इस दीपावली पर स्वयं सिद्ध करें लक्ष्मी मंत्र
Article courtesy: GURUTVA JYOTISH Monthly E-Magazine November-2018
लेख सौजन्य: गुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रिका (नवम्बर-2018)
मंत्र :
1. ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः। (Om Shree Mahalakshmai Namah)
2. श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये। (Shreem Hreem Shreem Kamale Kamalalaye)
3. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा । (Shreem Hreem Kleem Aim Kamalavasinyai Swaha)
4. ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः। (Hreem Shreem Kleem Mahalakshmai Namah)
5. ॐ श्रीं श्रियै नमः। (Om Shreem Shriyai Namah)
6. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।
(Om Hreem Shreem Kreem Shreem Kreem Kleem Shreem Mahalakshmi Mam Gruhe Dhanam Pooraya Pooraya Chintayai Dooraya Dooraya Swaha)
7. धन लाभ एवं समृद्धि मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।
(Om Shreem Hreem Kleem Tribhuvan Mahalakshmai Asmank Daridray Nashay Prachur Dhan Dehi Dehi Kleem Hreem Shreem Om)
8. अक्षय धन प्राप्ति मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ ।
(Om Shreem Hreem Kleem Aim Soum Om Hreem Ka Ae Ee La Hreem Ha Sa Ka Ha La Hreem Sakal Hreem Soum Aim Kleem Hreem Shreem Om)
कैसे करें मंत्र जाप :-
धनतेरस या दीपावली के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके लक्ष्मी कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से पूजा करें।
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर स्फटिक कि माला से मंत्र का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां लक्ष्मी से प्राथना करें।
अधिकस्य अधिकं फलम्।
जप जितना अधिक हो सके उतना अच्छा है। यदि मंत्र अधिक बार जाप कर सकें तो श्रेष्ठ।
प्रतिदिन स्नान इत्यादिसे शुद्ध होकर उपरोक्त किसी एक लक्ष्मी मंत्र का जाप 108 दाने कि माला से कम से कम एक माला जाप अवश्य करना चाहिए।
उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां लक्ष्मी कि कृपा से व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है और निर्धनता का निवारण होता है।
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श्री कनकधारा स्तोत्र
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम। अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:॥1॥ मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि। माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:॥2॥ विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि। ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:॥3॥ आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्। आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:॥4॥ बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति। कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:॥5॥ कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्। मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:॥6॥ प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन। मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:॥7॥ दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण। दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:॥8॥ इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते। दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:॥9॥ गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति। सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ॥10॥ श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै। शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै ॥11॥ नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै । नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै ॥12॥ सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि। त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम् ॥13॥ यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:। संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥ सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥ दग्धिस्तिमि:कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम। प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥ कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:। अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ॥17॥ स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्। गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया: ॥18॥इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम
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