शिव पूजन, શિવ પૂજન, ಶಿವ ಪೂಜನ, ஶிவ பூஜந, శివ పూజన, ശിവ പൂജന, ਸ਼ਿਵ ਪੂਜਨ, শিৱ পূজন, Siva pujan, ଶିବ ପୂଜନ, How to worship Shiva, How to veneration Shiva, How to puja Shiva, How to puja Shivalingm, How to Pooja Shiva,
कैसे करें शिव का पूजन
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (मार्च-2011)
भगवान शिव का प्रिय- सोमवार, माह की दोनो चतुर्दशी, प्रदोष व्रत, माह श्रावण मास हैं, इस विशेष शुभ अवशरो पर अल्प समय में शिव पूजन का पूर्ण लाभ प्राप्त हो इस लिये शिवपूजन की वर्णित विधि से पूर्ण की जा सकती हैं।
- उक्त शुभ अवसरो पर प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर त्रिदल वाले सुन्दर-साफ, बिना कटे-फटे पाँच-सात- नौ-ग्यारा यथा शक्ति विषम संख्या में बिल्व पत्र लेने चाहिये। यदि बिल्व पत्र प्राप्त नहो तो अक्षत अर्थात बिना टूटे-फूटे चावल को पूजन में ले सकते हैं।
- साफ लोटे या किसी अन्य सुंदर पात्र में गंगा जल यदि गंगाजल न हो तो स्वच्छ जल ले सकते हैं।
- पूजन हेतु अपनी सामर्थ्य के अनुसार अष्टगंध, चन्दन, हल्दी, धूप, दीप, अगरबत्ती इत्यादी सभी आवश्यक सामग्री लेकर किसी भी शिव मंदिर (शिवालय) में करना अधिक लाभ प्रद होता हैं। अन्यथा घर में शिवलिंग स्थापित कर सकते हैं।
- समस्त सामग्री को किसी स्वच्छ पात्र में रखदें। यदि कोई पात्र उपलब्ध न हो, तो भूमि को लीप-पोतकर स्वच्छ करके निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त सामग्री भूमी पर रख दें।
मंत्र-
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्मसमारम्भे॥
अपसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः।
ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।
उक्त विधान के पश्चयात यदि शिवलिंग को स्वच्छ जल से धोएँ और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
गंगा सिन्धुश्य कावेरी यमुना च सरस्वती।
रेवा महानदी गोदा अस्मिन् जले सन्निधौ कुरु।
उक्त विधान के पश्चयात शिवलिंग के ऊपर अष्टगंध, चन्दन इत्यादि द्रव्य चढ़ाएँ और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
ॐ भूः भुर्वः स्वः क्क द्रव्य त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामुतः।
उक्त विधान के पश्चयात शिवलिंग के ऊपर अक्षत चढ़ाएँ और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत । अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठाया मती योजा न्विन्द्र ते हरी ।।
उक्त विधान के पश्चयात शिवलिंग के ऊपर पुष्प चढ़ाएँ और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वा इव सजित्वरीर्व्वीरुधः पारयिष्णवः।
उक्त विधान के पश्चयात भगवान को धूप अर्पण करें तथा भगवान को बिल्वपत्र अर्पण करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
काशीवास निवासिनाम् कालभैरव पूजनम्।
कोटिकन्या महादानम् एक बिल्वं समर्पणम्।
दर्षनं बिल्वपत्रस्य स्पर्षनं पापनाशनम्।
अघोर पाप संहार एकबिल्वं शिवार्पणम।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।
त्रिजन्मपाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम।
उक्त विधान के पश्चयात शिवलिंग के ऊपर गंगा जल या शुद्ध जल चढ़ाएँ और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
मंत्र-
गंगोत्तरी वेग बलात् समुद्धृतम् सुवर्ण पात्रेण हिमान्षु शीतलम् सुनिर्मलाम्भो ह्यमृतोपमम् जलम् गृहाण काशीपति भक्त वत्सल
उक्त विधान के पश्चयात भगवान शिव से पूजन में हुई तृटि हेतु निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए क्षमा याचना करें।
अपराधो सहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निषम् मया, दासोऽयमिति माम् मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।
आवाहनम् न जानामि न जानामि विसर्जनम् पूजाम् चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर।
मन्त्रहीनम् क्रियाहीनम् भक्तिहीनम् सुरेश्वर, यत्पूजितम् मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे।
बिना मंत्र पढ़े भी उक्त समस्त सामग्री भगवान शिव को पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव से अर्पित की जा सकती है।
व्यक्ति के अंतर मन में केवल विश्वास एवं श्रद्धा होनी चाहिए।
क्योकि भगवान भोलेनाथ के वचन हैं:
न मे प्रियश्चतुर्वेदी मद्भभक्तः श्वपचोऽपि यः।
तस्मै देयम् ततो ग्राह्यम् स च पूज्यो यथा ह्यहम्॥
पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम् यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तस्याहम् न प्रणस्यामि स च मे न प्रणस्यति॥
अर्थात: जो भक्तिभाव से बिना किसी वेद मंत्र के उच्चारण किए मात्र पत्र, पुष्प, फल अथवा जल समर्पित करता हैं उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह भी मेरी दृष्टि से कभी ओझल नहीं होता हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें