Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


मंगलवार, मार्च 01, 2011

शिव पुराण कि महिमा

शिव महापुराण महिमा, શિવ મહાપુરાણ મહિમા, ಶಿವ ಮಹಾಪುರಾಣ ಮಹಿಮಾ, ஶிவ மஹாபுராண மஹிமா, శివ మహాపురాణ మహిమా, ശിവ മഹാപുരാണ മഹിമാ, ਸ਼ਿਵ ਮਹਾਪੁਰਾਣ ਮਹਿਮਾ, শিৱ মহাপুরাণ মহিমা, Siv mahapuran mahima, ଶିବ ମହାପୁରାଣ ମହିମା, the glory of Shiv Mahapurana, the glorify of Shiv Mahapurana, the glorified of Shiv Mahapurana, the splendor of Shiv Mahapurana, the splendor of Shiv Puranas the splendor mythology of Shiv,

शिव पुराण कि महिमा


पुराण क्या हैं?
पुराण शब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैं पुराना।
आज से हजारो वर्ष पूर्व रचित पुराण में उल्लेखीत श्लोक एवं उसकी शिक्षा पुरानी नहीं हुई हैं, आज के निरंतर द्वन्द्वता भरे युग में आज भी पुराणों की शिक्षा मनुष्य को द्वन्द्व से मुक्ति दिलाने में निश्चित दिशा दे ने में समर्थ हैं। क्योकी व्यक्ति चाहे जीवन में कितनी भी भौतिक और वैज्ञानिक उन्नति कर लें परंतु उसे मानव जीवन को आदर्श बनाने का मार्ग एवं मानव जीवन के उत्कर्ष का सुगम मार्ग भौतिकता में डूब कर या वैज्ञानिकता के मार्ग में प्राप्त नहीं हो सकता। वह मार्ग हमारे प्राचिन ग्रंथो में मौजुद हैं। अफसोस हम हमारे मूल्यवान ग्रंथो को किनारा कर आज हम जीवन की विडंबनापूर्ण स्थिति के बीच से गुजर रहे हैं। जिस्से हमारे बहुत सारे मूल्य एवं परंपरा खंडित हो गई हैं और दिन-प्रतिदिन खंडित होती जारही हैं, क्योकि आधुनिक ज्ञान के नाम पर विदेशी चिंतन का प्रभाव हमारे ऊपर अत्याधिक हावी होता जा रहा हैं। जिस कारण हम हमारी संसकृति सभ्यता एवं प्राचिन-पौराणिक ज्ञान से वंचित होते जारहे हैं।
क्या हैं शिव पुराण?
विद्वानो के मत से ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम स्वयं जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की थी, उसे पुराण कहा जाता हैं। ब्रह्माजी द्वारा रचित धर्मग्रंथ में लगभग एक अरब से अधिक श्लोकों का उल्लेख हैं एवं यह बृहत धर्मग्रंथ देवलोक में आज भी मौजूद हैं, ऎसा विद्वानो का मत हैं!
महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी ने मनुष्य के कल्याण हेतु धर्मग्रंथ अथवा बृहत पुराण के एक अरब से अधिक श्लोकों को केवल चार लाख श्लोकों में संपादित किया। चार लाख चार लाख श्लोकों में संपादित धर्मग्रंथ को वेदव्यास जी ने पुनः अठारह खण्डों में विभाजन किया। जो आज हमारी संस्कृति में अठारह पुराणों के रूप में विख्यात हैं।
अठारह पुराणों का वर्णन इस प्रकार हैं।
1. ब्रह्म पुराण
2. पद्म पुराण
3. विष्णु पुराण
4. शिव पुराण
5. भागवत पुराण
6. भविष्य पुराण
7. नारद पुराण
8. मार्कण्डेय पुराण
9. अग्नि पुराण
10. ब्रह्मवैवर्त पुराण
11. लिंग पुराण
12. वराह पुराण
13. स्कंद पुराण
14. वामन पुराण
15. कूर्म पुराण
16. मत्स्य पुराण
17. गरुड़ पुराण
18. ब्रह्माण्ड पुराण
उक्त 18 पुराणों में अलग-अलग देवी देवताओं के विभिन्न स्वरूपों ……………..>>
विद्वानो ने अठारह पुराणों के सार को एक ही श्लोक में व्यक्त करते हुए कहा हैं।
परोपकाराय पुण्याय पापाय पर पीड़नम्।
अष्टादश पुराणानि व्यासस्य वचन॥
अर्थात्: व्यास मुनि द्वारा रचित अठारह पुराणों में दो ही बातें मुख्यत: कही हैं, परोपकार करना संसार का सबसे बड़ा पुण्य और किसी को पीड़ा देना संसार सबसे बड़ा पाप हैं।
शिवपुराण का संक्षिप्त परिचय
एक बार सूतजी ने शिवपुराण के महत्त्व को समझाते ……………..>>
मूल शिव पुराण के बारह भेद या खण्ड हैं जो इस प्रकार हैं।
  • विद्येश्वरसंहिता,
  • रुद्रसंहिता,
  • विनायकसंहिता,
  • उमासंहिता,
  • मातृसंहिता,
  • एकादशरुद्रसंहिता,
  • कैलाससंहिता,
  • शतरुग्रसंहिता,
  • कोटिरुद्रसंहिता,
  • सहस्रकोटिरुद्रसंहिता,
  • वायवीयसंहिता तथा
  • धर्मसंहित

उक्त बारह संहिताएं अत्यन्त पुण्यमयी मानी गयी हैं।

ब्राह्मणो ! विद्येश्वरसंहिता में दस सहस्र श्लोक हैं।
  • रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता और मातृसंहिता में आठ-आठ सहस्र श्लोक हैं।
  • एकादशरुद्रसंहिता में तेरह सहस्र,
  • कैलाससंहिता में छ: सहस्र,
  • शतरुग्रसंहिता में तीन सहस्र,
  • कोटिरुद्रसंहिता में नौ सहस्र,
  • सहस्रकोटिरुद्रसंहिता में ग्यारह सहस्र,
  • वायवीय संहिता में चार सहस्र तथा
  • धर्मसंहिता में बारह सहस्र श्लोक हैं।
इस प्रकार मूल शिवपुराण में श्लोकों की कुल संख्या एक लाख है।
परन्तु व्यासजी ने शिवपुराण को चौबीस सहस्त्र श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया हैं।
चौबीस सहस्त्र श्लोकों को सात संहिता या खण्ड में विभक्त किया गया हैं।
  • विद्येश्वरसंहिता,
  • रुद्रसंहिता,
  • शतरुग्रसंहिता,
  • कोटिरुद्रसंहिता,
  • उमासंहिता,
  • कैलाशसंहिता तथा
  • वायवीयसंहिता हैं।
श्रीशिवपुराण-माहात्म्य
शौनकजी ने सूतजी से प्रश्न किया?
शौनकजी ने पूछा- प्रभो ! आप सम्पूर्ण सिद्धान्तों के ज्ञाता हैं।
प्रभो ! कृपया आप मुझसे पुराणों की ……………..>>
इस लेख को प्रतिलिपि संरक्षण (Copy Protection) के कारणो से यहां संक्षिप्त में प्रकाशित किया गया हैं।


>> गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (मार्च-2011)
>> http://gk.yolasite.com/resources/GURUTVA%20JYOTISH%20MAR-201.pdf  
इससे जुडे अन्य लेख पढें (Read Related Article)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें