिकार रखता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्नेश कमजोर हो कर पाप ग्रह के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति नशे का आदि होता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्नेश नीच का हो, शत्रु राशि में स्थित हों और चंद्र भी कमजोर हो तो व्यक्ति नशे का आदि होता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्नेश पर मंगल का प्रभाव हो तो व्यक्ति कि व्यसन में रुचि रहती हैं।
• जन्म कुंडली में द्वादश (व्यय) भाव पर पाप ग्रह हो, तो व्यक्ति व्यसन में धन व्यय कराता है।
• जन्म कुंडली में बृहस्पति किसी भी भाव में नीच का हो, तो व्यक्ति कि व्यसन में रुचि रहती है।
• जन्म कुंडली में शुक्र-राहु या शुक्र-केतु के साथ स्थित हो और लग्नेश और चंद्र कमजोर हो या पाप प्रभाव में हो, तो व्यक्ति कि व्यसन में रुचि होती हैं।
• जन्म कुंडली में लग्न में शनि हो, शुक्र अष्टम भाव में स्थित होकर शनि से द्दष्ट होने से व्यक्ति अत्याधिक नशे का आदि होता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्न पर किसी भी प्रकार से सूर्य की दृष्टि होने पर व्यक्ति को माँस-मदिरा का आदि होता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्न पर किसी भी प्रकार से शनि की दृष्टि होने पर व्यक्ति को सिगरेट-गांजा आदि धुंवे वाले व्यसनो का आदि होता हैं।
• जन्म कुंडली में लग्न पर किसी भी प्रकार से मंगल की दृष्टि होने पर व्यक्ति को शराब जेसे जलीय नशे का आदि बनाती हैं।
• जन्म कुंडली में यदि पितृ दोष लग रहा हो, तो उसकी शांति अवश्य करले क्योकिं पितृ दोष के कारण घर-परिवार के सदस्यो के बिच में नशे के कारण अत्याधिक अशांति बनी रहती हैं।

नोट : संबंधित ग्रहों की शांति कराने व उपाय करने से कष्ट कम हो जाते हैं।

मंगलवार, दिसंबर 07, 2010

विवाह हेतु उचित माह कौन सा होता हैं?

in Indian culture which month was best for marriage, in hindu society which month would appropriate for Marriage?, best month for marriage,

विवाह हेतु उचित माह कौन सा होता हैं?


भारतीय सामाज में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता हैं। इस लिये हिंदू संस्कृति में तलाक जैसे शब्द का कोई नहीं हैं। ज्योतिष शास्त्र में विवाह संस्कार हेतु प्रमुख चार माह निर्धारित किये हैं। इस लिये एसा मानाजाता हैं कि इन चार माह में विवाह होने पर भावी विवाहित दम्पति का जीवन खुशियों भरा रहता हैं।

विद्वानो के मत से इन चार माह में विवाह होने पर अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं।
किस माह में विवाह क्या फल देते हैं?

शास्त्रों के अनुसार

माघे धनवती कन्या, फाल्गुने शुभगा भवेत,
वैशाखे तथा ज्येष्ठे पति उत्यन्तवल्लभा।
मार्गशिर्ष मपिच्छती, अन्यये मासाश्च वर्जिता।।

अर्थातः जिस कन्या का विवाह माघ मास में होता हैं, वह अति धनवान होती हैं, फाल्गुन मास में विवाह होने पर कन्या सौभाग्यवती होती हैं। वैशाख और ज्येष्ठ मास में विवाह होने पर कन्या पति को अधिक प्यारी होती हैं। अकस्मात परिस्थितीओं में अति आवश्यक होने पर ही मार्गशिर्ष मास में विवाह कर सकते है। अन्य सभी माह विवाह हेतु वर्जित होते हैं।

इसके अलावा मलमास या अधिमास होने पर, सूर्य धनु एवं मीन राशि में स्थित होने पर, गुरु या शुक्र तारा अस्त होने पर विवाह निषेध माना गया हैं।

कर्पूर गौरम करूणावतारम / श्लोक

Kapoor Gouram Karunaavtaaram Shlok,

करपूर गौरम करूणावतारम
संसार सारम भुजगेन्द्र हारम

सदा वसंतम हृदयारविंदे
भवम भवानी सहितं नमामि

मंगली दोष वाले जातक थोड़े गुस्सैल व चिड़चिड़े होते हैं?

mangallik persion  are Some  angry and irritable nature, mangal dosh jatak was some angry and irritable nature, short tempered, janpatariki ka me mangal dosh, mangal dosh wale jatak, kuja dosh wale vyakti kaa svabhav thoda garam hota hai,

मंगली दोष वाले जातक थोड़े गुस्सैल व चिड़चिड़े होते हैं?


 जन्म कुंडली में मंगली होना अथवा मंगल दोष होना किसी जातक के लिये अमंगलकारी नहीं हैं. मंगली होना कोई दोष नहीं हैं यह एक विशेष योग होता हैं जो कुछ विषेश जन्म कुंडली में पायेजाते हैं. मंगली जातक कुछ विशेष गुण लिये हुवे प्रतिभा संपन्न होते हैं. हमारा उद्देश्य यहा मंगल दोष के प्रभाव को नकारना नहीं हैं, उस्से जुडे भ्रम को दूर कर, उस्से जुडे शास्त्रीय नियमो से आपको परिचित करना और उसके निवारण के उपाय बताना हैं.

मंगली - दोष विचार कैसे किया जाता हैं. इस्से जुडे शास्त्रोक्त नियम इस प्रकार हैं.

अगस्त्य संहिता के अनुसार:
धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.
भार्या भर्तु विनाशाय भर्तुश्च स्त्री विनाशनम्.

मानसागरी के अनुसार:
धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.
कन्या भर्तुविनाशाय भर्तुः कन्या विनश्यति.

बृहत् ज्योतिषसार के अनुसार:
लग्ने व्यये चतुर्थे च सप्तमे वा अष्टमे कुजः.
भर्तारं नाशयेद् भार्या भर्ताभार्या विनाश्येत्.

भावदीपिका के अनुसार:
लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे.
स्त्रीणां भर्तु विनाशः स्यात् पुंसां भार्या विनश्यति.

बृहत् पाराशर होरा के अनुसार:
लग्ने व्यये सुखे वापि सप्तमे वा अष्टमे कुजे.
शुभ दृग् योग हीने च पतिं हन्ति न संशयम्.

उपरोक्त श्लोकों का भावार्थ है कि जन्म लग्न से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान मे मंगल स्थित होने पर मंगल दोष या कुज दोष बनता हैं. कुछ आचार्यों के अनुसार लग्न के अतिरिक्त मंगली दोष चन्द्र लग्न, शुक्र या सप्तमेश से इन्हीं स्थानो में मंगल स्थित होने पर भी होता हैं.


मंगली दोष का फल
मंगली दोष वैवाहिक जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करता है - मे विवाह विघ्न, विलम्ब, व्यवधान या धोखा, विवाहोपरान्त दम्पति मे से किसी एक अथवा दोनाको शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक कष्ट, पारस्परिक मन - मुटाव, वाद - विवाद तथा विवाह - विच्छेद. अगर दोष अत्यधिक प्रबल हुआ तो दोना अथवा किसी एक की मृत्यु भी हो सकती है.

कुंडली में यदि मंगली दोष हो तो उस्से भयभीत या आतंकित नहीं होना चाहिये. प्रयास यह करना चाहिये कि मंगली जातक का विवाह मंगली जातक से ही हो क्याकि मंगल - दोष साम्य होने से वह प्रभावहीन हो जाता हैं तथा दोनासुखी रहते हैं.

दम्पत्योर्जन्मकाले व्ययधनहिबुके सप्तमे लग्नरन्ध्रे.
लग्नाच्चन्द्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयोर्वै.
तत्साम्यात्पुत्रमित्रप्रचुरधनपतां दंपती दीर्घ - काला.
जीवेतामेकहा न भवति मश्तिरिति प्राहुरत्रात्रिमुख्याः.

अर्थातः यदि वर और कन्या के जन्मांग मे मंगल द्वितीय, द्वादश, चतुर्थ, सप्तम अथवा अष्टम भाव मे, चंद्रमा अथवा शुक्र से समभाव मे स्थित हो तो समता का मंगल दोष होने के कारण वह प्रभावहीन हो जाता है लग्न. परस्पर सुख, धनधान्य, संतति, स्वास्थ्य एवं मित्रादि की उपलब्धि होती हैं.

कुज दोष वत्ती देया कुजदोषवते किल.
नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्यो सुखवर्धनम्.

अर्थातः मंगल दोष वाली कन्या का विवाह मंगल दोष वाले वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष नहीं होता तथा वर - वधू के मध्य दांपत्य - सुख बढ़ता है.

मंगल के प्रभाव वाले जाताक आकर्षक, तेजस्वी, चिड़चिड़े स्वाभाव, समस्याओं से लडऩे की शक्ति विशेष रूप से प्रभावमान हैं होता. विकट से विकट समस्याओं में घिरे होने के बावजूद जातक अपना धैर्य नहीं छोड़ते हैं. ज्योतिष ग्रथो में मंगल को भले ही क्रूर ग्रह बताया गया हैं, मंगल केवल अमंगलकारी हि नहीं हैं यह मंगलकारी भी होता हैं.

मंगल कि उत्पत्ती कैसे हुइ?
शास्त्रों में मंगल ग्रह कि उत्पत्ति शिव से मानी गई हैं. मंगल को पृथ्वी का पुत्र माना गया हैं. मंगल की उत्पत्ति भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन में मानी गई हैं.
• जेसे मंगल का रंग लाल या सिंदूर के रंगके समान हैं., इस लिये भगवान गणेश को भी सिंदूर चढाया जाता हैं. इस लिये गणेशजी को मंगलनाथ या मंगलमूर्ति भी कहाजाता हैं.
• मंगल कुमार को गणेशजी नें मंगलवार के दिन दर्शन देकर उनहे मंगल ग्रह होने का वरदान दिया था इसी के कारण ही भगवान गणेश को मंगल मूर्ति कहा जाता हैं और मंगलवार के दिन मंगलमूर्ति गणेश का पूजन किया जाता हैं.
• विद्वानो ने देवी महाकाली जी का पूजन भी मंगलवार को श्रेष्ठ फल देने वाला माना हैं.
• ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल का प्रभाव मनुष्य के रक्त और मज्जा पर होता है. इसी से मंगली
कुंडली वाले जातक थोड़े गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं.

मंगली होने के लाभ
मंगली कुंडली वाले जातक में अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण निष्ठा से निभाने का विशेष गुण होता हैं. मंगली व्यक्ति ज्यादातर कठिन से कठिन कार्य को समय से पूर्व ही कर लेने समर्थ होते हैं. एसे व्यक्ति में नेतृत्व करने की क्षमता जन्मजात पाई जाती हैं. एसे व्यक्ति जल्द किसी से मित्रता नहीं करते और जल्द किसी से घुलते - मिलते नहीं हैं. एसे व्यक्ति जब मित्र या या संबंध बनाते हैं तो पूर्णत: निभा ने का प्रयास अवस्य करते हैं.

एसे व्यक्ति अत्याधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण इनके स्वभाव में क्रोध पाया जाता हैं. एसे व्यक्ति उग्र स्वभाव के होने पर भी वह बहुत दयालु, शीध्र क्षमा करने वाले तथा मानवतावादी होते हैं.

एसे व्यक्ति सहीं को सहीं और गलत को गलत कहने में नहीं हिचकिचाते. व्यक्ति किसी गलत के आगे झुकते नहीं और खुद भी गलत नहीं करते. किसी कि खुशामत करना इन्हें ज्यादा रास नाहीं आता. मंगली जातक प्रायः व्यवसायी, उच्च पद आसीत, राजनीति, डॉक्टर, इंजीनियर, अभिभाषक, तंत्र का जानकार और सभी क्षेत्रों में इन्हें विशेष योग्यता प्राप्त होती हैं. व्यक्ति विपरित लिंग के प्रति विशेष संवेदनशील होते हैं उनकी और विशेष झुकाव रखते हैं.

ज्योतिष शास्त्रों के अनुशार मंगली लडके - अपने जीवन साथी से विशेष अपेक्षाएं रखते हैं और अपने जीवन साथी के मामले में अधिक संवेदनशील होते हैं लडकी. इस कारण शास्त्रों में मंगली का विवाह मंगली से ही करने पर जोर दिया गया हैं. कुछ विद्वानो का मत हैं कि लड़के की कुंडली में मंगल हो और लड़की की एक में, 4, 7, 8, 12 स्थान में शनि स्थित हो अथवा मंगल के साथ गुरु स्थित हो तब मंगल का प्रभाव समाप्त माना जाता हैं कुंडली. एसा माना जाता हैं कि मंगली जातक का विवाह विलंब से होता हैं और अच्छी जगह होता हैं.

इसी लिये मंगली कुंडली वाले व्यक्ति का विवाह मंगली से करना शुभ माना जाता हैं.

ज्योतिष महत्व: ज्योतिष में मंगल ऋण, भूमि, भवन, मकान, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, मुकदमे बाजी और भाई का कारक होता हैं. मंगल हमें साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता प्रदान करता हैं और खतरों से सामना करने की शक्ति देता हैं.

मंगल के शांति के उपाय:
भगवान शिव और गणेश की उपासना करें. तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, केसर, कस्तुरी, लाल बैल, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान करें और ज्योतिष की सलाह पर मूंगा रत्न धारण करें.

सोमवार, दिसंबर 06, 2010

सिर्फ कुंडली मिलान सफल विवाह की गारंटी नहीं होती?

only perfect compatibility in a horoscope and a great astrology match was NOT guarantee a successful relationship in marriage life, only perfect Marriage compatibility and match NOT guarantee a successful relationship in marriage life,zodiac compatibility,

सिर्फ कुंडली मिलान सफल विवाह की गारंटी नहीं होती?


विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करवाना एक सामान्य प्रचलन हैं।
लेकिन केवल 36 गुणों के आधार पर किया गया कुंडली मिलना सफल विवाह कि गारंटी नहीं होता हैं। वैदिक ज्योतिष अनुसार 36 गुणों के अलावा अन्य बहुत सारे कारण होते हैं जो लडके-लडकी के वैवाहिक जीवन को सफल या असफल बनाने में अपना प्रभाव रखते हैं।

भारतीय समाज में लडके-लडकी की शादी के लिये दोनो कि जन्म कुण्डलियो का मिलान किया जाता हैं। जिसमे जन्म राशी और नक्षत्र के आधार पर 36 गुणो का मिलान और मंगलीक दोष प्रमुख माने जाते हैं। दोनो कि जन्म कुण्डलियो के मिलान में 18 या उस्से अधिक गुण मिलने पर दोनो की कुंडली विवाह के लिए उपयुक्त मान ली जाती हैं। जो ज्योतिष शास्त्र के जानकार और विद्वानो के मत से अनौचित और निर्थक प्रयास मात्र होता हैं।

क्योकि कि हमने स्वयं हमारे हमारे वर्षो के अनुभवो से पाया हैं। लडके-लडकी कि जन्म कुंडली में ३० से अधिक गुण मिलने पर भी दोनो का जीवन तनाव पूर्ण होता हैं जबकी दूसरी और जन्म कुंडली में १८ से कम गुण मिलने पर जीवन सुखमय और आनंदमय होता हैं।

ऎसा क्यों होता हैं?
इसका मुख्या कारण होता हैं आज आधुनिकता का कुछ एसा दौर चला हैं, जहा प्रायः हर गली महोल्ले में ज्योतिष से संबंधित पुस्तके पत्र-पत्रिकाए उपल्ब्ध हो जाती हैं, जिसे एक दो पार आधि-अधूरी पढे ना पढे व्यक्ति ज्योतिष से संबंधित उचित जानकारी एवं योग्य ज्योतिषी शिक्षण के अभाव के कारण स्वयं को ज्योतिष का बहोत बडा जानकार और विद्वान मान लेता हैं।

आजकल प्रायः हर छोटे-बडे शहरो में ज्योतिष से संबंधित शिक्षा के लिये क्लास खूलने लगे हैं जिसमे कुछ विद्वान ज्योतिष विद्वानो के द्वारा चलाये जाते हैं तो कुछ धन लोभ के कारण आधे-अधूरे शिक्षण से दूसरो को ज्योतिष का पाठ पढाने लगते हैं। आधे-अधूरे शिक्षक से ज्योतिष विद्या प्राप्त होन हीं सकती इस्से तो हर व्यक्ति भली भाती परिचित हैं, एसे में ज्योतिष शिक्षा कि मोटी फिस देकर व्यक्ति को ज्योतिष में अमुक अमक डिग्रीया प्राप्त हो जाती हैं।

कुछ व्यक्ति विद्वान ज्योतिष के पास शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत भी ज्योतिष विद्या के समर्पण भाव नहीं रख कर केवल धनोर्पार्जन के लक्ष्य को साधने में लग जाते हैं जहा उनका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत भी उन्हे वह सफलता प्राप्त नहीं हो पाती जो एक कूशल ज्योतिष को प्राप्त होनी चाहिये। एसी स्थिती में किया गया कुंडली मिलान ज्यादातर मामलो में असफल हो जाता हैं।

दूसरा कारण
ज्यादातर लडके-लडकी के माता-पिता शादी में हजारो लाखो रुपये खर्च कर देते हैं परंतु विद्वान एवं कूशल ज्योतिष के पास न जाकर उसका उचित पारिश्रमिक न देकर पैसे बचाने के चक्कर में या तो कम जानकार व्यक्ति से कुंडली मिलान करवा लेते हैं या स्वयं अपने कंप्युटर पर लडके-लडकी कि जन्म दिनांक, समय एवं स्थान देकर मिलान कर के 18 या उस्से अधिक गुण देख कर विवाह कर देते हैं। एसी स्थितीओं में लडके-लडकी का वैवाहिक जीवन कष्टमय और दूःख मय हो सकता हैं। क्योकि केवल 18 या उस्से अधिक गुण मिलने पर हि विवाह सफल नहीं होता। क्योकि कम जानकार ज्योतिष का सम्पूर्ण ध्यान नक्षत्र पर ही केन्द्रित होता हैं। जानकारी के अभाव में वहं जन्म लग्न, ग्रहोकी द्रष्टी एवं स्थिती इत्यादी की पूर्ण रुप से अवहेलना करता हैं। है.

कंप्युटर पर कुंडली मिलान करने पर उसमें केवल वर्ण, योनि, नाडी इत्यादि गुणो के आधार हि मिलान होता हैं। क्योकिं कुंडली मिलान नक्षत्रो की बजाए ग्रहो की स्थिति के आधार पर करना उचित होता हैं क्योकि नक्षत्र तो एक हि हिस्सा हैं और मनुष्य पर सबसे अधिक प्रभाव नवग्रहो का होता हैं। जिसे कंप्युटर या कम जानकार ज्योतिष बताने में असमर्थ होते हैं जिसके आधार पर विवाह सफल नहीं हो पाते हैं और कभी कभी गुण मिलने पर भी असफल हो जाते हैं।

तीसरा कारण
कुछ लडके-लडकी के माता-पिता अच्छा परिवार में रिश्ता या धनी परिवार देख कर अथवा अपने लडके-लडकी कि उम्र अधिक हो जाने पर अपने पुत्र-पुत्री कि जन्म कुंडली गलत बनवा देते हैं ताकी किसी भी प्रकार से विवाह संपन्न हो जाये परंतु अज्ञानता के कारण उन्हें कहा ज्ञात होता हैं कि वह जो बडी गलती से विवाह को संपन्न करना चाहते हैं वह अनौचित मेल को उचित में बदलने के उपरांत भी दोनो का वैवाहिक जीवन कष्टमय या दुःखमय रहेगा। ऎसी स्थितीओं में भी वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता फिर दोषका सारा ठिकरा मढदिया जाता हैं ज्योतिष पर कि उचित मेल होने पर भी हमारे लडके-लडकी का विवाहीक जीवन सुखी नहीं हुवा।

गुरुत्व ज्योतिष के विवाह स्पेशयल अंक में हमने कुंडली मिलान के अलावा
विवाह से संबंधित अन्य बहोत से पहलू से आपका मार्गदर्शन करने का प्रयास किया हैं।

सात फेरे और सात वचन

Sat phare or sat vachan in hindu culture,  dharm me sat fare our sat vachan,  sat phare in hindu society, हिन्दू धर्म में सात फेरो का महत्व, हिन्दु संस्कृति में सात फेरे, हिंदू धर्म सात फेरे और सात वचन, हिंदु धर्म में सात फेरे,  
सात फेरे और सात वचन


हिंदु संस्कृति में विवाह के समय वर-वधू पवित्र अग्नि के समक्ष सात फेरे के साथ में सात वचन लेते हैं जिसे आने वाले सात जन्मों तक दोनो को एक साथ इसी पवित्र रिश्ते में बंधे रहने का प्रतीक माना जाता हैं। इस विवाह विशेष अंक के साथ हम आपको इन सातो वचनो से अवगत करने का प्रयाश कर रहें हैं। विभिन्न हिंदू सभ्यता में विवाह में 4,5 और 7 फेरे लिये जाते हैं। इस सभ्यता के अनुरुप वचनो में उयोग में लाये जाने वाले मंत्रो में भी भिन्नता पाई जाती हैं।

विवाह के समय फेर इत्यादि आवश्यक कार्य संपम्म हो जाने पर भी विवाह संपन्न नहीं मानाजाता जब तक कन्या वर के वाम (बाऎं) भाग में नहीं आती। जबतक कन्या वर के वाम (बाऎं) भाग में नहीं आती तब उसे कुमारी ही मानाजाता हैं। एसे में विवाह को विधि विधान से संपन्न करने के लिये कन्या को वर से सात वचन माँगने का विधान बताया गया हैं। जिससे कन्या के भावी जीवन की सुख, सुरक्षा, मान-सम्मान, गरिमा-गौरव तथा अस्मिता की पूर्णता से रक्षा हो सके। वर द्वारा सात वचनों को स्वीकारने के पश्चात हिं कन्या निश्चिंत होकर भावी जीवन का प्रारम्भ करती हैं अर्थातः विवाह को संपन्न मानाजाता हैं। साधारण रुप से सात वचन को सप्तपदी रूप जानाजाता हैं।

प्राचीनकाल से सात वचनों का भारतीय समाज में अधिक महत्व रहा हैं। इस सात वचनों का तात्पर्य वर-वधू को श्रेष्ठ और सुखी दांपत्य जीवन की ओर प्रेरित करना होता हैं।

अपनी कन्या का विवाह करते समय हर माता-पिता के मन में यह आशंका अवश्य रहती हैं, कि विवाह पश्चात उनकी पुत्री का दांपत्य जीवन कैसा व्यतीत होगा? ससुराल में सुख से रह पायेगी या नहीं? कन्या के माता-पिता की इसी आशंका को दूर करने के लिए ही हजारो पूर्व हमारे विद्वान ऋषि-मुनियों द्वारा सात वचनों को रखा गया था। जिसके फलस्वरुप कन्या को विवाह पश्चात किसी कष्ट का सामना न करना पडे इस लिये कन्या अपने पति के वामांग (बाऎं) में आने से पूर्व उससे सात वचन मांगती हैं।

विवाह के पश्चयात पत्नि की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ उसकी अस्मिता तथा गरिमा की रक्षा करने का दायित्व भी पति का ही होता हैं। दांपत्य सम्बंधों में भी मधुरता, प्रेम, अनुराग, त्याग, समर्पण आदि कि भावना हो इसी उद्देश्य से इन वचनो को स्वीकार करना हीं नहीं उसे निभाना भी अति आवश्यक होता हैं।

हिंदु संस्कृति में वरवधू पवित्र अग्नि के सात फेरे लेते है। फेरे लेते समय वधू वर से सात वचन और वर वधू से पांच वचन मांगता हैं।

कन्या द्वारा वर से लिये जाने वाले सात वचन इस प्रकार हैं।

• प्रथम वचनः यदि यज्ञं कुर्यात्तस्मिन्मम सम्मतिं गृहणीयात
अर्थातः यज्ञादि शुभ कार्य मेरी सम्मति से ही करेंगे।

• द्वितीय वचनः यदि दानं कुर्यात्तस्मिन्नपि मम सम्मति गृहणियात
अर्थातः दानादि मेरी सम्मति से ही करेंगे।

• तृतीय वचनः अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात
अर्थातः युवा, प्रौढ़ और वृद्ध तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करेंगे।

• चतुर्थ वचनः धनादिगोपने मम सम्मतिं गृहणीयात
अर्थातः गुप्त रूप से धनादि संचय मेरी सम्मति से ही करेंगे।

• पंचम वचनः गवादि पशु क्रय-विक्रये मम सम्मतिं गृहणीयात।
अर्थातः गाय, बैल, घोडा आदि पशुओं (वर्तमान में वाहनादि) के क्रय विक्रय में भी मेरी सम्मति लेंगे।

• षष्ठम वचनः बसन्तादि षटऋतुषु मम पालनं कुर्यात
अर्थातः वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर इन छहों ऋतुओं में मेरा पालन करेंगे।

• सप्तम वचनः सखीष्य मम हास्यं कटुवाक्यम न वदेत न कुर्यात! तद्दहं भवतां वामांगें आगच्छामि
अर्थातः मेरे साथ की सखी सहेलियों के सामने मेरी हँसीं न उडाएं और न ही कठोर कटु वचनों का प्रयोग करें।

इन वचनो में कन्या कहती हैं यदि आप उपरोक्त सातों वचनों का पालन करेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।

वर द्वारा कन्या से लिये जाने वाले वचन इस प्रकार हैं।

उद्याने मद्यपाने च पितागृहगमनेन च
आज्ञा भंगो न कर्तव्यं वरवाक्यचतुष्टयकम!!
अर्थातः निर्जन स्थान, उद्यान, वनादि में न जाए, मद्य (शराब) पीने वाले मनुष्य के सामने न जाए, अपने पिता के घर भी मेरी आज्ञा के बिना न जाए, धर्म शास्त्रोचित कभी भी मेरी आज्ञा भंग न करे तो ही तुम मेरे वामांग में स्थान ग्रहण कर सकती हो।

राशि से जानिये उत्तम जीवन साथी

know perfect marriage match, perfect Marriage compatibility, zodiac compatibility, rashi indicate perfect compatibility, राशी से जानिये उत्तम जीवन साथी

राशि से जानिये उत्तम जीवन साथी


ज्योतिष के विद्वानो के अनुशार अलग-अलग राशियों का प्रेम जीवन और उनकी शारीरिक आवश्यकताऎ भी अलग-अलग होती हैं।

यदि जीवन में कोई प्रतिकूल स्वभाव वाला जीवन साथी मिल जाए तो उसका पारिवारीक जीवन दुखमय हो जाता हैं। क्योकिं दांपत्य जीवन में उचित तालमेल में कमी होने पर पति-पत्नी दोनो तनाव से ग्रस्त रहते हैं। दोनों में छोटी-छोटी बातो पर विवाद इत्यादी क्लेश होते रहते हैं जिस्से उनके दांपत्य जीवन में और पारस्परिक संबंधो के दौरान पूर्ण संतुष्टि प्राप्त नहीं हो पाती। जिस्से उनका जीवन अधिक प्रभावित होता हैं। सुखमय जीवन के लिये आपकी राशि के के अनुशार कोनसी राशि का जीवनसाथी साथी आपके लिये उपयुक्त रहेगा।


• मेष राशि: मेष राशि के व्यक्ति के लिये मेष, कर्क, मिथुन, तुला, मकर और कुम्भ राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• वृषभ राशि: वृषभ राशि के व्यक्ति के लिये वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ और मीन राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• मिथुन राशि: मिथुन राशि के व्यक्ति के लिये मेष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु और मीन राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• कर्क राशि: कर्क राशि के व्यक्ति के लिये मेष, वृषभ, कर्क, कन्या, तुला और मकर राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• सिंह राशि: सिंह राशि के व्यक्ति के लिये मिथुन, सिंह, तुला, वृश्चिक और कुम्भ राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• कन्या राशि: कन्या राशि के व्यक्ति के लिये मिथुन, कर्क, कन्या, वृश्चिक और धनु राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• तुला राशि: तुला राशि के व्यक्ति के लिये मेष, कर्क, सिंह, तुला, धनु और मकर राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के व्यक्ति के लिये वृषभ, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और कुम्भ राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• धनु राशि: धनु राशि के व्यक्ति के लिये मिथुन, कन्या, तुला, धनु, कुम्भ और मीन राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• मकर राशि: मकर राशि के व्यक्ति के लिये मेष, कर्क, तुला, वृश्चिक, मकर और मीन राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• कुंभ राशि: कुंभ राशि के व्यक्ति के लिये मेष, वृषभ, सिंह, वृश्चिक, धनु, कुंभ राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।
• मीन राशि: मीन राशि के व्यक्ति के लिये वृषभ, मिथुन, कन्या, धन, मकर राशि के जीवन साथी उपयुक्त रहते हैं।

कुंडली मिलान में वर-वधु के ग्रहों का मिलान करने का तत्पर्य उनके स्वभाव, विचार, भाग्य, संतान, आयु, स्वास्थ्य आदि का ही मिलान होता हैं जिस्से दोनो का आपसी तालमेल एवं जीवन केसा रहेगा इसका पूवानुमान लगाया जाता हैं।

रविवार, दिसंबर 05, 2010

ज्योतिष से जाने जीवनसाथी कि दिशा?

Your Horoscope indicate life partner directions,Your birth chart indicate life partner directions, your planetary position indicate life partner directions, janm kundali se jane jeevan sathi ki disha,

ज्योतिष से जाने जीवनसाथी कि दिशा?


जन्म कुंडली में जीवनसाथी से संबंधित जानकारी देने वाला प्रमुख स्थान सप्तम भाव होता हैं । सप्तम भाव कि बल और निर्बल होने के आधार पर जातक का विवाहित और अविवाहित रहना। वैवाहिक जीवन में सफलता या असफलता के बारे में जाना जाता हैं।

जन्म कुंडली में सप्तम भाव से जीवन साथी की दिशा और स्थान का अंतर निर्धारित किया जाता हैं।

जन्म कुंडली में सप्तम भाव में स्थित ग्रह और सप्तम भाव के स्वामी अर्थात सप्तमेश कि प्रबलता या शुभ ग्रहो के साथ में या प्रभाव में अच्छी स्थिति में होने से इस ग्रह कि राशि कि दिशा के अनुसार जीवन साथी के मिलने कि दिशा के बारे में पता लगाया जा सकता हैं।

इसके उपरांत सप्तम भाव में स्थित ग्रह के बल और प्रभाव का भी अवलोकन करें।

• यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव में स्थित ग्रह सप्तमेश के स्वामी से अधिक बलवान हो, तो इस ग्रह की दिशा के अनुसार साथी की दिशा माननी चाहिये।
• यदि जन्म कुंडली में सप्तम भाव में स्थित ग्रह और सप्तमेश दोनो समान रूप से प्रभावशाली होने पर दोनों ग्रहो के मध्य की दिशा जाननी चाहिए।
• यदि जन्म कुंडली में ग्रह कमजोर हो, और सप्तमेश बलशाली हों, तो सप्तमेश के अनुशार हि जीवनसाथी की दिशा मानना चाहिए।

यहां विभिन्न ग्रहों की दिशा दी जा रही है :-

सूर्य : पूर्व दिशा
चन्द्र : वायव्य दिशा
मंगल : दक्षिण दिशा
बुध : ईशान दिशा
गुरु : उत्तर दिशा
शुक्र : आग्नेय दिशा
शनि : पश्चिम दिशा
राहू-केतु : नैऋत्य दिशा
कितनी दूर होगा लडके-लड़की का ससूराल?

• जन्म कुंडली में सप्तम भाव में वृष राशि, कुंभ राशि अथवा वृश्चिक राशि का प्रभाव हो, तो उसके घर या पैतृक निवास से जीवनसाथी के घर या पैतृक निवास कि दूरी 0-90किलोमीटर के करीब हो सकती है।
• जन्म कुंडली में सप्तम भाव में मिथुन राशि, कन्या राशि, धनु राशि अथवा मीन राशि का प्रभाव हो, तो उसके घर या पैतृक निवास से जीवनसाथी के घर या पैतृक निवास कि दूरी 90-190 किलोमीटर के करीब हो सकती है।
• जन्म कुंडली में सप्तम भाव में मेष राशि, कर्क राशि, तुला राशि अथवा मकर राशि का प्रभाव हो, तो उसके घर या पैतृक निवास से जीवनसाथी के घर या पैतृक निवास कि दूरी 190 या उस्से से अधिक किलोमीटर कि दूरी पर हो सकता है।

विवाह से पूर्व कुंडली मिलान में अल्पायु-दीर्धायु योग भी देख लें।

longevity yog, astrological houses for love and longevity in Vedic Astrology, vivah se purv kundali milan me alpa ayu or dirdhayu yoga,

विवाह से पूर्व कुंडली मिलान में अल्पायु-दीर्धायु योग भी देख लें।


अल्पायु योग
ज्योतिष से जाने कितना जीएँगा आपका साथी जीवन-मृत्यु ईश्वर की ही इच्छानुसार होती हैं। परंतु एक कुशल ज्योतिष मनुष्य के अल्पायु-दीर्धायु योग से उसकी आयु कि जानकारी दे सकता हैं। योग के आधार पर आयु से संबंधित जानकारी देने का उद्देश्य केवल सचेतना एवं पूर्व सूचना मात्र होता हैं। यदि अल्प आयु के योग बन रहें हो तो उस्से बचाव के इष्ट आराधना आराधना के उपाय करने चाहिये जिससे दीर्धायु कि प्राप्ती हो सके। क्योकि अल्पायु योग के कारणा वर को विदुर और कन्या को विधवा होने कि नौबत आजाती हैं। क्योकि मृत्यु तो निश्चित होती हैं उसे कोई नहीं टाल सकता किन्तु यदि कुंडली मिलान में वर या वधु कि

कुंडली में एसे योग पाये जाये तो सोच समझ कर ही विवाह करना उचित होता हैं।
ज्योतिष सिद्धांतो के आधार पर केवल व्यक्ति के जीवन पर उसकी जन्म कुंडली का ही नहीं, उसके संबंधियों की जन्म कुंडली के योगों का भी असर अवश्य पड़ता हैं। जैसे किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई वर्ष विशेष मारक हो परंतु उसके पत्नी की कुंडली में पति का योग बलवान हो, तो उपाय इत्यादी करने पर यह मारक योग केवल स्वास्थ्य कष्ट, अकस्मात दुर्धटना में छोटी-मोटी चोट इत्यादि का योग मात्र बन जाता हैं। अतः आयु निर्धारण हेतु इन सब बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये। हमारे विद्वानो ने आयु निर्धारण के दीधार्यु, मध्यमायु, अल्पायु के कुछ सामान्य नियम बताते हैं।

अल्पायु योगों
आयु निर्धारण हेतु जन्म कुंडली में लग्न के स्वामी कि स्थिती का अधिक महत्व मान गया हैं। यदि लग्नेश षष्टम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हों, तो जातक स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी से ग्रस्त होता हैं। जातक अपने जीवन में स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न समस्या, आकस्मिक दुर्घटना इत्या से से अधिक समय सम्मुखीन होता हैं। व्यक्ति को अपने लग्नेश को अनुकूल बनाने हेतु उपाय करना चाहिये।
• कुंडली में सभी पाप ग्रह शनि, राहू, सूर्य, मंगल, केतु और चंद्रमा कि सूर्य से युक्त होकर तृतीय, षष्टम, द्वादश भाव में स्थित हों, तो आयु पक्ष कमजोर होता हैं।
• कुंडली में लग्नेश और सूर्य लग्न भाव में स्थित हो और उस पर पाप ग्रह कि दृष्टि हो तो आयु योग कमजोर होता हैं।
• कुंडली में अष्टमेश षष्टम या द्वादश भाव में पाप ग्रह के साथ या पाप ग्रह के प्रभाव में हो, तो आयु पक्ष कमजोर होता हैं।
• कुंडली में लग्नेश निर्बल हो और सभी पाप ग्रह केंद्र में स्थित हो, और उस पर शुभ दृष्टि न हो अशुभ ग्रह कि द्दष्टि हो तो आयु योग कमजोर होता हैं।
कुंडली में लग्नेश कमजोर हो एवं धन (द्वितीय) और व्यय (द्वादश) भाव में पाप ग्रह स्थित हो तो आयु ……………..>>


कुंडली से जानें दीर्घायु योग
कुंडली में कुछ योग ऐसे होते है जो मनुष्य को दीर्घायु बनाते है।
• ज्योतिष शास्त्र के अनुशार कुंडली में अष्टम स्थान आयु का होता हैं और अष्टम से अष्टम अर्थात तीसरा स्थान भी आयु का माना जाता हैं।
• दीर्घायु योग उन जातको कि कुंडली मे होते हैं जिनका लग्नेश अर्थात लग्न का स्वामी ग्रह का बलाबल होना एवं शुभ ग्रहों के प्रभाव में होना अति आवश्य होता हैं।
• कुंडली में लग्नेश प्रबल बलवान हों एवं अन्य सभी ग्रह बलवान हो, तो जातक दीर्घायु होता हैं।
• कुंडली में पंचम भाव में चंद्रमा, नवम भाव में गुरु, दशम भाव में मंगल स्थित होने पर दीर्घायु योग होता हैं।
कुंडली में लग्नेश, अष्टमेश और दशम स्थान का स्वामी शनि के साथ केंद्र में स्थित हो, तो दीर्घायु योग ……………..>>


पूर्णायु योग
• कुंडली में लग्नेश और अष्टमेश दोनों चर राशि में स्थित हों, या एक द्विस्वभाव राशि में दूसरा स्थिर राशि में हों तो दीधायु योग होता हैं।
• कुंडली में लग्न और चन्द्र दोनों चर राशि में स्थित हों, या एक द्विस्वभाव राशि में दूसरा स्थिर राशि में हों तो दीधायु योग होता हैं।
• कुंडली में लग्न और होरा लग्न दोनों चर राशि में स्थित हों, या एक द्विस्वभाव राशि में दूसरा स्थिर राशि में हों तो दीधायु योग होता हैं।
• कुंडली में लग्नेश और शुभ ग्रह पणफर भाव में स्थित हों, या अष्टमेश और सभी पाप ग्रह पणफर भाव में हों तो दीधायु योग होता हैं।
कुंडली में अष्टमेश उच्च का होकर केन्द्र में स्थित हों, या त्रिकोण में शुभ ग्रहों से युत हो तो दीधायु ……………..>>


महादीर्घायु योग
• कुंडली में सूर्य, बृहस्पति और मंगल नवम भाव में स्थित हों, वर्गोत्तम में हों, मकर या कुंभ राशि में हों जबकि चन्द्र बली होकर लग्न में हों तो यह योग होता है ।
• कुंडली में शनि और बृहस्पति लग्न से दशम अथवा नवम भाव में स्थित हों और नवमांश में भी ऎसा ही हो, शुभ ग्रहों से द्रष्ट हों एवं सूर्य लग्न में स्थित हो तो महादीर्घायु योग बनता हैं।
लग्न में कर्क राशि हो चन्द्र या बृहस्पति लग्न में स्थित हों और शुक्र और बुध केन्द्र में हों और शेष ग्रह एकादश, षष्टम और तृतीय भाव में हों तो महादीर्घायु योग ……………..>>

विशेष : कुंडली मिलान करते समय इनमें से कोई एक योग कुंडली में हों, तो जातक पूर्ण आयु प्राप्त करता हैं एसा ज्योतिष विद्वानो का कथन हैं। पूर्ण आयु के योग बनने पर भी सावधानी आवश्य होती हैं। क्योकि अनउचित व्यवहार एवं सोच के कारण व्यक्ति व्यसनों या गलत खान-पान के चलते उस्का शरीर बीमारियों का घर बन सकता हैं। गलत कर्मों से आयु योग क्षीण हो जाता हैं। आकस्मिक घटनाओं को भी अवश्य ध्यान में रखते हुवे आयु निर्धारण करें। अतः कोई भी भविष्यवक्ता इस बारे में घोषणा न करें ऐसा गुरुओं का निर्देश होता है। हाँ, खतरे की दी जा सकती है। किए जा सके। ……………..>>
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका दिसम्बर-2010 का अंक पढें।

इसलेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो लेख को यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।

>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (दिसम्बर-2010)
http://gk.yolasite.com/resources/GURUTVA%20JYOTISH%20DEC-2010.pdf

शास्त्रों के अनुसार विवाह के प्रकार

shastro ke anushar vivah ke prakar, shastrokt anushaara vivah ke prakara, marriage type,hindu vedic type,

शास्त्रों के अनुसार विवाह के प्रकार


सभी धर्म में विवाह कि अलग-अलग विधियां होती हैं। विवाह का तात्पर्य होता हैं कि स्त्री-पुरुष को जीवनभर के एक पवित्र रिश्ते में बांधा जाय। हिंदू शास्त्रों के अनुसार विवाह कि प्रमुख आठ विधियों का वर्णन किया गया हैं। इन आठ विधियों में 4 विधियों को श्रेष्ठ और नैतिक माना गया हैं। और अन्य 4 विधियों को पूर्णतः अनैतिक माना गया हैं।

शास्त्रों में ब्राह्म विवाह, देव विवाह, आर्श विवाह और प्राजान्य विवाह को श्रेष्ठ मानागया हैं।
शास्त्रों में असुर विवाह, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह और पिशाच विवाह को अनैतिक मानागया हैं।

भारतीय समाज में श्रेष्ठ और नैतिक विधियों से ही विवाह कराये जाते हैं।

ब्रह्म विवाह :
हिन्दु समाज में ब्रह्म विवाह (ब्राह्म विवाह) आदर्श, सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित विवाह का स्वरूप माना जाता हैं क्योकि ब्रह्म विवाह दोनो पक्ष की सहमति से किया जाता हैं। ब्रह्म विवाह में कन्या का पिता अपनी कन्या के लिए विद्ववान, सामर्थ्यवान एवं उत्तम चरित्र वाला सबसे सुयोग्य वर को अपनी कन्या से विवाह के लिए आमंत्रित कर अपनी पुत्री का कन्यादान करता हैं। ब्रह्म विवाह आजकल सामाजिक विवाह या कन्यादान विवाह कहा जाता हैं।

देव विवाह :
शास्त्रों के अनुशार देव विवाह के अंतर्गत कन्या का पिता अपनी सुपुत्री का विवाह यज्ञ (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) कराने वाले पुरोहित को सेवा कार्य के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देता था। देव विवाह को प्राचिन काल में एक आदर्श विवाह माना जाता था। आजकल देव विवाह आज लुप्त हो गया है।

आर्श विवाह :
शास्त्रों के अनुशार आर्श विवाह प्राचीन काल में सन्यासियों तथा ऋषियों में गृहस्थ बनने की इच्छा जागृत होने पर उन्हें विवाह कि स्वीकृती दिजाती थी। आर्श विवाह के अंतर्गत सन्यासि या ऋषि अपनी पसन्द की कन्या के पिता को गाय और बैल का एक जोड़ा भेंट स्वरुप देता था अर्थात कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (गौदान करके) विवाह प्रस्ताव रखे जाते थे। यदि कन्या के पिता को यह रिश्ता मंजूर होता था, तो वह गाय और बैल के जोडे कि भेंट स्वीकार कर लेता था और अपनी सुपुत्री का विवाह कर देता था। लेकिन रिश्ता मंजूर नहीं होने पर गाय और बैल के जोडे कि भेंट सादर लौटा दी जाती थी।

प्रजापत्य विवाह :
शास्त्रों के अनुशार प्रजापत्य विवाह ब्रह्म विवाह का एक कम विस्तृत, संशोधित रूप था। दोनों में मूल अंतर सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम तक सीमित था। ब्राह्म विवाह में पिता की तरफ से सात एवं माता की तरफ से पांच पीढ़ियों तक जुड़े लोगों से विवाह संबंध निषेध होता था। लेकिन प्रजापत्य विवाह में पिता की तरफ से पांच एवं माता की तरफ से तीन पीढ़ियों के सपिण्डों में ही विवाह निषेध होता था। प्रजापत्य विवाह में पिता अपनी कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना 'प्रजापत्य विवाह' कहलाता था।

आसुर विवाह :
शास्त्रों के अनुशार आसुर विवाह ब्रह्म विवाह से विपरीत कन्या के पिता को दान या कन्या का मूल्य देख उसे खरीदा जाता था या विवाह में कन्या के भाई और वर की बहन कि अदला-बदली कि जाती थी। ब्रह्म विवाह में कन्या मूल्य लेना कन्या के पिता के लिए निषिद्ध होता था। ब्रह्म विवाह में कन्या के भाई और वर की बहन का विवाह (अदला-बदली) भी निषिध्द होता है।

गंधर्व विवाह :
शास्त्रों के अनुशार गंधर्व विवाह को आधुनिक युग के प्रेम विवाह का पारंपरिक रूप था। पौराणिक काल में गंधर्व विवाह के अंतर्गत अपने परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेते थे। उस काल में गंधर्व विवाह की कुछ विशेष परिस्थितियों एवं विशेष वर्गों में स्वीकृति थी परन्तु परंपरा में इसे आदर्श विवाह नहीं माना जाता था।

राक्षस विवाह :
शास्त्रों के अनुशार राक्षस विवाह को पौराणिक काल में कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना जो लोकप्रिय हरण विवाह के रुप में प्रचलन में रहा
था। पौराणिक काल में राजाओं और दिवासि कबीलों ने युध्द में हारे राजा तथा सरदारों ने मैत्री संबंध बनाने के उद्देश्य से उनकी पुत्रियों से विवाह करने की प्रथा चलायी थी। राक्षस विवाह में स्त्री को युध्द में जीत के प्रतीक के रूप में पत्नी बनाया जाता था। यह स्वीकृत था परंतु आदर्श नहीं माना जाता था।

पैशाच विवाह :
शास्त्रों के अनुशार पैशाच विवाह को विवाह का निकृष्टतम रूप माना गया हैं। जिस के अंतर्गत कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता इत्यादि का लाभ उठा कर जबरदस्ती से शीलहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और लड़की के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतिम विकल्प के रूप में उसे विवाह रूप में स्वीकार किया जाता था। इस विवाह से उत्पन्न संतान को वैध संतान के सारे अधिकार प्राप्त होते थे।

कुंडली से जाने विवाह का सही समय

your birth chart indicate marriage time, your horoscope indicate marriage Age, janm kundli se jane vivah ka sahi samay, janam patrika se vivah ka sahi samay, your kundli indicate marriage time, जन्म पत्रिका से जाने विवाह का समय, जातक से जाने विवाह कि उम्र,  जन्म पत्रिका से जाने शादी का सही समय,
 

कुंडली से जाने विवाह का सही समय


अक्सर बच्चों के बड़े होते ही माता-पिता को उनकी शादी के लिए चिंता होने लगती हैं। कि उनके बच्चों की शादी कब होगी। इश्चर द्वारा निर्मित इस सृष्टी में व्यक्ति के हर कार्य अपने निश्चित समय पर होते हैं। इसी प्रकार व्यक्ति कि शादी कब होगी, होगी भी या नहीं यह ईश्वर ने पहले से लिख कर रखा होता हैं। इस इश्चर द्वारा लिखे इस समय को यदि व्यक्ति चाहे तो किसी जानकार ज्योतिषी से अपनी जन्म कुंडली दिखवाकर विवाह के समय के बारे में जान सकता हैं। यदि जन्म कुंडली विवाह से संबंधित भाव में शुभ ग्रहों कि अच्छी स्थिती या द्रष्टि हों, जन्म कुंडली में अच्छे योग हो तो शीध्र विवाह के योग बनते हैं। जन्म कुंडली में विवाह से संबंधित भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो शादी विलंब से होती हैं।

• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों कर किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संबंध बना कर सप्तम भावमें उच्च का हों, तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष की आयु में होने कि अधिक संभावनाएं बनती हैं।
• कुंडली में सप्तम भाव में स्वगृही शुक्र हो और द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों, तो किशोर अवस्था या युवान अवस्था में हि व्यक्ति का विवाह होने के योग बनने लगते हैं।
• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में शुभ ग्रहों से लग्नेश व सप्तमेश का आपस में स्थान परिवर्तन या दृष्टि हो, विशेष कर गुरु का स्थान परिवर्तन या दृष्टि संबंध होने से कन्या का विवाह योग 18 से 20 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनाता हैं एवं पुरुष का विवाह योग 21 से 23 वर्ष के मध्य होने की संभावना बनाता हैं।
• यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह योग 21 वें वर्ष में होने की संभावना बनाता हैं।
यदि किसी व्यक्ति कि कुंडली में लग्नेश बलशाली हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो व्यक्ति का विवाह शीघ्र ……………..>>

विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता हैं। सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने कि अधिक संभावनाएं होती हैं।
इसके विपरीत यदि सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनों किसी भी प्रकार के पाप ग्रह के प्रभाव में हों तो विवाह में विलम्ब होने की संभावना बनती हैं। विवाह के समय का निर्धारण करने के लिये कुंडली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते हैं।
किसी व्यक्ति को जीवन में कितना वैवाहिक सुख मिलेगा यह सब कुंडली में बन रहे योग पर निर्भर करता हैं। यदि शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित होंता हो, और अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं।

कुंडली के योग विवाह समय को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
• यदि जन्म कुंडली में अष्टमेश पंचम भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती हैं।
• यदि जन्म कुंडली में सूर्य एवं चन्द्र का शनि से पूर्ण दृष्टि संबंध रखते हों तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते हैं।
• यदि सप्तम भाव का स्वामी सूर्य या चन्द्र दोनों में से कोई हो तभी इस प्रकार कि संभावना विशेष बनती हैं।
• यदि जन्म कुंडली में शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शुक्र से सप्तम भाव में शनि स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती हैं।

यदि जन्म कुंडली में शनि सप्तमेश होकर एकादश भाव में स्थित हों और एकादशेश दशम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 21 से 23 वर्ष में होने की संभावना ……………..>>


सप्तम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार विवाह समय का निर्णय:-
1. सप्तम भाव का स्वामी सूर्य हों तो व्यक्ति का विवाह 24 से 26 वर्ष के मध्य होने की संभावना होती हैं।
2. चन्द्र सप्तमेश होने पर व्यक्ति का विवाह 21 से 22 वें वर्ष के मध्य होने की संभावना होती हैं।
3. मंगल सप्तमेश हो तो 24 से 27 के मध्य की आयु में विवाह ……………..>>

इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो लेख को यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।

विवाह से संबंधित स्वप्न

marriage related Dreams, Love marriage Related Dream, Vivah sambandhit sawpna,

विवाह से संबंधित स्वप्न


कुछ प्रकार के स्वप्न एक विशेष प्रकार का फल देते हैं। आपके मार्ग दर्शन के लिये ज्योतिष के ग्रंथो में उल्लेखित दांपत्य जीवन एवं प्रेम-प्रसंगों से सम्बंधित स्वप्न फल का विचार यहा दर्शाएं गएं हैं।

• स्वप्न शास्त्र के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले सपनों से भी प्रेम विवाह होने या ना होने के संकेत प्राप्त होते हैं।
• लडकी का स्वप्न में किसी चिडिय़ा को चहचहाती हुई देखना प्रेम विवाह होने का संकेत हैं।
• लड़की का स्वप्न में स्वयं को बिस्तर पर चद्दर बिछाते हुए देखना किसी से जल्दी प्रेम होने का या अपना प्रेम विवाह होने का संकेत हैं
• स्वप्न में स्वयं को संगीत सुनते हुए देखना प्रेम संबंध में सफलता प्राप्ति का संकेत हैं।
• स्वप्न में सर्कस जेसी कलाबाजी देखना उसके प्रेम में कोई तीसरा व्यक्ति दखल देने का संकेत हैं।
• स्वप्न में प्रणय दृश्य देखना प्रेम संबंध में परेशानि आने के संकेत हैं।
• स्वप्न में हीरे-जवाहरात या हीरे के आभूषण उपहार में प्राप्त होते देखना दांपत्य जीवन में परेशानियां आसकती हैं।
• स्वप्न में सोने के आभूषण देखना समृद्ध परिवार में विवाह होने का संकेत हैं।
• स्वप्न में बाजार में घुमते देखे देखना मनपसंद जीवन साथी ……………..>>


इसलेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो लेख को यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।


>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (दिसम्बर-2010)

http://gk.yolasite.com/resources/GURUTVA%20JYOTISH%20DEC-2010.pdf

शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010

प्रेम विवाह योग

love marriage yog in horoscop, love marriage yoga in janma kundali, will love marriage was posible or not indicate your birth chart, love marriage indicate your horoscope, love marriage indicate your kundli,

प्रेम विवाह योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों कि स्थिती एवं द्रष्टि लड़के और लड़की के बीच प्रेम को विवाह के परिणित सूत्र बांधने में अहम भूमिका निभाते हैं।

जब किसी लड़के और लड़की के बीच प्रेम होता हैं और वे दोनों एक साथ अपना जीवन बीताने के स्वप्न देखते हैं और विवाह करना चाहते हैं। इसी लिये प्रेम में कोई वक्ति अपनी मंजिल पाने में सफल होगा या असफल अर्थात उसकी शादी उस्से होगी या नहीं। व्यक्ति अपने प्रेम को विवाह के बंधन में कामयाब होगा नाकामयाब ? एसी स्थितीओं में ज्योतिष विद्या के जानकार इसके लिए ग्रह योग को जिम्मेदार मानते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शुक्र को प्रेम का कारक ग्रह माना गया हैं।
विद्वानो के मत से जन्म कुंडली में शुक्र का प्रभाव लग्न, पंचम, सप्तम तथा एकादश भावों पर होने पर व्यक्ति प्रेमी स्वभाव का होता हैं।

व्यक्ति का प्रेमी स्वभाव का होना एक अलग बात हैं और प्रेम का विवाह में परिणत होना दूसरी बात हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता हैं और सप्तम भाव विवाह का भाव होता हैं। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।

• यदि जन्म कुंड़ली में पंचम भाव का सप्तम भाव से सम्बन्ध होता हैं, तों व्यक्ति का प्रेम वैवाहिक सूत्र में बंधता हैं।
• जन्म कुंड़ली में नवम भाव और लग्न का शुभ सम्बन्ध होने से व्यक्ति अपने प्रेम को वैवाहिक सूत्र में बंध कर सफल बनाये रखने का प्रयास करता हैं।
• इन योगों का कुंडली में होने से हि व्यक्ति का केवल प्रेम विवाह……………..>>


प्रेम विवाह को नवमांश कुंडली से भी देखा जाता हैं।
• यदि जन्म कुंडली प्रेम विवाह योग नहीं हैं और नवमांश कुंडली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती हों, तो प्रेम विवाह की संभावना अत्याधिक प्रबल होती हैं।
• यदि जन्म कुंड़ली में शुक्र लग्न में लग्नेश के साथ में स्थित तो प्रेम विवाह के योग प्रबल होते हैं।
• शास्त्रों में शनि और केतु कि युतिको पाप ग्रह माना जाता हैं। पर सप्तम भाव में शनि और केतु कि युतिको प्रेमियों के लिए ……………..>>


सप्तमेश में नवमेश कि महादशा या अन्तरदशा का पंचमेश
के साथ संबंध हों, तो इस योग में प्रम विवाह होने कि
संभावना अधिक होती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रेम विवाह से संबंधित तीन कारक ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र होते हैं। एसा माना जाता हैं इन तीनों ग्रहों के कारण हि कोई व्यक्ति को किसी से प्रेम होता हैं।
जन्म कुंडली में सूर्य, बुध और शुक्र तीनो कि युति हों, तो व्यक्ति के प्रेम विवाह होने कि संभावना अधिक होती हैं।
• जन्म कुंडली में सूर्य, बुध और शुक्र क्रमशः अलग-अलग भावों में स्थित होने से प्रेम होता हैं लेकिन विवाह नहीं होता।
• जन्म कुंडली में सूर्य, बुध और शुक्र तीनो ग्रहों में से किसी दो ग्रहों कि युति बन रही हों एवं दोनो के साथ में अन्य एक ग्रह स्थित हों तो बडी ……………..>>



इसलेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो लेख को यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।