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मंगलवार, मार्च 01, 2011

महाशिवरात्रि महत्व

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महाशिवरात्रि महत्व

महाशिवरात्रि को हिंदू धर्म में एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाय जाता हैं। महाशिवरात्रि को कालरात्रि के नाम से भी जान जाता हैं।
महाशिवरात्रि पर्व प्रति वर्ष फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता हैं। एसी मान्यता हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शिवजी का ब्रह्मा रुप से रुद्र रूप में अवतार हुआ था। प्रलय के समय में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए समग्र ब्रह्मांड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि कहाजाता हैं।
तीनों लोक की सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अपनी अर्धांगिनी बनाने वाले शिव सर्वदा प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप अनोखा हैं। शरीर पर स्मसान की भस्म, और गले में सर्पों की माला, कंठ में विष, जटा में शशी (चंद्र) एवं पतित पावनी गंगा तथा मस्तक पर प्रलय कारी ज्वाला हैं। नंदि (बैल) को वाहन बनाने वाले हैं।
शिव अमंगल रूप होकर भी अपने भक्तों का अमंगल दूर कर मंगल करते हैं और सुख-संपत्ति एवं शांति प्रदान करते हैं।

शिवरात्रि व्रत का लाभ:
हिंदू संस्कृति में महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन माना जाता हैं। शिवरात्रि पर अपनी आत्मा को निर्मल करने का महाव्रत माना जाता हैं। महाशिव रात्रि व्रत से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता हैं। व्यक्ति की हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती हैं। समस्त जीवों के प्रति उसके भितर दया, करुणा इत्यादि सद्द भावो का आगमन होता है।

ईशान संहिता में शिवरात्रि के बारे मे उल्लेख इस प्रकार किया गया है-

शिवरात्रि व्रतम् नाम सर्वपाम् प्रणाशनम्।
आचाण्डाल मनुष्याणम् भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥

भावार्थ:- शिव रात्रि नाम वाला व्रत समस्त पापों का शमन करने वाला हैं। इस दिन व्रत कर ने से दुष्ट मनुष्य को भी भक्ति मुक्ति प्राप्त होती हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुशार शिवरात्री व्रत का महत्व और लाभ:
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिवजी हैं। ज्योतिष शास्त्रों में चतुर्दशी तिथि को परम शुभ फलदायी मना गया हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने चतुर्दशी तिथि को होती हैं। परंतु फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया हैं। ज्योतिषी शास्त्र के अनुसार विश्व को उर्जा प्रदान करने वाले सूर्य इस समय तक उत्तरायण में आ होते हैं, और ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यंत शुभ कहा माना जाता हैं। शिव का अर्थ ही है कल्याण करना, एवं शिवजी सबका कल्याण करने वाले देवो के भी देव महादेव हैं। अत: महा शिवरात्रि के दिन शिव कृपा प्राप्त कर व्यक्ति को सरलता से इच्छित सुख की प्राप्ति होती हैं। ज्योतिषीय सिद्धंत के अनुसार चतुर्दशी तिथि तक चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जात्ता हैं। अपनी क्षीण अवस्था के कारण बलहीन होकर चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा(प्रकाश) देने में असमर्थ हो जाते हैं।

चंद्र का सीधा संबंध मनुष्य के मन से बताया गया हैं। ज्योतिष सिद्धन्त से जब चंद्र कमजोर होतो मन थोडा कमजोर हो जाता हैं, जिस्से भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं, और विषाद, मान्सिक चंचल्ता-अस्थिरता एवं असंतुलन से मनुष्य को विभिन्न प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता हैं।
धर्म ग्रंथोमे चंद्रमा को शिव के मस्तक पर सुशोभित बताय गया हैं। जिस्से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होने से चंद्रदेव की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। महाशिवरात्रि को शिव की अत्यंत प्रिय तिथि बताई गई हैं। ज्यादातर ज्योतिषी शिवरात्रि के दिन शिव आराधना कर समस्त कष्टों से मुक्ति पाने की सलाह देते हैं।
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