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सोमवार, अक्टूबर 15, 2012

आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (16-अक्टूबर-2012)

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आश्विन नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त, विधि-विधान (16-अक्टूबर-2012)
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष 2012 तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे।

पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है।
घट स्थापनकी शास्त्रोक्त विधि इस प्रकार हैं।
घट स्थापना आश्विन प्रतिपदा के दिन कि जाती हैं।
घट स्थापना हेतु चित्रा नक्षत्र को वर्जित माना गया हैं। (चित्रा नक्षत्र 16-अक्टूबर-2012 को प्रातः 06:45:28 बजे तक रहेगा।) घट स्थापना में चित्रा नक्षत्र को निषेध माना गया हैं। अतः घट स्थापना इससे पश्चयात करना शुभ होता हैं।
घट स्थापना हेतु सबसे शुभ अभिजित मुहुर्त माना गया हैं। जो 16-अक्टूबर-2012 को सुबह 11:30 से दोपहर 12:42 बजे के बीच है।
विद्वनो के मत से इस वर्ष शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र में सूर्योदयी नक्षत्र चित्रा रहेगा जो प्रातः 06:45:28 बजे समाप्त हो जायेगा और उसके पश्चयात विशाखा नक्षत्र रहेगा। विशाखा नक्षत्र को पूजन हेतु उत्तम माना जाता हैं। हैं। इस लिये सूर्योदय के पश्चयात 06:45:28 बजे के बाद से ही कलश (घट) की स्थापना करना शुभदायक रहेगा।
इस वर्ष प्रतिपदा तिथि दोपहर 02:17:56 बजे तक रहने के कारण धट स्थापना इस समय से पूर्व करना उत्तम रहेगा। लेकिन शास्त्रोक्त विधान से प्रतिपदा तिथि सोमवार 15 अक्टूबर-2012 को संध्या 17:32:20 से प्रारंभ होकर मंगलवार 16-अक्टूबर-2012 को दोपहर 02:17:56 बजे तक रहने से प्रतिपदा तिथि सूर्योदय कालिन तिथि होने से संपूर्ण दिन प्रतिपदा माना जायेगा।
घट स्थापना के शुभ मुहुर्त सुबह 9.30 से 11 बजे, सुबह 11.30 से दोपहर 12.42 तक अभिजित मुहुर्त, सुबह 10.59 बजे से दोपहर 1.05 बजे तक वृष्चिक्र लग्न मुहुर्त, दोपहर 2.52 से शाम 4.23 तक कुंभ लग्न मुहुर्त और 7.28 बजे से रात्रि 9.24 तक वृषभ लग्न मुर्हुत रहेगा। कुछ जानकार विद्वानो का मत हैं की नवरात्र स्वयं अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहुर्त होने के कारण इस तिथि में व्याप्त समस्त दोष स्वतः नष्ट हो जाते हैं इस लिए घट स्थापना प्रतिपदा के दिन किसी भी समय कर सकते हैं।
यदि ऎसे योग बन रहे हो, तो घट स्थापना दोपहर में अभिजित मुहूर्त या अन्य शुभ मुहूर्त में करना उत्तम रहता हैं।

कलश स्थापना हेतु अन्य शुभ मुहूर्त
·   लाभ मुहूर्त सुबह १०:30 से 12 बजे तक
·   अमृत मुहूर्त दिन 12.00 से 01.30 बजे तक
·   शुभ मुहूर्त सुबह 03.00 से 04.30 बजे तक
·   अभिजित मुहुर्त सुबह 11.30 से दोपहर 12.42 बजे तक
·   वृष्चिक लग्न सुबह 10.59 बजे से दोपहर 1.05 बजेतक
·   कुंभ लग्न दोपहर 2.52 से शाम 4.23 बजे तक
·   वृषभ लग्न 7.28 बजे से रात्रि 9.24 बजे तक
के मुहूर्त घट स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त ……………..>>
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घट स्थापना हेतु सर्वप्रथम स्नान इत्यादि के पश्चयात गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करना चाहिए। घट स्थापना हेतु शुद्ध मिट्टी से वेदी का निर्माण करना चाहिए, फिर उसमें जौ और गेहूं ……………..>>
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यदि पूर्ण विधि-विधान से घट स्थापना करना हो तो पंचांग पूजन (अर्थात गणेश-अंबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन) तथा पुण्याहवाचन (मंत्रोंच्चार) विद्वान ……………..>>
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पश्चयात देवी की मूर्ति स्थापित करें तथा देवी
प्रतिमाका षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें। इसके बाद श्रीदुर्गासप्तशती का संपुट अथवा साधारण पाठ करना चाहिए। पाठ की पूर्णाहुति के दिन दशांश हवन अथवा दशांश पाठ करना चाहिए।
घट स्थापना के साथ दीपक की स्थापना भी की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, पुष्प से पूजन करना चाहिए।
पूजन के समय इस मंत्र का जप करें-
भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।
इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

नोट: उपरोक्त वर्णित मुहूर्त को सूर्योदय कालिन तिथि या समय का निरधारण नई दिल्ली के अक्षांश रेखांश के अनुशार आधुनिक पद्धति से किया गया हैं इस विषय में विभिन्न मत एवं सूर्योदय ज्ञात करने का तरीका भिन्न होने के कारण सूर्योदय समय का निरधारण भिन्न हो सकता हैं सूर्योदय समय का निरधारण स्थानिय सूर्योदय के अनुशार हि करना उचित होगा
इस लिए किसी भी मुहूर्त का चयन करने से पूर्व किसी विद्वान व जानकार से इस विषय में सलाह विमर्श करना उचित रहेगा।

संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष -पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।


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