गुरुमंत्र, गुरुमन्त्र, ગુરુમંત્ર, ગુરુમન્ત્ર, ಗುರುಮಂತ್ರ, ಗುರುಮನ್ತ್ರ, குருமம்த்ர, ருமந்த்ர, గురుమంత్ర, గురుమన్త్ర, ഗുരുമംത്ര, ഗുരുമന്ത്ര, ਗੁਰੁਮਂਤ੍ਰ, ਗੁਰੁਮਨ੍ਤ੍ਰ, গুরুমংত্র, গুরুমন্ত্র, ଗୁରୁମଂତ୍ର, ଗୁରୁମନ୍ତ୍ର, gurumanra, gurumantra,
गुरुमंत्र के प्रभाव से ईष्ट दर्शन
गुरु प्रार्थना (गुरु पुर्णिमा, Guru Purnima-2011), 15-July -2011, 15-जूलाई-2011
guru poornima-2011, guru purnima-2011, shravan mas-2011, srawan masha, गुरु पुर्णिमा, गुरु पूर्णीमा, गुरु पूर्णीमा, चातुर्मास व्रत-नियम प्रारंभ, गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा, स्नान-दान हेतु उत्तम आषाढ़ी पूर्णिमा, मुड़िया पूनम-गोवर्धन परिक्रमा (ब्रज), संन्यासियों का चातुर्मास प्रारंभ, ગુરુ પુર્ણિમા, ગુરુ પૂર્ણીમા, ગુરુ પૂર્ણીમા, ચાતુર્માસ વ્રત-નિયમ પ્રારંભ, ગુરુ પૂર્ણિમા, વ્યાસ પૂર્ણિમા, સ્નાન-દાન હેતુ ઉત્તમ આષાઢ઼્ઈ પૂર્ણિમા, મુડ઼્ઇયા પૂનમ-ગોવર્ધન પરિક્રમા (બ્રજ), સંન્યાસિયોં કા ચાતુર્માસ પ્રારંભ, ಗುರು ಪುರ್ಣಿಮಾ, ಗುರು ಪೂರ್ಣೀಮಾ, ಗುರು ಪೂರ್ಣೀಮಾ, ಚಾತುರ್ಮಾಸ ವ್ರತ-ನಿಯಮ ಪ್ರಾರಂಭ, ಗುರು ಪೂರ್ಣಿಮಾ, ವ್ಯಾಸ ಪೂರ್ಣಿಮಾ, ಸ್ನಾನ-ದಾನ ಹೇತು ಉತ್ತಮ ಆಷಾಢ಼್ಈ ಪೂರ್ಣಿಮಾ, ಮುಡ಼್ಇಯಾ ಪೂನಮ-ಗೋವರ್ಧನ ಪರಿಕ್ರಮಾ (ಬ್ರಜ), ಸಂನ್ಯಾಸಿಯೋಂ ಕಾ ಚಾತುರ್ಮಾಸ ಪ್ರಾರಂಭ, குரு புர்ணிமா, குரு பூர்ணீமா, குரு பூர்ணீமா, சாதுர்மாஸ வ்ரத-நியம ப்ராரம்ப, குரு பூர்ணிமா, வ்யாஸ பூர்ணிமா, ஸ்நாந-தாந ஹேது உத்தம ஆஷாடீ பூர்ணிமா, முடியா பூநம-கோவர்தந பரிக்ரமா (ப்ரஜ), ஸம்ந்யாஸியோம் கா சாதுர்மாஸ ப்ராரம்ப, గురు పుర్ణిమా, గురు పూర్ణీమా, గురు పూర్ణీమా, చాతుర్మాస వ్రత-నియమ ప్రారంభ, గురు పూర్ణిమా, వ్యాస పూర్ణిమా, స్నాన-దాన హేతు ఉత్తమ ఆషాఢీ పూర్ణిమా, ముడియా పూనమ-గోవర్ధన పరిక్రమా (బ్రజ), సంన్యాసియోం కా చాతుర్మాస ప్రారంభ, ഗുരു പുര്ണിമാ, ഗുരു പൂര്ണീമാ, ഗുരു പൂര്ണീമാ, ചാതുര്മാസ വ്രത-നിയമ പ്രാരംഭ, ഗുരു പൂര്ണിമാ, വ്യാസ പൂര്ണിമാ, സ്നാന-ദാന ഹേതു ഉത്തമ ആഷാഢീ പൂര്ണിമാ, മുഡിയാ പൂനമ-ഗോവര്ധന പരിക്രമാ (ബ്രജ), സംന്യാസിയോം കാ ചാതുര്മാസ പ്രാരംഭ, ਗੁਰੁ ਪੁਰ੍ਣਿਮਾ, ਗੁਰੁ ਪੂਰ੍ਣੀਮਾ, ਗੁਰੁ ਪੂਰ੍ਣੀਮਾ, ਚਾਤੁਰ੍ਮਾਸ ਵ੍ਰਤ-ਨਿਯਮ ਪ੍ਰਾਰਂਭ, ਗੁਰੁ ਪੂਰ੍ਣਿਮਾ, ਵ੍ਯਾਸ ਪੂਰ੍ਣਿਮਾ, ਸ੍ਨਾਨ-ਦਾਨ ਹੇਤੁ ਉੱਤਮ ਆਸ਼ਾਢ਼੍ਈ ਪੂਰ੍ਣਿਮਾ, ਮੁਡ਼੍ਇਯਾ ਪੂਨਮ-ਗੋਵਰ੍ਧਨ ਪਰਿਕ੍ਰਮਾ (ਬ੍ਰਜ), ਸਂਨ੍ਯਾਸਿਯੋਂ ਕਾ ਚਾਤੁਰ੍ਮਾਸ ਪ੍ਰਾਰਂਭ, রু পুর্ণিমা, গুরু পূর্ণীমা, গুরু পূর্ণীমা, চাতুর্মাস ৱ্রত-নিযম প্রারংভ, গুরু পূর্ণিমা, ৱ্যাস পূর্ণিমা, স্নান-দান হেতু উত্তম আষাঢ়ী পূর্ণিমা, মুড়িযা পূনম-গোৱর্ধন পরিক্রমা (ব্রজ), সংন্যাসিযোং কা চাতুর্মাস প্রারংভ, ଗୁରୁ ପୁର୍ଣିମା, ଗୁରୁ ପୂର୍ଣୀମା, ଗୁରୁ ପୂର୍ଣୀମା, ଚାତୁର୍ମାସ ବ୍ରତ-ନିଯମ ପ୍ରାରଂଭ, ଗୁରୁ ପୂର୍ଣିମା, ବ୍ଯାସ ପୂର୍ଣିମା, ସ୍ନାନ-ଦାନ ହେତୁ ଉତ୍ତମ ଆଷାଢ଼ୀ ପୂର୍ଣିମା, ମୁଡ଼ିଯା ପୂନମ-ଗୋବର୍ଧନ ପରିକ୍ରମା (ବ୍ରଜ), ସଂନ୍ଯାସିଯୋଂ କା ଚାତୁର୍ମାସ ପ୍ରାରଂଭ, ଗୁରୁ ପୁର୍ଣିମା, ଗୁରୁ ପୂର୍ଣୀମା, ଗୁରୁ ପୂର୍ଣୀମା, ବ୍ଯାସ ପୂର୍ଣିମା, guru purnima, guru purnima, guru purnima, chaturmasa vrata-niyama prarambha, guru purnima, vyasa purnima, snana-dana hetu uttama Ashadhi purnima, mudiya punama-govardhana parikrama (braja), sanyasiyon ka chaturmasa prambha, guru purnima, guru purnima,
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (जुलाई-2011)
विद्वानो के अनुशार शास्त्रोक्त उल्लेख हैं की कोई भी मंत्र निश्चित रूप से अपना प्रभाव अवश्य रखते हैं।
जिस प्रकार पानी में कंकड़-पत्थर डालने से उसमें तरंगे उठती हैं उसी प्रकार से मंत्रजप के प्रभाव से हमारे भीतर आध्यात्मिक तरंग उत्पन्न होती हैं। जो हमारे इर्द-गिर्द सूक्ष्म रूप से एक सुरक्षा कवच जैसा प्रकाशित वलय (अर्थात ओरा) का निर्माण होता हैं। उन ओरा का सूक्ष्म जगत में उसका प्रभाव पड़ता है। जो खुली आंखो से सामान्य व्यक्ति को उसका प्रभाव दिखाई नहीं देता। उस सुरक्षा कवच से व्यक्ति को नकारात्मक प्रभावी जीव व शक्तिया उसके पास नहीं आ सकतीं।
श्रीमदभगवदगीता की 'श्री मधुसूदनी टीका' प्रचलित एवं महत्त्वपूर्ण टीकाओं में से एक हैं। इस टीका के रचयिता श्री मधुसूदन सरस्वतीजी जब संकल्प करके लेखनकार्य के लिए बैठे ही थे कि एक तेजस्वी आभा लिये परमहंस संन्यासी अचानक घर का द्वार खोलकर भीतर आये और बोलेः "अरे मधुसूदन! तू गीता पर टीका लिखता है तो गीताकार से मिला भी है कि ऐसे ही कलम उठाकर बैठ गया है? तूने कभी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किये हैं कि ऐसे ही उनके वचनों पर टीका लिखने लग गया?"
श्री मधुसूदनजी तो थे वेदान्ती, अद्वैतवादी। वे बोलेः "दर्शन तो नहीं किये। निराकार ब्रह्म-परमात्मा सबमें एक ही है। श्रीकृष्ण के रूप में उनका दर्शन करने का हमारा प्रयोजन भी नहीं है। हमें तो केवल उनकी गीता का अर्थ स्पष्ट करना है।"
"संन्यासी बोले नहीं.... पहले उनके दर्शन करो फिर उनके शास्त्र पर टीका लिखो। लो यह मंत्र। छः महीने इसका अनुष्ठान करो। भगवान प्रकट होंगे। उनसे प्रेरणा मिले फिर लेखनकार्य का प्रारंभ करो।"
मंत्र देकर बाबाजी चले गये। श्री मधुसूदनजी ने अनुष्ठान शुरु किया। अनुष्ठान के छः महीने पूर्ण हो गये लेकिन श्रीकृष्ण के दर्शन न हुए। 'अनुष्ठान में कुछ त्रुटि रह गई होगी' ऐसा सोचकर श्री मधुसूदनजी ने दूसरे छः महीने में दूसरा अनुष्ठान किया फिर भी श्रीकृष्ण दर्शन न हुए।
दो बार अनुष्ठान के उरांत असफलता प्राप्त होने पर श्री मधुसूदन के चित्त में ग्लानि हो गई। सोचा किः 'किसी अजनबी बाबाजी के कहने से मैंने बारह मास बिगाड़ दिये अनुष्ठानों में।
सबमें ब्रह्म माननेवाला मैं 'हे कृष्ण... हे भगवान... दर्शन दो... दर्शन दो...' ऐसे मेरा गिड़गिड़ाना ?
जो श्रीकृष्ण की आत्मा है वही मेरी आत्मा है। उसी आत्मा में मस्त रहता तो ठीक रहता। श्रीकृष्ण आये नहीं और पूरा वर्ष भी चला गया। अब क्या टीका लिखना ?"
वे ऊब गये। अब न टीका लिख सकते हैं न तीसरा अनुष्ठान कर सकते हैं। चले गये यात्रा करने को तीर्थ में। वहाँ पहुँचे तो सामने से एक चमार आ रहा था। उस चमार ने इनको पहली बार देखा और श्री मधुसूदनजी ने भी चमार को पहली बार देखा।
चमार ने कहाः "बस, स्वामीजी! थक गये न दो अनुष्ठान करके?"
श्रीमधुसूदन स्वामी चौंके ! सोचाः "अरे मैंने अनुष्ठान किये, यह मेरे सिवा और कोई जानता नहीं। इस चमार को कैसे पता चला?"
वे चमार से बोलेः "तेरे को कैसे पता चला?", "कैसे भी पता चला। बात सच्ची करता हूँ कि नहीं ? दो अनुष्ठान करके थककर आये हो। ऊब गये, तभी इधर आये हो। बोलो, सच कि नहीं?"
"भाई ! तू भी अन्तर्यामी गुरु जैसा लग रहा है। सच बता, तूने कैसे जाना ?"
"स्वामी जी ! मैं अन्तर्यामी भी नहीं और गुरु भी नहीं। मैं तो हूँ जाति का चमार। मैंने भूत को अपने वश में किया है। मेरे भूत ने बतायी
……………..>>
>> Read Full Article Please Read GURUTVA JYOTISH JULY-2011
संपूर्ण लेख पढने के लिये कृप्या गुरुत्व ज्योतिष ई-पत्रिका जुलाई -2011 का अंक पढें।
इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।
JULY-2011
sach hai
जवाब देंहटाएं