शिव कामदेव कथा
सतीजी के देहत्याग के पश्चात जब शिव जी तपस्या में लीन हो गये थे उस समय तारक नाम का एक असुर हुआ। जिसने अपने भुजबल, प्रताप और तेज से समस्त लोकों और लोकपालों पर विजय प्राप्त कर लिया जिसके फल स्वरूप सभी देवता सुख और सम्पत्ति से वंचित हो गये। सभी प्रकार से निराश देवतागण ब्रह्मा जी के पास सहायता के लिये पहुँचे। ब्रह्मा जी ने उस सभी देवता को बताया, इस दैत्य की मृत्यु केवल शिव जी के वीर्य से उत्पन्न पुत्र के हाथों ही हो सकती हैं। लेकिन सती के देहत्याग के बाद शिव जी विरक्त हो कर तपस्या में लीन हो गये हैं। सती जी ने हिमाचल के घर पार्वती जी के रूप में पुनः जन्म ले लिया हैं। अतः शिव जी का पार्वती से विवाह करने के लिये उनकी तपस्या को भंग करना आवश्यक हैं। आप लोग कामदेव को शिव जी के पास भेज कर उनकी तपस्या भंग करवाओ फिर उसके बाद हम उन्हें पार्वती जी से विवाह के लिये राजी करवा लेंगे।
ब्रह्मा जी के आदेश अनुसार देवताओं ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने का अनुरोध किया। इस पर कामदेव ने कहा, शिव जी कि तपस्या भंग कर के मेरा कुशल नहीं होगा तथापि मैं आप लोगों का कार्य सिद्ध करूँगा।
इतना कहकर कामदेव पुष्प के धनुष से सुसज्जित होकर वसन्तादि अपने सहयोगी को अपने साथ लेकर शिवजी के तपस्या करने वाले स्थान पर पहुँच गये। वहाँ पर पहुँच कर कामदेव ने अपना ऐसा प्रभाव दिखाया कि वेदों की सारी मर्यादा धरी कि धरी रह गई। कामदेव के इस प्रभाव से भयभीत होकर ब्रह्मचर्य, संयम, नियम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य आदि जो विवेक के गुण कहलाते हैं, भाग कर छिप गये। सम्पूर्ण जगत् में स्त्री-पुरुष एवं प्रकृति का समग्र प्राणी समुह सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गये। आकाश, जल और पृथ्वी पर विचरण करने वाले समस्त पशु-पक्षी सब कुछ भुला कर केवल काम के वश हो गये। हजारो साल से तपस्या कर सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महायोगी बनी विद्वान भी काम के वश में होकर योग संयम को त्याग स्त्री सुख पाने में मग्न हो गये। तो मनुष्यों कि बात ही क्या हो सकती हैं?
एसी स्थिती होने के पश्वयात भी कामदेव के इस कौतुक का शिव जी पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। इससे कामदेव भी भयभीत हो गये किन्तु अपने कार्य को पूर्ण किये बिना वापस लौटने में उन्हें संकोच हो रहा था । इसलिये उन्होंने तत्काल अपने सहायक ऋतुराज वसन्त को प्रकट कर किया। वृक्ष पुष्पों से सुशोभित हो गये, वन-उपवन, बावली-तालाब आदि हरे भेरे होकर परम सुहाने हो गये, शीतल एवं मंद-मंद सुगन्धित पवन चलने लगा, सरोवर कमल पुष्पों से परिपूरित हो गये, पुष्पों पर भ्रमर बीन-बीना ने लगे । राजहंस, कोयल और तोते रसीली बोली बोलने लगे, अप्सराएँ नृत्य एवं गान करने लगीं।
इस पर भी जब तपस्यारत शिव जी का कुछ भी प्रभाव न पड़ा तो क्रोधित कामदेव ने आम्रवृक्ष की डाल पर चढ़कर अपने पाँचों तीक्ष्ण पुष्प बाणों को छोड़ दिया जो कि शिव जी के हृदय में जाकर लगे। उनकी समाधि टूट गई जिससे उन्हें अत्यन्त क्षोभ हुआ। आम्रवृक्ष की डाल पर कामदेव को देख कर शिवजी क्रोधित हो कर उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया और देखते ही देखते कामदेव भस्म हो गये।
कामदेव कि पत्नी रति अपने पति कि ऎसी दशा सुनते ही रुदन करते हुए शिवजी के पास पहुंच गई। उसके पति विलाप से शिवजी क्रोध त्याग कर बोले, हे रति! विलाप मत कर जब पृथ्वी के भार को उतारने के लिये यदुवंश में श्री कृष्ण अवतार होगा तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा और तुझे पुनः प्राप्त होगा। तब तक वह बिना शरीर के ही इस संसार में सर्वत्र व्याप्त होता रहेगा। अंगहीन हो जाने के कारण कामदेव को अनंग कहते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी सहित समस्त देवताओं ने शिव जी के पास आकर उनसे पार्वती जी से विवाह कर लेने के लिये प्रार्थना की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
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