गुरु प्रार्थना
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courtesy: GURUTVA
JYOTISH Monthly E-Magazine July-2018
लेख सौजन्य: गुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रिका (जुलाई-2018)
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु हि शंकर हैं; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म हैं; एसे सद्गुरु को नमन ।
ध्यानमूलं गुरुर्मूतिः पूजामूलम गुरुर पदम्।
मंत्रमूलं गुरुरर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरुर कृपा।।
भावार्थ: गुरु की मूर्ति ध्यान का मूल कारण है, गुरु के चरण पूजा का मूल कारण हैं, वाणी जगत के समस्त मंत्रों का और गुरु की
कृपा मोक्ष प्राप्ति का मूल कारण हैं।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव
बंधुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ति द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभुतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥
भावार्थ: ब्रह्मा के आनंदरुप परम् सुखरुप, ज्ञानमूर्ति, द्वंद्व से परे, आकाश जैसे निर्लेप, और सूक्ष्म "तत्त्वमसि" इस ईशतत्त्व की अनुभूति हि जिसका लक्ष्य है; अद्वितीय, नित्य
विमल, अचल, भावातीत, और त्रिगुणरहित - ऐसे सद्गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ ।
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