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द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर -2012)
नवरात्र
के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। क्योकि ब्रह्म का अर्थ हैं तप। मां ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने
वाली भगवती हैं इसी कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
शास्त्रो
में मां ब्रह्मचारिणी को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया हैं। शास्त्रो
में ब्रह्मचारिणी देवी के स्वरूप का वर्णन पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत दिव्य दर्शाया गया हैं।
मां
ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहने उनके दाहिने हाथ में अष्टदल कि जप
माला एवं बायें हाथ में कमंडल सुशोभित रहता हैं। शक्ति स्वरुपा देवी ने भगवान शिव को प्राप्त करने
के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर तपस्या रत रहीं और 3000 साल तक शिव कि
तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी
पत्तियां खाकर कि, उनकी इसी कठिन तपस्या के
कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया।
मंत्र:
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।
देवी
प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ध्यान:-
वन्दे
वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी
शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय
दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल
परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन
पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न
नाभिंनितम्बनीम्।।
स्तोत्र:-
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्। ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी
त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्। धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति
दायिनी शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच:-
त्रिपुरा
मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।
अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग
प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति को अनंत फल कि प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति में तप, त्याग, सदाचार, संयम जैसे सद्
गुणों कि वृद्धि होती हैं।
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका अक्टूबर-2012 का अंक पढें।
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