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सोमवार, अगस्त 02, 2010

शिव उपासना का महत्व

SHIV UPASNA KA MAHATVA

शिव उपासना का महत्व


भगवान शिव का सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण तीनों पर एक समान अधिकार हैं। शिवने अपने मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर शशि शेखर कहलाये हैं। चंद्रमा से शिव को विशेष स्नेह होने के कारण चंद्र सोमवार का अधिपति हैं इस लिये शिव का प्रिय वार सोमवार हैं। शिव कि पूजा-अर्चना के लिये सोमवार के दिन करने का विशेष महत्व हैं, इस दिन व्रत रखने से या शिव लिंग पर अभिषेक करने से शिवकी विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।

सभी सोमवार शिव को प्रिय हैं, परंतु पूरे श्रावण मास के सभी सोमवार को किये गये व्रत-पूजा अर्चना अभिषेक पूरे वर्ष किये गये व्रत के समान फल प्रदान करने वाली होती हैं।

शिव को श्रावण मास इस लिये अधिक प्रिय हैं क्योकि श्रावण मास में वातावरण में जल तत्व कि अधिकता होती हैं एवं चंद्र जलतत्व का अधिपती ग्रह हैं। जो शिव के मस्तक पर सुशोभित हैं।

शिव उपासना के विभिन्न रूप वेदों में वर्णित हैं। शिव मंत्र उपासना में पंचाक्षरी "नम: शिवाय" या "ॐ नम: शिवाय" और महामृत्युंजय इत्यादि मंत्रों के जप का भी श्रावण मास में विशेष महत्व हैं, श्रावण मास में किय गये मंत्र जाप कई गुना अधिक प्रभाव शाली सिद्ध होते देखे गये हैं। जहा शिव पंचाक्षरी मंत्र मनुष्य को समस्त भौतिक सुख साधनो कि प्राप्ति हेतु विशेष लाभकारी हैं, वहीं महामृत्युंजय मंत्र के जप से मनुष्य के सभी प्रकार के मृत्यु भय-रोग-कष्ट-दरिद्रता दूर होकर उसे दीर्घायु की प्राप्ति होती हैं। महामृत्युंजय मंत्र, रूद्राभिषेक आदि का सामुहिक अनुष्ठान करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं महामारी आदि से रक्षा होती हैं एवं अन्य सभी प्रकार के उपद्रवों की शांति होती हैं।

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