कोर्ट-केश एवं ज्योतिष (भाग:१)
पोस्ट सौजन्य: चिंतन जोशि, स्वस्तिक,
आजके युग में कुछ व्यक्ति को न्याय प्राप्त करने हेतु या स्वयं द्वारा किये गये कार्य अथवा अन्य झुठे मामलो के कारन कोर्ट के चक्कर बार-बार लगाने पडते हैं। न्याय प्राप्त होने तक कुछ मामलो में व्यक्ति को महिनो कि जगह सालो लग जाते हैं कोर्ट के चक्कर लगाते लगाते? लेकिन केश खत्म होने का नाम नहीं लेते। एसे में व्यक्ति अनेको प्रकार कि आशंका से ग्रस्त हो कर अशांति से सम्मुखीन हो जाता हैं।
न्याय के नजरिये से देखे तो अक्सर यही सुन्ने में आता हैं, देर सवेर हि सही जीत हमेसा सच्चाई कि हि होती हैं..... क्या यह वाक्य सब पर लागू होते हैं? नहीं ना? कभी कभी कुछ बेगुनाह लोग भी समय कि विवशता के अधिन होकर परेशानी उठाते देखे जाते हैं।
यदि एसे मामलो को बौधिक द्रष्टी कोण से विचार करें तो हमारी मानसिकता कुछ एसी होती हैं कि अगर किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का छल या फ़रेब के कारणा न्यायालय से न्याय नही प्राप्त होता, तो ईश्वर शक्तिया अपने द्वारा उसे सजा देती हैं, यह कितना सत्य हैं यह तो सबका अपना अपना एक नजरीया होता हैं। लेकिन वास्तविकता सबके लिये समान हो यह जरुरी नहीं हैं।
वास्तविकता चाहे जो हो ज्योतिष के मूल सिद्धांत के आधार पर गणना कर कोर्ट से संबंधिक सभी प्रकार कि समस्या का उत्तर प्राप्त हो सकता हैं, एवं विभिन्न संस्कृति में मंत्र-यंत्र-तंत्र के प्रयोगो से शीघ्र सफलता प्राप्त करने हेतु अनेको उपाय उपलब्ध हैं।
स्वयं के कोर्ट में जाने का कारण?
- स्वयं के कोर्ट में जाने का कारण जन्म कुन्डली या प्रश्न कुन्डली में लग्न और लगनेश के स्थान से पता किया जाता है, लगनेश पर
- जब शुभ या अशुभ ग्रह अपना प्रभाव डाल रहे हों, उसमे से जो ग्रह अपना अशुभ प्रभाव देता हैं, वही कारण स्वयं के न्यायालय में जाने का कारण होता है।
विरोधि पक्ष कि हार जित का निर्णय?
जन्म कुन्डली या प्रश्न कुन्डली में सप्तम स्थान विरोधि पक्ष का होता हैं।- यदि कुन्डली मे सप्तम भाव का स्वामी बलवान हो, तो विरोधि पक्ष कि जित होती हैं।
- यदि कुन्डली मे सप्तम भाव का स्वामी कमजोर हो, तो विरोधि पक्ष को पराजय मिलती हैं।
- जब सप्तम भाव का स्वामी का प्रभाव जिस राशि एवं ग्रहों पर होता हैं, विरोधि पक्ष उन स्थानो पर अपना अशुभ प्रभाव देता हैं।
(क्रमश: ......)
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