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रविवार, जनवरी 31, 2010

शाप विमोचन मंत्र

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शाप विमोचन मंत्र

चण्डिका शाप विमोचन मंत्र
चण्डिका शाप विमोचन मंत्र के पाठ को करने से देवी की पूजा में की गयी किसी भी प्रकार त्रुटि (भूल) से मिला श्राप खत्म हो जाता है।

शाप-विमोचन संकल्प
ऊँ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचन मन्त्रस्य वसिष्ठनारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषय: सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्रीं शक्ति: त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तो मम संकल्पितकार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

शापविमोचन मंत्र
ॐ (ह्रीं) रीं रेत:स्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै,ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥२॥
ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥३॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥४॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥५॥
ॐ तं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥६॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥७॥
ॐ जां जातिरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥८॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥९॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१०॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफ़लदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥११॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१२॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१३॥
ॐ माँ मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमासहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१४॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१५॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नम: शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१६॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फ़ट स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद विमुक्ताभव॥१७॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नम:॥१८॥
इत्येवं हि महामन्त्रान पठित्वा परमेश्वर,चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशय:॥१९॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति य:,आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशय:॥२०॥
(श्रीदुर्गामार्पणामस्तु)

शनिवार, जनवरी 30, 2010

महाशिव रात्रि विशेष

प्रिय आत्मिय बन्धु / बहिन आप सभी अपने कार्य-उद्देश्य एवं मनोकामना पूर्ति सरलता से प्राप्त कर सके इस उद्देश्य से गुरुत्व कार्यालय द्वारा महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर विभिन्न प्रकार की उपयोगी जानकारीयां प्रदान करने हेतु गुरुत्व कार्यालय परीवार के समस्त सदस्य प्रयास रत हैं। कृप्या महाशिव रात्रि के पावन पर्व से संबंधित किसी भी प्रकार की ऎसी जानकारी आप के पास हो जिस्से आप जन साधारण तक लोकहित की भावना से पहोचाना चाहते हैं। तो आप हमारे ईमेल पते :- gurutva_karyalay@yahoo.co.in या gurutva.karyalay@gmail.com पर अपने सुझाव या लेख भेजे।

गुरुवार, जनवरी 28, 2010

भगवती स्तोत्र

Bhagavati Stotra, Bhagavatee Stotra 
भगवती स्तोत्र

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥१॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥२॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥३॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥४॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाच्छितदायिनि सिद्धिवरे॥५॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥६॥

॥इति श्री व्यासकृत भगवती स्तोत्र संपूर्ण॥

नियमित भगवती स्तोत्र का पाठ करने से उस पर मां भगवती की सदा ही प्रसन्न रहती हैं।

राशि मंत्र

Rashi Mantra, rasi Mantra 

राशि मंत्र


मेष : ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायण नमः।

वृषभ : ॐ गौपालायै उत्तर ध्वजाय नमः।

मिथुन : ॐ क्लीं कृष्णायै नमः।

कर्क : ॐ हिरण्यगर्भायै अव्यक्त रूपिणे नमः।

सिंह : ॐ क्लीं ब्रह्मणे जगदाधारायै नमः।

कन्या : ॐ नमो प्रीं पीताम्बरायै नमः।

तुला : ॐ तत्व निरंजनाय तारक रामायै नमः।

वृश्चिक : ॐ नारायणाय सुरसिंहायै नमः।

धनु : ॐ श्रीं देवकीकृष्णाय ऊर्ध्वषंतायै नमः।

मकर : ॐ श्रीं वत्सलायै नमः।

कुंभ : श्रीं उपेन्द्रायै अच्युताय नमः।

मीन : ॐ क्लीं उद्‍धृताय उद्धारिणे नमः।

राशि मंत्र के जाप करने से सभी प्रकार के कार्य में शीघ्र सफलता प्राप्त होती हैं।

राशि मंत्र के जाप से व्यक्ति हर प्रकार के संकट से सुरक्षित रहता हैं।
व्यक्ति आर्थिक रूप से पूर्ण संपन्न हो जाता हैं।

बुधवार, जनवरी 27, 2010

सूर्य स्तोत्र

Surya Stotra , sury Stotra

सूर्य स्तोत्र

सूर्य स्तोत्र  में सूर्य देव के २१ पवित्र, शुभ एवं गोपनीय नाम हैं।



स्तोत्र :

विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥



सूर्य देव के २१ नाम :

'विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत-

सूर्य देव के इक्कीस नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सर्वदा प्रिय है।' (ब्रह्म पुराण : 31.31-33)


सूर्य स्तोत्र  का नियमीत सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय पाठ करने से व्यक्ति सब पपों से मुक्त होकर, उसका शरीर निरोगी होता हैं, एवं धन की वृद्धि कर व्यक्ति का यश चरों और फेलाने वाला हैं। इसे स्तोत्रराज भी काहा जाता हैं। सूर्य स्तोत्र  को तीनों लोकों में प्रसिद्धि प्राप्त हैं।

संपूर्ण प्राण प्रतिष्ठित सूर्य यंत्र को पूजा स्थान मे स्थापीत कर के नित्य यंत्र को धूप-दीप करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

रामरक्षा स्तोत्र

Ram Raksha Stotram, Rama Rakasha Stotra

रामरक्षा स्तोत्र

अस्य श्रीरामरक्षा स्तोत्र मन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप्‌छंदः। सीता शक्तिः।
श्रीमान हनुमान्‌कीलकम्‌। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।


अथ ध्यानम्‌:

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम ।



चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌॥१॥


ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥२॥


सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥


रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥४॥


कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥५॥


जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥


करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥७॥


सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्‌ ॥८॥


जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥


एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्‌ ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌॥१०॥


पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥


रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्‌।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥


जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम्‌।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥


वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम्‌ ॥१४॥


आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१५॥


आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्‌।
अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥१६॥


तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥


फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥


शरण्यौ  सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥१९॥


आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम्‌॥२०॥


सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥


रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२३॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥२४॥


रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्‌।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥


रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्‌।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌॥२६॥


रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥


श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥


श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥


माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥


दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम्‌ ॥३१॥


लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥


मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥


कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥


आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्‌।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥


भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्‌।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥


रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥


राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥


॥ श्री बुधकौशिक विरचितम् श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्ण ॥

स्वप्न ज्योतिष

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स्वप्न ज्योतिष


सोते समय व्यक्ति को हो होने वाली अनुभूतियों को स्वप्न कहा जाता हैं। स्वप्न समय अंतर मन में होने वाले अनुभवो को कुछ लोग भ्रम से जोडते हैं तो कुछ इसे वर्तमान काल, भूतकाल तथा भविष्यकाल से जोड कर व्यक्ति के जीवन के साथ के साथ जोडने का कार्य अनादिकाल से चला आरहा हैं। क्योकी विद्वानो के मत से स्वप्न में कुछ ना कुछ एसी समानता होती हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तिगत या समाजीक जीवन से मेल खाती हैं।

हमारा मस्तिष्क ज्यदा समय तक जिस विषय की कल्पना करता रेहता हैं प्राय: हमे वह सब स्वप्न में दिखाइ देता हैं। एवं ज्यादातर हम स्वप्न के उन महत्व पूर्ण भागों को भूल जाते हैं जो हमारे जीवन के लिए विशेष अर्थ रखते हैं।

देखे जाने वाले कुछ स्वप्न भविष्य के सूचक भी होते हैं।


भारतीय शकुन शास्त्रों में इन स्वप्नों के बारे में शुभता-अशुभता का उल्लेखित किया गया है।

भारतीय मान्याता के अनुशार ज्यादातर ब्रह्म मुहूर्त में जो स्वप्न देखे जाते हैं, वह सच होते हैं या हमारे भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्व आभास की सूचना प्रदान करते हैं।

स्वप्न मे देखए गये विषयो के शुकन-अपशुकन बारे मे कोई ठोस प्रमाण नहीं होने के बाद भी शकुन शास्त्रों में अनेक प्रकार के स्वप्नों की विस्तृत जानकारी देकर स्वप्न का बड़ा महत्व बताया गया हैं। उनमे से कई जानकारीया उपयोगी होने पर भी उसका स्वप्न के बारे में सही विश्लेषण करना इतना आसान नहीं हैं क्योकी ज्यादातर ममलों मे व्यक्ति देखे गये स्वप्नो में से कुछ एक विषय को ही याद कर पाता हैं एवं बाके विषयो को वह सही फल जानने से पेहले ही समय के साथ में भूला देता हैं। इस लिये स्वप्न के बारे ने विश्लेषण करना थोडा कठिन हो जाता हैं।


कुछ मनोवैज्ञानिक का मत हैं की इन सब का हमारी वास्तविक अवस्था से कोई संबंध नहीं होता।

मंगलवार, जनवरी 26, 2010

राशि से जानिये व्यक्तित्व

Rashi Se jaaniye Vyaktitv
राशि से जानिये व्यक्तित्व


ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड मे स्थित ग्रह-नक्षत्रो एवं राशि के प्रभाव से हर व्यक्ति प्रभावित होता हैं। इसी वजह से सभी व्यक्ति का स्वभाव एवं व्यवहार एक दूसरे से अलग अलग होता हैं, एवं व्यक्ति जीवन भर उसी प्रभाव के अनुसार कार्य करता रेहता है।

जेसे कोई व्यक्ति छोटी-छोटी बात पर गुस्‍सा हो जाता हैं,  तो कोई व्यक्ति बात-बात पर चिड़-चिड़ा जाता हैं। तो कोई व्यक्ति स्वार्थी होता हैं वो अपने आपमे ही रमा रेहता हैं उसे ना अपने मित्र वर्ग की नाहीं अपने परिवार की परवा होती हैं।

कोई व्यक्ति कठोर तो कोई भावुक होता हैं। विभिन्न व्‍यक्ति की पहचान इन ग्रह-नक्षत्रो एवं राशि के प्रभाव से ही एक दूसरे से भिन्न होती हैं। एक व्‍यक्ति के स्‍वभाव पर उसके आसपास का माहौल का काफी प्रभावित होता हैं,

लेकिन किस व्‍यक्ति का स्‍वभाव कैसा होगा, यह उसके जन्‍म के समय स्थित ग्रह-नक्षत्रो एवं राशि के प्रभाव से ही तय हो जाता है।

जन्‍म लेते समय ग्रहों की स्थिति तय कर देती हैं कि व्‍यक्ति का स्‍वभाव आगे चलकर कैसा रहेगा!

व्‍यक्ति का जीवन कल्पना की उडाने भरने वाल होगा या धरातल पर रेह कर कार्य कर अपने स्वप्नो को पूरा करने वाला होगा।


कई बार किसी व्यक्ति का आचरण जो वह दिखाता हैं उस्से एक दम अलग होता हैं क्योकि वह अपने वास्तविक स्वभाव पर एक नकाब पेहने रेहता हैं, लेकिन ज्‍योतिष के माध्यम से आपको कुछ हद तक मदद मिल सकती हैं एवं व्यक्ति का वास्वविक स्वभाव को पेहचान सकते हैं।

इन सब कारणो से ही ज्योतिष मे मित्र-सम-शत्रु राशि जानने हेतु ग्रहो की पंचधा मैत्री चक्र (कोष्टक) की सहायता ली जाती हैं।

जन्म वार से व्यक्तित्व

Janm Var se Vyaktitva, Janma Vaar Se Vyaktitva

जन्म वार से व्यक्तित्व


ज्योतिष शास्त्र के अनुशार सप्ताह के सभी वार का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं. व्यक्ति का जन्म जिस वार में हुवा हो उस वार के प्रभाव से व्यक्ति का व्यवहार और चरित्र प्रभावित होता हैं.

रविवार
रविवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति सूर्य के प्रभाव के कारन तेजस्वी, चतुर, गुणवान, उत्साही, दानी, लेकिन थोडा गर्व रखने वाल और पित्त प्रकृति का होता हैं। स्वभाव में अत्याधिक क्रोध भरा होता है. यदि केसी से झगडे की स्थिति पैदा हो जाए तो उसमें अपनी पूरी ताकत झोकने से पीछे नहीं हटते हैं.

सोमवार
सोमवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति चंद्र के प्रभाव के कारन बुद्धिमान, प्रकृति स्वभाव से शांत, अपनी मधुर वाणी से अन्य लोगो को अपनी और सरलता से मोहित कर लेते है। व्यक्ति स्थिर स्वभाव वाले, सुख एवं दु:ख किसी भी स्थिति में समान रहने वाले हैं।


मंगलवार
मंगलवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति मंगल के प्रभाव के कारन जटिल स्वभाव वाला, दूसरो के कार्य मे आसानी से नुक्श निकालने वाल, युद्ध प्रेमी, पराक्रमी, अपनी बातो पर कायम रहने वाले, कभी कभी हिंसक प्रवृत्ति रखने वाले एवं अपने परिवार का नाम रोशन करने वाले होते हैं।



बुधवार
बुधवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति बुध के प्रभाव के कारन मिठा बोलने वाले, विद्या अध्ययन मे रूचि रखने वाले, ज्ञानी, लेखन, सम्पत्तिवान होते हैं, बुधवार के दिन जन्म लेने वाले लोग व्यक्ति लोग जल्दी से विश्वास नहीं कते हैं.


गुरुवार (बृहस्पतिवार)
गुरुवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति गुरु के प्रभाव के कारन विद्या,धनवान , ज्ञानी, विवेकशील, उत्तम सलाहकार होते हैं। व्यक्ति दूसरो को उपदेश देने मे सदैव अग्रणिय रेहते हैं, एवं लोगो से मान सम्मान प्राप्त कर बहोत सारी प्रसिद्धि प्राप्ति करना चाहते हैं।


शुक्रवार
शुक्रवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति शुक्र के प्रभाव के कारन स्वभाव चंचल, भौतिक सुखों में लिप्त रहने वाले, तर्क-वितर्क मे होशियार, धनवान एवं तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी होते हैं। ईश्वर मे आस्था कम ही होती हैं, यदी होतो नही के बराबर होती हैं।


शनिवार
शनिवार के दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति शनि के प्रभाव के कारन कठोर स्वभाव के, पराक्रमी एवं परिश्रमी, दु:ख सेहने की गजब की शक्ति रखने वाले, न्यायी एवं गंभीर स्वभाव के होते हैं। सेवा कर नाम व प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले होते हैं।

सर्व कार्य सिद्धिकवच

Sarv Karya Siddhi Kavach/ Sarv Karya Siddhi Kawach
सर्व कार्य सिद्धि कवच

कवच के प्रमुख लाभ:

सर्व कार्य सिद्धि कवच के द्वारा सुख समृद्धि और नव ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को शांत कर धारण करता व्यक्ति के जीवन से सर्व प्रकार के दु:ख-दारिद्र का नाश हो कर सुख-सौभाग्य एवं उन्नति प्राप्ति होकर जीवन मे सभि प्रकार के शुभ कार्य सिद्ध होते हैं। जिसे धारण करने से व्यक्ति यदि व्यवसाय करता होतो कारोबार मे वृद्धि होति हैं और यदि नौकरी करता होतो उसमे उन्नति होती हैं।

सर्व कार्य सिद्धि कवच के साथ में सर्वजन वशीकरण कवच के मिले होने की वजह से धारण करता की बात का दूररे व्यक्तिओ पर प्रभाव बना रहता हैं।

सर्व कार्य सिद्धि कवच के साथ में अष्ट लक्ष्मी कवच के मिले होने की वजह से व्यक्ति पर मां महालक्ष्मी की कृपा एवं आशीर्वाद बना रहता हैं। जिस्से मां लक्ष्मी के अष्ट रुप (१)-आदि लक्ष्मी, (२)-धान्य लक्ष्मी, (३)-धैरीय लक्ष्मी, (४)-गज लक्ष्मी, (५)-संतान लक्ष्मी, (६)-विजय लक्ष्मी, (७)-विद्यालक्ष्मी और (८)-धन लक्ष्मी इन सभी रुपो का अशीर्वाद प्राप्त होता हैं।



सर्व कार्य सिद्धि कवच के साथ में तंत्र रक्षा कवच के मिले होने की वजह से तांत्रिक बाधाए दूर होती हैं, साथ ही नकारत्मन शक्तियो का कोइ कुप्रभाव धारण कर्ता व्यक्ति पर नहीं होता। इस कवच के वजह से इर्षा-द्वेष रखने वाले व्यक्तिओ द्वारा होने वाले दुष्ट प्रभावो से रक्षाहोती हैं।

सर्व कार्य सिद्धि कवच के साथमें शत्रु विजय कवच के मिले होने की वजह से शत्रु से संबंधित समस्त परेशानिओ से स्वतः ही छुटकारा मिल जाता हैं। कवच के प्रभाव से शत्रु धारण कर्ता व्यक्ति का चाहकर कुछ नही बिगड सकते।


कवच धारण करने हेतु निति नियम:

यह कवच साधारण व्यक्ति सरलता से धारण कर बिना किसी विशेष पूजा अर्चना के विशेष लाभ प्राप्त कर सकता हैं। क्योकि कवच का निर्माण ईसी उद्देश्य से किया जाता हैं की आप बिना किसी परेशानी से लाभ प्राप्त कर सके क्योकी आज के भौतिक्ता के युग में व्यक्ति अधिक से अधिक भौतिक सुख-साधनो की प्राप्ति हेतु इतना व्यस्त होता हैं की उसके पास उचित जानकारी के अभाव के कारन उसे पूजा अर्चना केसे कि जाये उसकी सही जानकारी नहीं होती हैं, एवं यदि जानकारी प्राप्त होतो भी व्यक्ति के पास मे उसे करने हेतु समय नहिं होता हैं। इसी लिये हमारे यहा मंत्र सिद्ध सर्व कार्य सिद्धि कवच को विशेष प्रयोजन द्वार शीघ्र प्रभाव शाली बनाने के लिए तेजस्वी मंत्रो द्वारा शुभ महूर्त में शुभ दिन को तैयार किये जाते है।


अन्य कवच कार्यालय द्वारा सभी प्रकार की समस्या हेतु व्यक्ति की आवश्यक्ता के अनुशार अलग-अलग कवच तैयार कर समस्त इच्छुक व्यक्ति के धारण करने हेतु उपलब्ध कराए जाते हैं।


लेकिन सर्व कार्य सिद्धि कवच समस्त इच्छुक व्यक्ति को उपलब्ध नहीं कराये जाते। सर्व कार्य सिद्धि कवच को प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले बन्धु/बहिन को हमारा विनम्र अनुरोध हैं की इस कवच ले लिये किसी भी प्रकार की धन राशी (रुपये) बिना हमारे आदेश पर अग्रीम नहीं भेजे।


यदि सर्व कार्य सिद्धि कवच प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसें संपर्क करें।

हमे सर्व कार्य सिद्धि कवच आपको उपलब्ध कराने हेतु हमे निम्न जानकारी की आवश्यक्ता होती हैं। इन जानकारी के प्राप्त होने के बाद में हम आप को कवच उपलब्ध करा सकते हैं या नहीं इस की सुचना देंगे।



अपका नाम_________________


माता का नाम_______________


पिता का नाम_______________


एवं गोत्र___________________ (यदि जानते हो)


एक फोटो

नोट:- किसी व्यक्ति विशेष को सर्व कार्य सिद्धि कवच देने नही देना का अंतिम निर्णय हमारे पास सुरक्षित हैं।

रविवार, जनवरी 24, 2010

दीक्षा और तप क्या है?

Diksha aur Tap Kya Hai, Deekshaa or tam kya he

दीक्षा और तप क्या है?


दीक्षा और तप : सत्य को प्राप्त करने के लिए गुरु द्वारा दीक्षा प्राप्ति होनी चाहिए और उस दीक्षा से व्यक्ति तपस्या कर सफलता प्राप्त कर सकता है।


व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षयाऽप्नोति दक्षिणाम्‌।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते॥ (यजुर्वेद)

व्रत से दीक्षा मिलती है, दीक्षा से दक्षिणा, दक्षिणा से श्रद्धा और श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।

तप का अर्थ : इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना है। किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तप आवश्यक है। धर्म की रक्षा करने हेतु भी तप करना आवश्यक होता है।

आरती रामचन्द्र जी की

Arti Ramchandra jee kee/ Arati Ram chandra ji ki

आरती रामचन्द्र जी की


आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥१॥


पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥२॥


दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥३॥


तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥४॥


चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥५॥

पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥६॥

आरती सत्यनारायण जी की

Arati Satya narayan jee kee, Arati Satyanarayan ji ki
आरती सत्यनारायण जी की


जय लक्ष्मी रमणा, जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा॥ जय ...


रत्‍‌न जडि़त सिंहासन अद्भुत छवि राजै।
नारद करत निराजन घण्टा ध्वनि बाजै॥ जय ...


प्रकट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ा ब्राह्मण बनकर कन्चन महल कियो॥ जय ...


दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा तिनकी विपत्ति हरी॥ जय ...


वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीन्हों।
सो फल भोग्यो प्रभु जी फिर-स्तुति कीन्हीं॥ जय ...


भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो॥ जय ...


ग्वाल बाल सन्ग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयाल हरी॥ जय ...


चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल, मेवा।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्य देवा॥ जय ...


श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
भगतदास तन-मन सुख सम्पत्ति मनवान्छित फल पावै॥ जय ...

शनिवार, जनवरी 23, 2010

हिन्दू धर्म (भाग: 3)

Rugved - ved -  Dharam
ऋग्वेद




ऋतस्य पन्थां न तरन्ति दुष्कृतः।
                                                                                                              (ऋग्वेद)


वेद

हिन्दू धर्म का मूल आधार है वेद। वेद का अर्थ ज्ञान है ।

'वेद' शब्द का उद्गम संस्कृत की 'विद्' धातु से हुवा है। 'विद्' यानी जानना।

 वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहाजाता हैं कि ऋषियों को अपनी अंतरात्मा से परमात्मा के पास से ज्ञान प्राप्त हुवाथा।


वेद चार हैं : ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
  • ऋग्वेद : ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है। इसमें 10 मंडल हैं और 10552 मंत्र। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना और स्तुतियो का वर्णन किया गया हैं।
  • यजुर्वेद : यजुर्वेद में 1975 मंत्र और 40 अध्याय हैं। यजुर्वेद में अधिकतर यज्ञ के मंत्रो का वर्णन किया गया हैं।
  • सामवेद : सामवेद में 1875 मंत्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ इस्मे हैं। इस सामवेद के सभी मंत्र संगीतमय हैं।
  • अथर्ववेद : अथर्ववेद में 5987 मंत्र और 20 कांड हैं। अथर्ववेद में भी ऋग्वेद की अधिकतर ऋचाएँ हैं।


चारों वेदों में कुल मिलाकर 20389 मंत्रो का उल्लेख किया गया हैं।


महालक्ष्मी स्तुति

Mahalakshmi Stuti, Maha laxmi Stuti
महालक्ष्मी स्तुति


नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥१॥


नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥२॥


सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥३॥


सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥४॥


आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥५॥


स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥६॥


पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्म स्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मत् महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥७॥


श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मत् महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥८॥


महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नरः॥
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यम् प्रापनेति सर्वदा॥९॥


एककाले पठेन्नित्यम् महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यम् धनधान्यसमन्वित॥१०॥


त्रिकालं य: पठेन्नित्यम् महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्म् प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
 
|| इति महालक्ष्मी स्तुति सम्पूर्ण ||

 
उपरोक्त स्तुति का प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है,  शत्रुओं का नाश होता हैं एवं उसे जीवन मे सभी प्रकार के सुखो की प्राप्ति होती हे ।

गायत्री स्तोत्र व माहात्म्य

Gayatri Stotra va mahatny
गायत्री स्तोत्र व माहात्म्य


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

भावार्थ: प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप अशा परमात्म्याला आम्ही अंतःकरणात धारण करतो. त्या परमात्म्या कडून आमची बुद्धी सन्मार्गी लागो



 ॐ गायत्रीदेव्यै नमः॥ ॐ नमो श्रीगजवदना ॥  गणराया गौरीनंदना । विन्घेशा भवभयहरणा । नमन माझे साष्टांगीं ॥१॥
नंतर नमिली श्रीसरस्वती । जगन्माता भगवती । ब्रह्माकुमारी वीणावती । विद्यादात्री विश्र्वाची ॥२॥
नमन तैसें गुरुवर्या । सुखनिधान सद्‍गुरुराया । स्मरुनी त्या पवित्र पायां । चित्तशुद्धि जाहली ॥३॥
थोर ऋषिमुनी संतजन । बुधगण आणि सज्जन । करुनी तयांसी नमन । ग्रंथरचना आरंभिली ॥४॥
एकदां घडली ऐसी घटना । नारद भेटले सनकमुनींना । वंदन भावें करुनि तयांना । म्हणाले विनंती माझी ऎकावी ॥५॥
जपासाठीं असती मंत्र हजार । त्यांत अत्यंत प्रभावी थोर । ज्याचें सामर्थ्य अपरंपार । ऐसा मंत्र कोणता ॥६॥
तेव्हा म्हणाले सनकमुनी । नारदा तुझा प्रश्र्न ऎकोनी। समाधान झालें माझ्या मनीं । लोकोपयोगी प्रश्र्न हा ॥७॥
आतां ऎक लक्ष देऊन । त्वरित फलदायी मंत्रज्ञान । सफल होतील हेतु पूर्ण । ऐसा एकच मंत्र गायत्री ॥८॥
गायत्री ही मंत्रदेवता । सर्वश्रेष्ठा तिची योग्यता । तिंचे एकेक अक्षर जपतां । आत्मतेज प्रगटतें ॥९॥
गायत्रीमंत्राचें प्रत्येक अक्षर । प्रभाव पाडी सर्व गात्रांवार । देहाच्या एकेका अवयवावर । प्रत्यक्ष परिणाम घडतसे ॥१०॥
गायत्रीची नांवें अनेक असती । त्यांत असते दिव्य शक्ति । एकेका नामोच्चारानें ती । शरिरीं प्रगट होतसे ॥११॥
करीत असतां नामोच्चार । मनीं आणावा तिचा आकार । भक्तिपुर्वक करुनी नमस्कार । नामजप करावा तो ॥१२॥
 ॐ काररुपा ब्रह्माविद्या ब्रह्मादेवता । सवित्री सरस्वती वेदमाता । अमृतेश्र्वरी रुद्राणी विक्रमदेवता । ॐ गायत्रीं नमो नमः ॥१३॥
 वैष्णवी वेदगर्भा विद्यादायिका । शारदा विश्र्वभोक्त्री संध्यात्मिका । सुर्या , चंद्रा, ब्रह्माशीर्षका । ॐ गायत्रीं नमो नमः ॥१४॥

नारसिंही अघनाशिनी इंद्राणी । अंबिका पद्‍माक्षी रुद्ररुपिणी । सांख्यायनी सुरप्रिया ब्रह्माणी । ॐ गायत्रीं नमो नमः ॥१५॥
गायत्री तूं ब्रह्मांडघारिणी । गायत्री तूं ब्रह्मावादिनी । गायत्री तूं विश्र्वव्यापिनी । ॐ गायत्रीं नमो नमः ॥१६॥
ॐ भू: ऋग्वेदपुरुषं । ॐ भुव: यजुर्वेदपुरुषं । ॐ स्व: सामवेदपुरुषं । ॐ मह: अथर्वणवेदपुरुषं तपर्यामि ॥१७॥
ॐ जन: इतिहासपुराणपुरुषं । ॐ तप: सर्वांगपुरुषं । ॐ सत्यं सत्यलोकपुरुषं । त्वं ब्रह्माशापाद्विमुक्ता भव ॥१८॥
ॐ भू: भुर्लोकपुरुषं । ॐ भुव: भुवलोकपुरुषं । ॐ स्व: स्वर्लोकपुरुषं । त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव ॥१९॥
ॐ भू एकपदा गायत्रीं । ॐ भुव: द्विपदां गायत्रीं । ॐ स्व: त्रिपदां गायित्रीं । ॐ भूभुर्व स्व: चतुष्पदां गायित्रीं ॥२०॥
ॐ उषसीं तर्पयामि । ॐ गायत्रीं तर्पयामि । ॐ सावित्रीं तर्पयामि । तर्पयामि ॐ सरस्वतीं ॥२१॥
ॐ वेदमातरं तर्पयामि । ॐ पृथ्वीं तर्पयामि । ॐ अजां तर्पयामिअ । तर्पयामि ॐ कौशिकीं ॥२२॥
ॐ सांकृतिं तर्पयामि । ॐ सर्वजिनां तर्पयामि । ॐ गायत्रीत्रय तर्पयामि । त्व विश्र्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव ॥२३॥
गायत्रीदेवी प्रात:काळीं । ऋग्वेदरुपा बालिका झाली ब्रह्मादेवाची शक्ति एकवटली । अपूर्व तेजें प्रकाशे ॥२४॥
हातीं कलश अक्षमाला । स्त्रकूस्त्रुवा धारण केला । मुखतेज लाजवी रविंचद्राला । हंसारुढ असते ती ॥२५॥
कंठी रन्तालंकार झगमगती । माणिबिंबांची शोभा अपूर्व ती । जी देतसे धनसंपत्ती । ध्यान तिचें करावें ॥२६॥
सावित्री नांव मध्यान्हकाळीं । तीच रुद्राणी शक्ति बनली । त्रिनेत्रा नवयौवना दिसली । व्याघ्रांबर धारिणी ॥२७॥
हातीं खट्‍वांग, त्रिशुळ,रुद्राक्षमाला । अभय मुद्रा मुगुटी चंद्रा शोभला । वृषभवाहन गौरवर्ण भला । यजुर्वेदस्वरुपा जी ॥२८॥
आयुष्य आणि ऎश्र्वर्यवृद्धी । देतसे सकल महासिद्धी । वाढवी सद्‍भावना सद्‍बुद्धी । साह्य करी ती सर्वांसी ॥२९॥
सायंकाळी तीच विष्णुशक्ति । पीतांबरधारी भगवती सरस्वती । श्यामलवर्णीं गरुडारुढ ती । रत्‍नहार कंठीं शोभती ॥३०॥
बाजुबंद, रत्‍नखचित नुपुर । सुवर्णकंकणें सौभाग्यलंकार । शंख , चक्र, गदा पद्ममय कर । श्रीवृद्धीकारक ती सर्वदा ॥३१॥
ब्राह्मामुहूर्तीं उठावें । बाह्माभ्यंतर शुचिर्भुत व्हावें । श्रीगायत्रीचें ध्यान करावें । स्वस्थ एकाग्र चिंत्तानें ॥३२॥
प्रथम करावा करन्यास । नंतर करावा अंगन्यास । मग पुर्ण प्राणायामास । प्रारंभ नीट करावा ॥३३॥
पूरकीं करणें विष्णुस्मरण । कुंभकीं करावें ब्रह्मास्मरण । रेचकीं करावें शिवध्यान । प्राणायन या नांव असे ॥३४॥
गायत्री जप करावा हजारदां । किंवा करावा शंभरदां । कमीतकमी तरी दहादां । महामंत्रजप करावा ॥३५॥
गायत्रीमंत्राचा जे जप करिती । तया चारी पुरुषार्थ साध्य होती । सर्वैंश्र्वर्य कीर्ती संपत्ती । आणि सिद्धि लाभती ॥३६॥
ज्योतिर्मय दिव्य रूपिणी । मंदमतीसी करिते महाज्ञानी । बल,यश,आयुरारोग्य देऊनी । पराक्रम जगीं गाजवी ॥३७॥
गायत्री मंत्रातील महाशक्ती । व्यक्त होते अव्यक्तीं । अपूर्व लाभते मन:शांति । पुर्ण समाधानी होतेसे ॥३८॥
म्हणुन हें देवर्षीं नारदा । गायत्री उपासना करावी सदा । मिळेल आत्मज्ञानसंपदा । सत्य सत्य वाचा ही ॥३९॥
गायत्रीहृदय गायत्रीतर्पण । गायत्रीकवच गायत्रीध्यान । सर्व पूजाविधी विसर्जन । नारदासी उपदेशिलें ॥४०॥
मग नारद संतुष्ट होऊन । सनकमुनींना करुनी वंदन । आपुल्या कार्यासी गेले निघून । जयजयकार करीत गायत्रीचा ॥४१॥
राजकारणी, समाजकारणी । साहित्यिकांनी विद्यार्थ्यांनी । सर्व स्थरातील गृहस्थानीं । गायत्रीमंत्र जपावा ॥४२॥
स्तोत्र-माहात्म्य गायत्रीचें । रुप पालटील आयुष्याचें । महत्व पटेल माझ्या शब्दांचे । अनुभवानेंच सर्वांना ॥४३॥
गायत्रीची यथार्थ स्तुति । तशीच तिची अपूर्व महती । ऎका आतां यापुढतीं । विनती मिलिंदमाधव ॥४४॥
गायत्री असे परम पुनिता । तींता वसतीए शास्त्रें , श्रुति, गीता । सत्वगुणी, चितरुपा,शाश्र्वता । सनातन, नित्य, सत्सुधा ॥४५॥
मंगलकरक जगज्जननी । सुखघाम, स्वघा, गायत्रीभवानी । सावित्री,स्वाहा,अपूर्वकरणी । मंत्र चौवीस अक्षरी ॥४६॥
ह्रीं , श्रीं, क्लीं, मेघा उदंड । जीवनज्योती महाप्रचंड । शांति, क्रांति , जागृति, अखंड । प्रगति, कल्पनाशक्ति ती ॥४७॥
हंसारुढ दिव्य वस्त्रघारी । सूवर्णकांती गगनाविहारी । कमल,कमंडलु,माला करीं । गौर तनु शोभते ॥४८॥
स्मरणें मन प्रसन्न होतें । दु:ख सरतें सुख उपजतें । कल्पतरुसम इच्छित देते । निराकार निर्गुणा ॥४९॥
गायत्री तुझी अद्‍भुत माया । सुरतरुसम शीतल छाया । भक्तांचे संकट हराया । सदा सिद्ध अससी तूं ॥५०॥
तूं काली लक्ष्मी सरस्वती । वेदमाता ब्रह्माणी पार्वती । तुजसम अन्य नसे त्रिजगतीं । कल्याणकारी देवता ॥५१॥
जयजय त्रिपदा भवभयहारी । ब्रह्मा विष्णु शिव तुझे पुजारी । अपार शक्तिची तुं त्रिरुपधारी । तेजोमय माता तूं ॥५२॥
ब्रह्मांडा , चंद्रसुर्यांना । नक्षत्रासीं , सकल ग्रहांना । तुच देसी गति प्रेरणा । उप्तादक ,पालक , नाशक तूं ॥५३॥
होते तव कृपा जयांवरी । तो जरी असला पापी भारी । तयाच्या पापाराशी दुरी । करिसी तूं क्षणांत ॥५४॥
निर्बुद्ध होई बुद्धिवंत । शक्तिहीन होई बलवंत । रोगी होतो व्याधीमुक्त । दरिद्र दु:ख न राही ॥५५॥
जप करितां गायत्रीचा । लेश न राही गृहक्लेशाचा । चित्तातील चिंताग्नीचा । र्‍हास होई झडकरी ॥५६॥
अपत्यहीनासी अपत्यप्रात्पी । सुखच्छुसी विपुल संपत्ती । सघवा अखंड सौभाग्यवती । होती गायत्रीकृपेनें ॥५७॥
सत्य व्रतस्थ पतिरहिता । तिजला लाभे विरक्तता । जन्माची होते सार्थकता । मोक्षलाभ होतसे ॥५८॥
विवाहेच्छू कुमारिकानीं । पिठाच्या पांच पणत्या पेटवुनी । बसावें पूर्वेकडे पुढा करुनी । चौवीस दिवस प्रभातीं ॥५९॥
मनकामना पूर्ण होऊनी । मना. सारखें येईल घडुनी । गायत्रीवरी श्रद्धा ठेवुनी । रोज ही पोथी वाचावी ॥६०॥
गायत्रीस्तोत्र हें गोड । माहात्म्यही अतीव गाढ । वाचतां ऎकतां प्रचंड । प्रभाव दिसुनी येतसे ॥६१॥
चौवीस वेळीं करावें वाचन श्रवण । चौवीस वेळां करावें मंत्रपठण । चौवीस जन्मींचें होतें पापक्षालन । महत्व ऐ या पोथीचें ॥६२॥
चौवीस वेळां करितां पारायण । गायत्रीदेवी होईल सुप्रसन्न । बोलवुनी सुवासिनी तीन । एक एक पोथी द्यावी ही ॥६३॥
प्रत्येक चौवीस दिवसांनी । अशाच पुजाव्या तीन सुवासिनी । प्रत्येकीस एक एक पोथी देऊनी । नमस्कार करावा ॥६४॥
देव आहे तसें दैवही असतें । पूर्वजन्मींचें त्यांत रहस्य असतें । हें न जाणतां मोठे जाणते । निरा शेनें देवभक्ती सोडिती ॥६५॥
काळ तेयां थोडा कठीण । देव न येई लगेच घावून । म्हणुनी देवासी दोष देऊन । श्रद्धा सोडूं नये कधीं ॥६६॥
गायत्रीची अट्टश्य शक्ती । प्रारब्धाची अनिष्ट गती । फिरवी तक्ताळ सत्य ती । विश्र्वास ऎसा धरावा ॥६७॥
योग्य काळ आल्यावीण । कोणतेंच कार्य न घडे जाण । म्हणुनी हातपाय गाळुन । स्वस्थ कधीम न बैसावें ॥६८॥
स्तोत्र-माहात्म्य हें वाचावें । साधुसंतांचें वचन ध्यानीं घ्यावें । स्वत:च स्वत:ला पारखावें । शुद्ध ज्ञानप्रकाशीं ॥६९॥
आत्माज्ञान नव्हे पोरखेळ । स्वत:ला पारखावें । यावी लागते योग्य वेळ । उगीच होऊनी उतावीळ । देवासी नच निंदावें ॥७०॥
मी तर एक मानव सामान्य । गुरुकृपेनें झालों धन्य धन्य । त्याच्याच प्रेरणेनें सुचलें ज्ञान । पोथीरूपें प्रगटलें तें ॥७१॥
कांहीं दोष गेला असेल राहून । तरी सज्जनांनी करावें थोर मन । क्षमा करावी कृपा करुनी । म्हणे मिलिंदमाधव ॥७२॥
शके अठराशे अठ्याण्णव वर्षीं पौष कृष्णप्रतिपदा दिवशीं । गुरुपुष्यामृत योगासी । पोथी पूर्ण झाली ही ॥७३॥

॥ ॐ तत् सत् ब्रह्मार्पणमस्तु ॥शुभं भवतु ॥ ॐ शांति: शांति: शांतिः॥

॥ ॐ भूर्भूव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भंगो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ॥

॥ मिलिंद माधवकृत 'गायत्री स्तोत्र-महात्म्य संपूर्ण ॥

गुरुवार, जनवरी 21, 2010

शान्ति मंत्र

Shanti Mantra , shanti prapti hetu mantra
॥ शान्ति मंत्र॥
 ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्तिः। वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्तिः॥


इस मंत्र के प्रति दिन कम से कम एक बार जाप से मनुष्य को सभी प्रकार से शांति प्राप्त होती है।

अघनाशक गायत्री स्तोत्र

Adhanashak Gayatri Stotra

अघनाशकगायत्रीस्तोत्र
आदिशक्ते जगन्मातर्भक्तानुग्रहकारिणि । सर्वत्र व्यापिकेऽनन्ते श्रीसंध्ये ते नमोऽस्तु ते ॥
त्वमेव संध्या गायत्री सावित्रि च सरस्वती । ब्राह्मी च वैष्णवी रौद्री रक्ता श्वेता सितेतरा ॥
प्रातर्बाला च मध्याह्ने यौवनस्था भवेत्पुनः । वृद्धा सायं भगवती चिन्त्यते मुनिभिः सदा ॥
हंसस्था गरुडारूढा तथा वृषभवाहिनी । ऋग्वेदाध्यायिनी भूमौ दृश्यते या तपस्विभिः ॥
यजुर्वेदं पठन्ती च अन्तरिक्षे विराजते । सा सामगापि सर्वेषु भ्राम्यमाणा तथा भुवि ॥
रुद्रलोकं गता त्वं हि विष्णुलोकनिवासिनी । त्वमेव ब्रह्मणो लोकेऽमर्त्यानुग्रहकारिणी ॥
सप्तर्षिप्रीतिजननी माया बहुवरप्रदा । शिवयोः करनेत्रोत्था ह्यश्रुस्वेदसमुद्भवा ॥
आनन्दजननी दुर्गा दशधा परिपठ्यते । वरेण्या वरदा चैव वरिष्ठा वरर्व्णिनी ॥
गरिष्ठा च वराही च वरारोहा च सप्तमी । नीलगंगा तथा संध्या सर्वदा भोगमोक्षदा ॥
भागीरथी मर्त्यलोके पाताले भोगवत्यपि ॥ त्रिलोकवाहिनी देवी स्थानत्रयनिवासिनी ॥
भूर्लोकस्था त्वमेवासि धरित्री शोकधारिणी । भुवो लोके वायुशक्तिः स्वर्लोके तेजसां निधिः ॥
महर्लोके महासिद्धिर्जनलोके जनेत्यपि । तपस्विनी तपोलोके सत्यलोके तु सत्यवाक् ॥
कमला विष्णुलोके च गायत्री ब्रह्मलोकगा । रुद्रलोके स्थिता गौरी हरार्धांगीनिवासिनी ॥
अहमो महतश्चैव प्रकृतिस्त्वं हि गीयसे । साम्यावस्थात्मिका त्वं हि शबलब्रह्मरूपिणी ॥
ततः परापरा शक्तिः परमा त्वं हि गीयसे । इच्छाशक्तिः क्रियाशक्तिर्ज्ञानशक्तिस्त्रिशक्तिदा ॥
गंगा च यमुना चैव विपाशा च सरस्वती । सरयूर्देविका सिन्धुर्नर्मदेरावती तथा ॥
गोदावरी शतद्रुश्च कावेरी देवलोकगा । कौशिकी चन्द्रभागा च वितस्ता च सरस्वती ॥
गण्डकी तापिनी तोया गोमती वेत्रवत्यपि । इडा च पिंगला चैव सुषुम्णा च तृतीयका ॥
गांधारी हस्तिजिह्वा च पूषापूषा तथैव च । अलम्बुषा कुहूश्चैव शंखिनी प्राणवाहिनी ॥
नाडी च त्वं शरीरस्था गीयसे प्राक्तनैर्बुधैः । हृतपद्मस्था प्राणशक्तिः कण्ठस्था स्वप्ननायिका ॥
तालुस्था त्वं सदाधारा बिन्दुस्था बिन्दुमालिनी । मूले तु कुण्डली शक्तिर्व्यापिनी केशमूलगा ॥
शिखामध्यासना त्वं हि शिखाग्रे तु मनोन्मनी । किमन्यद् बहुनोक्तेन यत्किंचिज्जगतीत्रये ॥
तत्सर्वं त्वं महादेवि श्रिये संध्ये नमोऽस्तु ते । इतीदं कीर्तितं स्तोत्रं संध्यायां बहुपुण्यदम् ॥
महापापप्रशमनं महासिद्धिविधायकम् । य इदं कीर्तयेत् स्तोत्रं संध्याकाले समाहितः ॥
अपुत्रः प्राप्नुयात् पुत्रं धनार्थी धनमाप्नुयात् । सर्वतीर्थतपोदानयज्ञयोगफलं लभेत् ॥
भोगान् भुक्त्वा चिरं कालमन्ते मोक्षमवाप्नुयात् । तपस्विभिः कृतं स्तोत्रं स्नानकाले तु यः पठेत् ॥
यत्र कुत्र जले मग्नः संध्यामज्जनजं फलम् । लभते नात्र संदेहः सत्यं च नारद ॥
श्रृणुयाद्योऽपि तद्भक्त्या स तु पापात् प्रमुच्यते । पीयूषसदृशं वाक्यं संध्योक्तं नारदेरितम् ॥

॥ इति श्रीअघनाशक गायत्री स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री गायत्री शाप विमोचनम्

Shree Gayatree Shap Vimochanam
॥श्री गायत्री शाप विमोचनम्॥


शाप मुक्ता हि गायत्री चतुर्वर्ग फल प्रदा । अशाप मुक्ता गायत्री चतुर्वर्ग फलान्तका ॥
ॐ अस्य श्री गायत्री । ब्रह्मशाप विमोचन मन्त्रस्य । ब्रह्मा ऋषिः । गायत्री छन्दः ।
भुक्ति मुक्तिप्रदा ब्रह्मशाप विमोचनी गायत्री शक्तिः देवता । ब्रह्म शाप विमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ गायत्री ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः । तां पश्यन्ति धीराः सुमनसां वाचग्रतः ।
ॐ वेदान्त नाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमही । तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।
ॐ गायत्री त्वं ब्रह्म शापत् विमुक्ता भव ॥
ॐ अस्य श्री वसिष्ट शाप विमोचन मन्त्रस्य निग्रह अनुग्रह कर्ता वसिष्ट ऋषि । विश्वोद्भव गायत्री छन्दः ।
वसिष्ट अनुग्रहिता गायत्री शक्तिः देवता । वसिष्ट शाप विमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ सोहं अर्कमयं ज्योतिरहं शिव आत्म ज्योतिरहं शुक्रः सर्व ज्योतिरसः अस्म्यहं ।(इति युक्त्व योनि मुद्रां प्रदर्श्य गायत्री त्रयं पदित्व)
ॐ देवी गायत्री त्वं वसिष्ट शापत् विमुक्तो भव ॥
ॐ अस्य श्री विश्वामित्र शाप विमोचन मन्त्रस्य नूतन सृष्टि कर्ता विश्वामित्र ऋषि । वाग्देहा गायत्री छन्दः ।
विश्वामित्र अनुग्रहिता गायत्री शक्तिः देवता । विश्वामित्र शाप विमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ गायत्री भजांयग्नि मुखीं विश्वगर्भां यदुद्भवाः देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं तां कल्याणीं इष्टकरीं प्रपद्ये ।
यन्मुखान्निसृतो अखिलवेद गर्भः । शाप युक्ता तु गायत्री सफला न कदाचन ।
शापत् उत्तरीत सा तु मुक्ति भुक्ति फल प्रदा ॥ प्रार्थना ॥ ब्रह्मरूपिणी गायत्री दिव्ये सन्ध्ये सरस्वती ।
अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोने नमोऽस्तुते । ब्रह्म शापत् विमुक्ता भव । वसिष्ट शापत् विमुक्ता भव । विश्वामित्र शापत् विमुक्ता भव ॥

बुधवार, जनवरी 20, 2010

शांति पाठ

Shanti Patha
॥शांति पाठ॥


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,


सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।


ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः

इस मंत्र के प्रति दिन कम से कम एक बार जाप से मनुष्य को सभी प्रकार से शांति प्राप्त होती है।

अपने दिन को मंगलमय केसे बनाये ? (भाग: १)

Apane Din ko Mangalmay Kese Banaye ? (Bhag :1)

अपने दिन को मंगलमय केसे बनाये ? (भाग: १)


हिन्दू धर्म-शास्त्रो में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनेक विधानों का उल्लेख मिलता है। लेकिन आज की व्यस्त जीवन में व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसी स्थितिओं में विशिष्ट तेजस्वी मंत्रों के उच्चारण द्वारा भगवान को स्मरण करके उनकी कृपा सरलता से प्राप्त कर सके उसके लिये कुछ विशिष्ट तेजस्वी मंत्रो का वर्णण किया जारहा हैं।

प्रातः कर दर्शनं मंत्र

सुबह बिस्तर से उठने से पेहले (अर्थातः बिस्तर छोडनेसे पूर्व) इस मंत्र के स्मरण से हमारे अंदर एक अद्भुत शक्ति का संचार होता हैं। जिस्से हमारे अंतरमन से हतासा और निराशा जेसी नकारात्म भावनाओं को दूर हो कर हमारे अंदर एक सकारात्मन द्रष्टिकोण का निर्माण होता है। जो हमे अपने जीवन में आगे बढने के लिये सरल और उत्तम मार्ग खोजने मे सहायक सिद्ध होती है।

यह प्रयोग अद्भुत और शीघ्र प्रभाव दिखाने मे समर्थ है।

कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविंद प्रभाते कर दर्शनं॥

Karagre Vasate Lakshami, Kar Madhaye Sawaswati

Kar Moole too Govindam Prabhate Kar Darshanam


भावार्थ:  उंगलियों के अग्र भाग में लक्ष्मी जी निवास करती हैं, हथेली के मध्य भाग में सरस्वती जी और हथेली के मूल में नारयण का वास है, जिनका सवेरे दर्शन करना शुभप्रद है।


मंत्र को ३ या ७ बार मनमे उच्चरण करे।

अपने दोनो हाथो को जोडकर हथेली को देखते हुवे दिये गये मंत्र को पढते हुवे अपने अंतर मन में एसा भाव लाये की हमारे हाथ के अग्र भाग में मां महालक्ष्मी, तथा हाथ के मध्य भाग मे मां सरस्वती का वास है, और हाथ के मूल भाग मे स्वयं भगवान हरि बिराजमान है।

इस के लाभ: दिनभर मन प्रसन्न रहता है और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होकर हमे सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होती है।

(इस मंत्र के उच्चरण के बाद मे बिस्तर छोडे)

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विद्या की प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके) (भाग-२)

Vidya ki Prapti ke Vilakshan Upay (Totke / Totake) (Bhag-2 / Part-2) 

विद्या की प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके)  (भाग-२)

पढाई करने वाली मेज(टेबल) पर आईना नहीं रखना चहीये।

पढाई करने वाली मेज(टेबल) पर शीशा नहीं रखना चहीये। शीशा रखने से मानसिक अशांति होती हैं। पढाई मे मन नहीं लगता।

पढाई के समय अपने पीछे खाली जगा न रखे अर्थात ठोस दीवार  की और पीठ कर के बेठे। खुली जगा पर नही बेठना चाहिये ये इस्से आत्म विश्वास की कमी रेहजाती है। खुली जगा वाले स्थिती में बच्चे ज्यादा समय तक पढाई करने के बावजुद उसे अधिक याद नही रेहपाता हैं।

अपनी बायीं (राईट हेंड) और पानी से भरा ग्लास रखें एवं इसे थोडा-थोडा पानी समय के अंतराल पर पीते रेहने से स्मरण शक्ति तेज़ होगी औए एकाग्रता में वृद्धि होती हैं।

मेज(टेबल) पर यथा संभव कम सामग्री रखे उस्से एकाग्रता बढती है। ज्यदा सामग्री रखने से नकारत्मक शक्ति (नेगेटिव एनर्जी) उतपन्न होती हैं जिस्से पढाई मे मन नहीं लगता।

मेज(टेबल) को दीवार से थोडा दूर रखे सटाकर न रखें , इससे  एकाग्रता भंग होती हैं।

रात को सोने से पूर्व चांदी के ग्लास मे पानी भरकर रखले और सुबह खाली पेट पानी पिले एसा करने से शिक्षा के क्षेत्र मे सफलता प्राप्ति होती हैं।

भोजन करते समय चांदी के बरतनो का उपयोग करने से लाभ प्राप्त होता विद्या  प्राप्ति में लाभ होता है।


सरस्वती यंत्र (यन्त्र)

Saraswati Tantra
सरस्वती यंत्र (यन्त्र)


इस यंत्र को अष्टगंध की स्याही अथवा रोली (कुमकुम) से अनार की कलम से भोजपत्र या स्फेद कागज पर बनाले।

यंत्र सुख जाने के पश्च्यात उसे अपने पूजा स्थान में अगली वसंत पंचमी तक रखले उस्के बाद उसे बेहती पानी मे विसर्जन कर दे एवं पुनः वसंत पंचमी पर नया यंत्र बनाले।



आप हमारे GURUTVA  KARYALAY  द्वारा संपूर्ण प्राण-प्रतिष्ठित एवं पूर्ण चैतन्य युक्त सरस्वती कवच एवं सरस्वती यंत्र प्राप्त कर सकते हैं।

विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके) (भाग-१)

vidyaa Prapti Ke Vilakshan Upay(Totake, Totke) ( Bhag -1/ Part -1)


विद्या प्राप्ति के विलक्षण उपाय(टोटके) (भाग-१)


पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या की प्राप्ति होती है।

विद्वानो के मत से विद्या प्राप्ति हेतु ४ मुखी एवं ६ मुखी रूद्राक्ष लाल धागे मे धारण करने से व्यक्ति की बुद्धि तीव्र ओर कुशाग्र एवं विद्या, ज्ञान, उत्तम वाणी की प्राप्त होकर जीवन मे रचनात्मकता आति है

पढाई मेज पर स्फटिक का श्री यंत्र स्थापीत करने से स्मरण शक्ति तीव्रे होती हैं एवं खराब विचार दूर होकर उत्तम प्रकार की चिंताधारा उत्पन्न होती हैं, एवं मां सरस्वती और लक्ष्मी का आशिर्वाद सदैव बना रेहता हैं।

 अपने पूजा स्थान पर सरस्वती यंत्र स्थापीत कर प्रति दिन धूप- दीप करने से मां सरस्वती का आशिर्वाद एवं कृपा सदैव बनी रेहती हैं।

पढाई करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख कर कर पढाई करें।

पढाई करते समय स्फेद या हलके रंग के कपडो का चुनाव करे ताकी एकग्रता बनी रहें, गहरे रंग या भडकीले रंगो वाले कपडे पहनने से मानसिक अशांति उतपन्न होती हैं, जिस्से एकग्रता भंग होती हैं एवं पढाई मे मन नही लगता।

पढाई की किताब में मौली का टुकडा रखने से ज्ञान एवं विद्या में लाभ प्राप्त होता हैं।

किताब में मोर के पंख रखने से लाभ होता हैं।

ज्ञान मुद्रा का प्रति-दिन मात्र ५ मिनिट प्रयोग करने से स्मरण शक्ति की वृद्धि होती हैं। (मुद्रा के अन्य लाभ शीध्र उपलब्ध कराने हेतु हम प्रयास रत हैं।)

वंसत पंचमी

Vasant Panchami
वंसत पंचमी

२० जनवरी २०१० को हिन्दू पंचांग विक्रमी संवत् 2066 माघ मास शुक्ल की पक्ष को पंचमी को वंसत पंचमी अर्थात सरस्वती पूजा का दिन मां सरस्वती की पूजा आरधना कर उनकी कृपा प्राप्त करने हेतु वर्ष के सर्व श्रेष्ठ दिनो में से एक है जो विभिन्न शुभ कार्यो के शुभ आरंभ हेतु अत्यंत शुभ हैं।


वंसत पंचमी के दिन से भारत के कइ हिस्सो मे बच्चे को प्रथम अक्षर ज्ञान की शुरुवात की जाती है।

एसी मान्यता है की वसंत पंचमी के दिन विद्यांभ करने से बच्चे की की वाणी में मां सरस्वती स्वयं वास करती और बच्चे पर जीवन भर कृपा वर्षाती हैं। एवं बच्चों में विद्या एवं ज्ञान का विकास होता हैं जिस्से बच्चें मे श्रेष्ठता, सदाचार, तेजस्विता जेसे सद्द गुणों का आगमन होना प्रारंभ होता हैं, और बच्चा उत्तम स्मरण शक्ति युक्त विद्वान होता हैं।

इस दिन नये व्यवसाय का शुभ आरंभ या व्यवसाय हेतु नयी शाखा का शुभ आरंभ करना अत्यंत शुभ माना जाता हैं।

वसंत पंचमी के दिन पूजा आरधना से मां की कृपा से अध्यात्म ज्ञाना में वृद्धि होती हैं।

नित्य कर्म से निवृत होकर श्वेत वस्त्र धारण करके उत्तर-पूर्व दिशा में या अपने पूजा स्थान में सरस्वती का चित्र-मूर्ति अपने सम्मुख स्थापन करे।

सर्व प्रथम पूजा का प्रारंभ श्री गणेशजी की पूजा से करे तत पश्यात ही मां सरस्वती की पूजा करें।

मां सरस्वती को श्वेत रंग अत्यंत प्रिय है। इस लिये पूजा में ज्यादा से ज्यादा श्वेत रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें।

पूजा मे सफेद वस्त्र, स्फटिक माला, चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य मे श्वेत मिष्ठान आदी का प्रयोग करे जिस्से मां की कृपा शीघ्र प्राप्त हो

मां सरस्वती के वैदिक अथवा बीज मंत्रो का यथासंभव जाप करे।  और सरस्वती स्तोत्र, सरस्वती अष्टोत्तरनामावली, स्तोत्र एवं आरती कर के पूजा  संपन्न करे।

मंगलवार, जनवरी 19, 2010

विद्या प्राप्ति हेतु राम मंत्र

Vidya Prapti hetu ram mantra, vidhya Prapti hetu ram mantra

विद्या प्राप्ति हेतु राम मंत्र


विद्या प्राप्ति व परीक्षा में सफलता के लिये रामचरित मानस के मंत्र अचूक हैं । स्नान इत्यादि से निवृत होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। आसान पर बैठकर भगवान राम का चित्र स्थापित करें और धूप-दीप जलाकर मंत्र का 108 बार जाप करें।



विद्या प्राप्ति के लिये:
गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।
अलप काल विद्या सब पाई



परीक्षा में सफलता के लिये:
मोरि सुधारिहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥

सरस्वती मंत्र प्रयोग

Saraswati Mantra Prayog
अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र प्रयोग



प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें । अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से एक माला फेरें।

सरस्वती मूल मंत्र - ॐ ऎं सरस्वत्यै ऎं नमः।

सरस्वती मंत्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः।



सरस्वती गायत्री मंत्र -

१ - ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात।

२ - ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि । तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।

सरस्वती अष्टोत्तरनामावली

Saraswati Astottar Namawali


॥ सरस्वती अष्टोत्तरनामावलीः ॥

1. ॐ सरस्वत्यै नमः ॥

2. ॐ महाभद्रायै नमः ॥

3. ॐ महामायायै नमः ॥

4. ॐ वरप्रदायै नमः ॥

5. ॐ श्रीप्रदायै नमः ॥

6. ॐ पद्मनिलयायै नमः ॥

7. ॐ पद्माक्ष्यै नमः ॥

8. ॐ पद्मवक्त्रकायै नमः ॥

9. ॐ शिवानुजायै नमः ॥

10. ॐ पुस्तकभृते नमः ॥

11. ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः ॥

12. ॐ रमायै नमः ॥

13. ॐ परायै नमः ॥

14. ॐ कामरूपायै नमः ॥

15. ॐ महाविद्यायै नमः ॥

16. ॐ महापातक नाशिन्यै नमः ॥

17. ॐ महाश्रयायै नमः ॥

18. ॐ मालिन्यै नमः ॥

19. ॐ महाभोगायै नमः ॥

20. ॐ महाभुजायै नमः ॥

21. ॐ महाभागायै नमः ॥

22. ॐ महोत्साहायै नमः ॥

23. ॐ दिव्याङ्गायै नमः ॥

24. ॐ सुरवन्दितायै नमः ॥

25. ॐ महाकाल्यै नमः ॥

26. ॐ महापाशायै नमः ॥

27. ॐ महाकारायै नमः ॥

28. ॐ महांकुशायै नमः ॥

29. ॐ पीतायै नमः ॥

30. ॐ विमलायै नमः ॥

31. ॐ विश्वायै नमः ॥

32. ॐ विद्युन्मालायै नमः ॥

33. ॐ वैष्णव्यै नमः ॥

34. ॐ चन्द्रिकायै नमः ॥

35. ॐ चन्द्रवदनायै नमः ॥

36. ॐ चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः ॥

37. ॐ सावित्यै नमः ॥

38. ॐ सुरसायै नमः ॥

39. ॐ देव्यै नमः ॥

40. ॐ दिव्यालंकारभूषितायै नमः ॥

41. ॐ वाग्देव्यै नमः ॥

42. ॐ वसुदायै नमः ॥

43. ॐ तीव्रायै नमः ॥

44. ॐ महाभद्रायै नमः ॥

45. ॐ महाबलायै नमः ॥

46. ॐ भोगदायै नमः ॥

47. ॐ भारत्यै नमः ॥

48. ॐ भामायै नमः ॥

49. ॐ गोविन्दायै नमः ॥

50. ॐ गोमत्यै नमः ॥

51. ॐ शिवायै नमः ॥

52. ॐ जटिलायै नमः ॥

53. ॐ विन्ध्यावासायै नमः ॥

54. ॐ विन्ध्याचलविराजितायै नमः ॥

55. ॐ चण्डिकायै नमः ॥

56. ॐ वैष्णव्यै नमः ॥

57. ॐ ब्राह्मयै नमः ॥

58. ॐ ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै नमः ॥

59. ॐ सौदामन्यै नमः ॥

60. ॐ सुधामूर्त्यै नमः ॥

61. ॐ सुभद्रायै नमः ॥

62. ॐ सुरपूजितायै नमः ॥

63. ॐ सुवासिन्यै नमः ॥

64. ॐ सुनासायै नमः ॥

65. ॐ विनिद्रायै नमः ॥

66. ॐ पद्मलोचनायै नमः ॥

67. ॐ विद्यारूपायै नमः ॥

68. ॐ विशालाक्ष्यै नमः ॥

69. ॐ ब्रह्मजायायै नमः ॥

70. ॐ महाफलायै नमः ॥

71. ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥

72. ॐ त्रिकालज्ञायै नमः ॥

73. ॐ त्रिगुणायै नमः ॥

74. ॐ शास्त्ररूपिण्यै नमः ॥

75. ॐ शंभासुरप्रमथिन्यै नमः ॥

76. ॐ शुभदायै नमः ॥

77. ॐ स्वरात्मिकायै नमः ॥

78. ॐ रक्तबीजनिहन्त्र्यै नमः ॥

79. ॐ चामुण्डायै नमः ॥

80. ॐ अम्बिकायै नमः ॥

81. ॐ मुण्डकायप्रहरणायै नमः ॥

82. ॐ धूम्रलोचनमदनायै नमः ॥

83. ॐ सर्वदेवस्तुतायै नमः ॥

84. ॐ सौम्यायै नमः ॥

85. ॐ सुरासुर नमस्कृतायै नमः ॥

86. ॐ कालरात्र्यै नमः ॥

87. ॐ कलाधरायै नमः ॥

88. ॐ रूपसौभाग्यदायिन्यै नमः ॥

89. ॐ वाग्देव्यै नमः ॥

90. ॐ वरारोहायै नमः ॥

91. ॐ वाराह्यै नमः ॥

92. ॐ वारिजासनायै नमः ॥

93. ॐ चित्रांबरायै नमः ॥

94. ॐ चित्रगन्धायै नमः ॥

95. ॐ चित्रमाल्यविभूषितायै नमः ॥

96. ॐ कान्तायै नमः ॥

97. ॐ कामप्रदायै नमः ॥

98. ॐ वन्द्यायै नमः ॥

99. ॐ विद्याधरसुपूजितायै नमः ॥

100. ॐ श्वेताननायै नमः ॥

101. ॐ नीलभुजायै नमः ॥

102. ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः ॥

103. ॐ चतुरानन साम्राज्यायै नमः ॥

104. ॐ रक्तमध्यायै नमः ॥

105. ॐ निरंजनायै नमः ॥

106. ॐ हंसासनायै नमः ॥

107. ॐ नीलजङ्घायै नमः ॥

108. ॐ ब्रह्मविष्णुशिवात्मिकायै नमः ॥



॥॥ इति श्री सरस्वति अष्टोत्तरशत नामावलिः ॥॥

सरस्वती आरती

Saraswati Arati
॥सरस्वती आरती॥



आरती कीजै सरस्वती की,

जननि विद्या बुद्धि भक्ति की। आरती ..

जाकी कृपा कुमति मिट जाए।

सुमिरण करत सुमति गति आये,

शुक सनकादिक जासु गुण गाये।

वाणि रूप अनादि शक्ति की॥ आरती ..

नाम जपत भ्रम छूट दिये के।

दिव्य दृष्टि शिशु उध हिय के।

मिलहिं दर्श पावन सिय पिय के।

उड़ाई सुरभि युग-युग, कीर्ति की। आरती ..

रचित जास बल वेद पुराणा।

जेते ग्रन्थ रचित जगनाना।

तालु छन्द स्वर मिश्रित गाना।

जो आधार कवि यति सती की॥ आरती..

सरस्वती की वीणा-वाणी कला जननि की॥

सरस्वती स्तोत्र

Saraswati Stotra
॥सरस्वती स्तोत्र॥

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमा माद्या जगद्व्यापिनीं।



वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ॥१॥


हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां।


वंदे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥२॥



भावार्थ: शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार स्वरूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को दूर करने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली एवं पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हू।

विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती मंत्र

Vidhaya Prapti Ke liye Saraswati Mantra

विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती मंत्र


घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌।
गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥


भावार्थ: जो अपने हस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्य का नाश करने वाली महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती जो प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।


उपरोक्त मंत्र को प्रतिदिन जाप करने से विद्या की प्राप्ति होती है।

सोमवार, जनवरी 18, 2010

सरस्वती मंत्र (देवी सूक्त से)

Saraswati Mantra Tantrokt Devi Sukt se
सरस्वती मंत्र तन्त्रोक्तं देवी सूक्त से




या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेणसंस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो  नमः॥

सरस्वती मंत्र

Saraswati Mantra, saraswati stotram
॥ सरस्वती मंत्र ॥


या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता ।
या वीणा वर दण्ड मंडित करा या श्वेत पद्मसना ।।


या ब्रह्माच्युत्त शंकर: प्रभृतिर्भि देवै सदा वन्दिता ।
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्या पहा ॥१॥

भावार्थ: जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर अपना आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती आप हमारी रक्षा करें।


विद्या और ज्योतिषीय

vidya aur Jyotish | Vidhya or Jyotish
विद्या और ज्योतिषीय


हर माता-पिता की कामना होती है कि उनका बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिले। उच्च अंकों का प्रयास तो सभी बच्चें करते हैं पर कुछ बच्चें असफल भी रह जाते हैं। कई बच्चों की समस्या होती है कि कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें अधिक याद नहीं रह पाता, वे कुछ जबाव भूल जाते हैं। जिस वजह से वे बच्चें परीक्षा में उच्च अंकों से उत्तीर्ण नहीं होपाते या असफल होजाते हैं। ज्योतिष के अनुशार असफलता का कारण बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभाव है।


चंद्रमा और बुध का संबंध विद्या से हैं, क्योकि मन-मस्तिष्क का कारक चंद्रमा है, और जब चंद्र अशुभ हो तो चंचलता लिए होता है तो मन-मस्तिष्क में स्थिरता या संतुलन नहीं रहता हैं, एवं बुध की अशुभता की वजह से बच्चें में तर्क व कुशाग्रता की कमी आती है। इस वजह से बच्चें का मन पढाई मे कम लगता हैं और अच्छे अंकों से बच्चा उत्तीर्ण नहीं हो पाता।

भारतीय ऋषि मुनिओं ने विद्या का संबंध विद्या की देवी सरस्वती से बताय हैं। तो जिस बच्चें की जन्मकुंडली में चंद्रमा और बुध का अशुभ प्रभावो हो उसे विद्या की देवी सरस्वती की कृपा भी नहीं होती। एसे मे मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त चंद्रमा और बुध ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम कर शुभता प्राप्त की जा सकती है।

मां सरस्वती को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करने का तत्पर्य यह कतई ना समजे की सिर्फ मां की पूजा-अर्चना करने से बच्चा परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो एवं उसे सफलता मिल जायेगी क्योकि मां सरस्वती उन्हीं बच्चों की मदद करती हैं, जो बच्चे मेहनत मे विश्वास करेते और मेहनत करते हैं। बिना मेहनत से कोइ मंत्र-तंत्र-यंत्र परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने मे सहायता नहीं करता है। मंत्र-तंत्र-यंत्र के प्रयोग से एक तरह की सकारत्मक सोच उत्पन्न होती है जो बच्चें को पढाई मे उस्की स्मरण शक्ती का विकास करती हैं।