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रविवार, फ़रवरी 06, 2011

सरस्वती उपासना का महत्व

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सरस्वती उपासना का महत्व


हिन्दू धर्म के वैदिक साहित्य में मंत्र उपासना का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। आज के आधुनिक युग में लगातार संशोधित हो रहे वैज्ञानिक शोध से यह सिद्ध हो चूका अनुभूत सत्य की मन्त्रों में अद्भुत शक्ति होती हैं। लेकिन मंत्र की सकारात्मक शक्ति जाग्रह हो इस लिए मंत्र के प्रयोग का उचित ज्ञान, मंत्र की क्रमबद्धता और मंत्र का शुद्ध उच्चारण अति आवश्यक होता हैं।

जैसे भीड में जाते हुए या बैठे हुए व्यक्ति में से जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता हैं। उस व्यक्ति का ध्यान ही ध्वनि की और गति करता हैं। अन्य लोग उसी अवस्था में चल रहे होते हैं या बैठे रहते हैं अथवा विशेष ध्यान नहीं देते हैं। उसी प्रकार सोएं हुए व्यक्तियों में जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता हैं केवल उसी व्यक्ति की निंद्रा भंग होती हैं अन्य लोग सोएं रहते हैं या विशेष ध्यान नहीं देते। उसी प्रकार देवी-देवता के विशेष मंत्र का शुद्ध उच्चारण कर निश्चित देवी-देवता की शक्ति को जाग्रत किया जाता सकता हैं।

देवी सरस्वती हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी-देवताओ में एक हैं, जिसे मन, बुद्धि, ज्ञान और कला, की अधिष्टात्री देवी माना जाता हैं। देवी का स्वरुप चन्द्रमा के समान श्वेत उज्जवल, श्वेतवस्त्र धारी, श्वेत हंस पर विराजित, चार भुजाधारी, हाथ में वीणा, पुस्तक, माला लिए हैं और एक हाथ वरमुद्रा में हैं। मस्तक पर रत्न जडित मुगट शोभायमान हैं।

देवी सरस्वती के पूजन से जातक को विद्या, बुद्धि व नाना प्रकार की कलाओं में सिद्ध एवं सफलता प्राप्त होती हैं। सरस्वती ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।

शास्त्रो में देवी सरस्वती को सरस्वती, महासरस्वती, नील सरस्वती कहा गया हैं। देवी सरस्वती की स्तुति ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवराज इन्द्र और समस्त देवगण करते हैं।देवी सरस्वती की कृपा से जड से जड व्यक्ति भी विद्वान बन जाते हैं। हमारे धर्म शास्त्रो में इस के उदाहरण भरे पडे हैं। जिस में से एक उदाहरन कालीदास जी का हैं। देवी सरस्वती का विशेष उत्सव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को अर्थात् वसन्त पंचमी को मनाया जाता हैं।

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