संवत्सर एवं युगफल
शास्त्र के अनुशार साठ संवत्सरोमें बारह युग होते हैं और एक युग पांच वर्षका होता हैं एवं साठ (60) वर्ष अर्थात् संवत्सरोंमें बारह युग कहे हैं ॥
प्रथम युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य मदिरा मांस प्रेमी करने वाला, सदा पराई स्त्रीमें रत रहने वाला, कवि, कारीगरीकी विद्या जानने वाला और चतुर होता हैं।
दूसरे युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य सर्वदा वाणिज्य कर्ममें व्यवहार करने वाला, धर्मवान्, अच्छे पुरुषोंकी संगति करने वाला, धनका अधिक लोभी और पापी होता हैं।
तीसरे युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य भोगी, दानी, उपकार करने वाला, ब्राह्मण और देवताओं को पूजने वाला तेजवान् और धनवान् होता हैं।
चौथे युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य बाग, खेतकी प्राप्ति करने वाला, औषधीको सेवन करने वाला रोगी और धातुवादमें घननाश करनेवाला होता हैं।
पांचवे युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य पुत्रवान्, धनवान्, इन्द्रियों को जीतने वाला और पिता-माताका प्रिय होता हैं।
छठे युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य सदा नीच शत्रुओं से पीडित, पशु प्रेम, पत्थरसे चोट पाने वाला और भयसे पीडित होता हैं।
सातवें युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य बहुत प्रिय मित्रों युक्त, व्यापार में कपट करने वाला, जल्दी चलने वाला तथा कामी होता हैं।
आठवें युगमें उत्पन्न होनेसे मनुष्य सदा पापकर्म करने वाला, असंतोषी, व्याधि दुःखसे युक्त और दूसरों की हिंसा करने वाला होता हैं।
नवम युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य बावडी, कुंआ तलाब तथा देवदीक्षा और अभ्यागत में रुचि रखने वाला राजा के समान होता हैं।
दशम युगमें जन्म लेनेसे मनुष्य राज अधिकारी, मंत्री, स्थानप्राप्ति करनेवाला, बहुत सुखी, सुंदर वेष एवं रुपवाला, और दानी होता हैं।
जिसका जन्म ग्यारहवें युगमें हो वह मनुष्य बुद्धिमान्, सुंदर शीलवान्, देवताओं को मानने वाला और युद्धमें निपूर्ण होता हैं।
बारहवें युगमें जन्म लेने वाला मनुष्य तेजस्वी, प्रसन्न चित्तवाला, मनुष्योमें श्रेष्ठ खेती व वाणिज्य कर्म करनेवाला होता हैं।
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