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शिव महत्व
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (मार्च-2011)
धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं। क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं। देश-विदेश में भगवान शिव के मंदिर हर छोटे-बडे शहर एवं कस्बो में मोजुद हैं, जो भगवान महादेव की व्यापकता को एवं उनके भक्तो कि आस्था को प्रकट करते हैं।
भगवान शिव एक मात्र एसे देव हैं जिसे भोले भंडारी कहा जाता हैं, भगवान शिव थोङी सी पूजा-अर्चना से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती हैं। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक शिव भक्त के लिए परम आवश्यक हैं। भगवान भोले नाथ ने समुद्र मंथन से निकले हुए समग्र विष को अपने कंठ में धारण कर वह नीलकंठ कहलाये।
शिव उपासना का महत्व
भगवान शिव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीनों पर एक समान अधिकार हैं। शिवने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर शशि शेखर कहलाये हैं। चंद्रमा से शिव को विशेष स्नेह होने के कारण चंद्र सोमवार का अधिपति हैं इस लिये शिव का प्रिय वार सोमवार हैं। शिव कि पूजा-अर्चना के लिये सोमवार के दिन करने का विशेष महत्व हैं, इस दिन व्रत रखने से या शिव लिंग पर अभिषेक करने से शिवकी विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।
सभी सोमवार शिव को प्रिय हैं, परंतु पूरे श्रावण मास के सभी सोमवार को किये गये व्रत-पूजा अर्चना अभिषेक पूरे वर्ष किये गये व्रत के समान फल प्रदान करने वाली होती हैं।
शिव को श्रावण मास इस लिये अधिक प्रिय हैं क्योकि श्रावण मास में वातावरण में जल तत्व कि अधिकता होती हैं एवं चंद्र जलतत्व का अधिपती ग्रह हैं। जो शिव के मस्तक पर सुशोभित हैं।
शिव उपासना के विभिन्न रूप वेदों में वर्णित हैं। शिव मंत्र उपासना में पंचाक्षरी "नम: शिवाय" या "ॐ नम: शिवाय" और महामृत्युंजय इत्यादि मंत्रों के जप का भी श्रावण मास में विशेष महत्व हैं, श्रावण मास में किय गये मंत्र जाप कई गुना अधिक प्रभाव शाली सिद्ध होते देखे गये हैं। जहा शिव पंचाक्षरी मंत्र मनुष्य को समस्त भौतिक सुख साधनो कि प्राप्ति हेतु विशेष लाभकारी हैं, वहीं महामृत्युंजय मंत्र के जप से मनुष्य के सभी प्रकार के मृत्यु भय-रोग-कष्ट-दरिद्रता दूर होकर उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती हैं। महामृत्युंजय मंत्र, रूद्राभिषेक आदि का सामुहिक अनुष्ठान करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं महामारी आदि से रक्षा होती हैं एवं अन्य सभी प्रकार के उपद्रवों की शांति होती हैं।
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