विभिन्न चमत्कारी जैन मंत्र
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अगस्त-2011)
एका अक्षर का मंत्र :-
ॐ (ओम्)
ॐ शब्द की ध्वनि पांचो परमेष्ठी नामों के पहले अक्षर को मिलाने पर बनती हैं।
जैन मुनियों के मत से अरहन्त का पहला अक्षर 'अ' जो अशरीरी अर्थात सिद्ध का 'अ' हैं। ओम शब्द में आचार्य का 'आ', उपाध्याय का 'उ', तथा मुनि अर्थात साधु जनो का 'म्', इस प्रकार सभी शब्दो को जोडने ॐ बनता हैं।
दो अक्षरों का मंत्र :-
1. सिद्ध
1. सिद्ध
2. ॐ ह्रीं
चार अक्षरों का मंत्र :-
1. अरहन्त
1. अरहन्त
2. अ सि साहू
पंचाक्षरी मंत्र :-
अ सि आ उ सा
पंचाक्षरी मंत्र :-
अ सि आ उ सा
षष्टाक्षरी मंत्र :-
1. अरहन्त सिद्ध
1. अरहन्त सिद्ध
2. अरहन्त सि सा
3. ॐ नमः सिद्धेभ्य
3. ॐ नमः सिद्धेभ्य
4. नमोर्हत्सिद्धेभ्यः
सप्ताक्षरी मंत्र:-
ॐ श्रीं ह्रीं अर्हं नमः।
अष्टाक्षरी मंत्र:-
ॐ नमो अरिहंताणं।
सोलह अक्षरों का मंत्र :-
अरहंत सिद्ध आइरिया उवज्झाया साहू
अरहंत सिद्ध आइरिया उवज्झाया साहू
35 अक्षरों का मंत्र :-
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।।
लघु शान्ति मंत्र:-
ॐ ह्रीम् अर्हम् असिआउसा सर्वशान्तिम् कुरु कुरु स्वाहा ।
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं ।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ।।
लघु शान्ति मंत्र:-
ॐ ह्रीम् अर्हम् असिआउसा सर्वशान्तिम् कुरु कुरु स्वाहा ।
मनोरथ सिद्धिदायक मंत्र :-
ॐ ह्रीम् श्रीम् अर्हम् नमः ।
रोगनाशक मंत्र :-
ॐ ऐम् ह्रीम् श्रीम् कलिकुण्डदण्डस्वामिने नमः आरोग्य-परमेश्वर्यम् कुरु कुरु स्वाहा ।
(रोग शांति हेतु उक्त मन्त्र को श्रीपार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के सम्मुख शुद्धता व् नियम से 108 बार जप करना अति लाभदायक होता हैं।)
ॐ ह्रीम् श्रीम् अर्हम् नमः ।
रोगनाशक मंत्र :-
ॐ ऐम् ह्रीम् श्रीम् कलिकुण्डदण्डस्वामिने नमः आरोग्य-परमेश्वर्यम् कुरु कुरु स्वाहा ।
(रोग शांति हेतु उक्त मन्त्र को श्रीपार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के सम्मुख शुद्धता व् नियम से 108 बार जप करना अति लाभदायक होता हैं।)
रोग निवारक मंत्र :-
ॐ ह्रीं सकल-रोगहराय श्री सन्मति देवाय नमः ।
रोग निवारक नवकार मंत्र :-
ॐ नमो आमोसहि पत्ताणं
ॐ नमो खेलोसहि पत्ताणं
ॐ नमो जेलोसहि पत्ताणं
ॐ नमो सव्वोसहि पत्ताणं स्वाहा।
(उक्त मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करने से सर्व प्रकार के रोगो की शांति होती हैं। रोगी व्यक्ति के कष्ट मे न्यूनता आती हैं।)
मनोवांछित कार्यसिद्धि मंत्र:- ……………..>>
सर्वकामना पूरण अर्हं मंत्र:- ……………..>>
सर्वकामना पूरण मंत्र:- ……………..>>
सर्व संपत्तिदायक त्रिभुवन स्वामीनी विद्या मंत्र:-
ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं असिआ उसा चुलु चुलु हुलु हुलु कुलु कुलु मुलु मुलु इच्छियंइ मे कुरु कुरु स्वाहा।
(किसी पवित्र स्थान पर साधक अपने सम्मुख पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति/फोटो स्थापित करके धूप-दीप करे। चमेली के 24,000 फूल लेकर, हर एक फूल पर एक मंत्र का जप करते हुवे फूल को भगवान को अर्पण करते जाये। जप पूरे होने पर मंत्र सिद्ध हो जाता हैं। फिर उक्त मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप करे। जप से साधक को धन, वैभव, संतति, संपत्ति, पारिवारीक सुख इत्यादि की प्राप्ति होती हैं।
विवाद विजय मंत्र:- ……………..>>
कलेश नाशक मंत्र:-
ॐ अर्हं आसिआ उसा नमः।
(उक्त मन्त्र के सवालाख जप करने से चमत्कारी परिणाम प्राप्त होते हैं।)
(उक्त मन्त्र के सवालाख जप करने से चमत्कारी परिणाम प्राप्त होते हैं।)
मनोवांछित कार्यसिद्धि मंत्र:-
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असिआ उसा स्वाहा।
(उक्त मन्त्र के सवालाख जप पूर्ण होने के पश्चयात प्रतिदिन एक माला जप करने से मनोरथ पूर्ण होते हैं।)
सर्वग्रह शान्ति मंत्र :-
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व-शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
(उक्त मन्त्र को सूर्योदय के समय जप करने से शीघ्र शुभ फलो की प्राप्ति होती हैं।)
शान्तिकारक मंत्र :-
1. ॐ ह्रीं परमशान्ति विधायक श्री शान्तिनाथाय नमः ।
2. ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत परमसिद्धेभ्यो नमः ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः असिआउसा सर्व-शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
(उक्त मन्त्र को सूर्योदय के समय जप करने से शीघ्र शुभ फलो की प्राप्ति होती हैं।)
शान्तिकारक मंत्र :-
1. ॐ ह्रीं परमशान्ति विधायक श्री शान्तिनाथाय नमः ।
2. ॐ ह्रीं श्री अनंतानंत परमसिद्धेभ्यो नमः ।
घंटाकर्ण मंत्र :-
ॐ ह्रीं घंटाकर्णो महावीर, सर्वव्याधि-विनाशकः ।
विस्फोटकभयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ।1।
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ।2।
तत्र राजभयं नास्ति, यन्ति कर्णे जपात्क्षयम् ।
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न ।3।
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते ।
अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ श्रीं घंटाकर्ण !
नमोस्तु ते ! ॐ नर वीर ! ठः ठः ठः स्वाहा ।।
(घंटाकर्ण महावीर का उक्त मंत्र कलियु में तत्काल प्रभाव देने में समर्थ एवं चमत्कारी हैं इस मन्त्र का नियमित 21 बार जप करने से राज-भय, चोर-भय, अग्नि और सर्प - भय, सब प्रकार की भूत-प्रेत-बाधा दूर होतें हैं साधक की सर्व विपत्ति का स्वतः ही निवारण होने लगता हैं। )
ॐ ह्रीं घंटाकर्णो महावीर, सर्वव्याधि-विनाशकः ।
विस्फोटकभयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबलः ।1।
यत्र त्वं तिष्ठसे देव, लिखितोऽक्षर-पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वात-पित्त-कफोद्भवाः ।2।
तत्र राजभयं नास्ति, यन्ति कर्णे जपात्क्षयम् ।
शाकिनी भूत वेताला, राक्षसाः प्रभवन्ति न ।3।
नाकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दंश्यते ।
अग्निचौरभयं नास्ति, ॐ श्रीं घंटाकर्ण !
नमोस्तु ते ! ॐ नर वीर ! ठः ठः ठः स्वाहा ।।
(घंटाकर्ण महावीर का उक्त मंत्र कलियु में तत्काल प्रभाव देने में समर्थ एवं चमत्कारी हैं इस मन्त्र का नियमित 21 बार जप करने से राज-भय, चोर-भय, अग्नि और सर्प - भय, सब प्रकार की भूत-प्रेत-बाधा दूर होतें हैं साधक की सर्व विपत्ति का स्वतः ही निवारण होने लगता हैं। )
महामृत्युंजय मन्त्र :-
ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं, ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रः णमो लोए सव्वसाहूणं, मम सर्व -ग्रहारिष्टान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ ह्रां णमो अरिहंताणं । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं, ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं, ॐ ह्रः णमो लोए सव्वसाहूणं, मम सर्व -ग्रहारिष्टान् निवारय निवारय अपमृत्युं घातय घातय सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
(उक्त मन्त्र को विधि-विधान से धूप-दीप जलाकर पूर्ण निष्ठा पूर्वक इस मंत्र का स्वयं जाप कर सकते हैं या अन्य द्वारा करवा सकते हैं। यदि अन्य व्यक्ति जाप करे तो 'मम' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जोड़ लें जिसके लिए जाप किया जारहा है। ) उक्त मंत्र का सवा लाख जाप करने से ग्रह-बाधा दूर हो जाती है । जाप के अनंतर दशांश आहुति देकर हवन करना चाहिए।
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका अगस्त-2011 का अंक पढें।
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>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अगस्त-2011)AUG-2011
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