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॥आरती श्री विराट विश्वकर्मा जी की॥
ॐ जय विश्वकर्मा प्रभु जय विश्वकर्मा ।
शरण तुम्हारी आये हैं, रक्षक श्रुति धर्मा ।
उमा भवानी शंकर भोले, शरण तुम्हारी आये ।
कुंज बिहारी कृष्ण योगी, दर्शन करने धाये ।1।
सृष्टि धर्ता पालन कर्ता, ज्ञान विकास किया ।
धनुष बना छिन माहिं तुमने, शिवाजी हाथ दिया ।2।
आठ व्दीप नौ खण्ड स्वामी, चौदह भुवन बनायें ।
पंचानन करतार जगत के, देख सन्त हर्षाये ।3।
शेष शारदा नारद आदि देवन की करी सहाई ।
दुर्गा इन्द्र सीया राम ने निज मुख गाथा गाई ।4।
ब्रह्म विष्णु विश्वकर्मा तूं शक्ति रुपा ।
जगहितकारी सकंट हारी , तुम जग के भूपा ।5।
ज्ञान विज्ञान निधि दाता त्वष्टा भुवन पति ।
अवतार धार के स्वामी तुमने जग में कियो गति । 6।
मनु मय त्वष्टा पाँच तनय, ज्ञान शिल्प दाता ।
शिल्प विधा का आदि युग में, तुम सम को ज्ञाता ।7।
मन भावन पावन रुप स्वामी ऋषियों ने जाना ।
पीत वसन तन सोहे स्वामी, मुक्ति पद बाना ।8।
विश्वकर्मा परम गुरु की जो कोई आरती गावै ।
विश्वप्रताप सन्ताप मिटै, घर सम्पत आवै ।9।
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