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शनिवार, अक्टूबर 09, 2010

तृतीयं चन्द्रघण्टा

नवरात्र में मां दुर्गा के चन्द्रघण्टा रुप की आराधना,, navaratra meM maa durga ke chandraghanta rup ki araadhana,

तृतीयं चन्द्रघण्टा


नवरात्र के तीसरे दिन मां के चन्द्रघण्टा स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। चन्द्रघण्टा का स्वरूप शांतिदायक और परम कल्याणकारी हैं। चन्द्रघण्टा के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र शोभित रहता हैं । इस लिये मां को चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता हैं। चन्द्रघण्टा के देह का रंग स्वर्ण के समान चमकीला हैं और देवि उपस्थिति में चारों तरफ अद्भुत तेज दिखाई देता हैं।

मां तीन नेत्र एवं दस भुजाए हैं, जिसमें कमल, धनुष-बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि अस्त्र-शस्त्र, बाण आदि सुशोभित रहते हैं। मां के कंठ में सफेद पुष्पों कि माला और शीर्ष पर रत्नजडि़त मुकुट शोभायमान हैं।

चन्द्रघण्टा का वाहन सिंह हैं, इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने की होती हैं। इनके घण्टे सी भयानक प्रचंड ध्वनि से अत्याचारी दैत्य, दानव, राक्षस व दैव भयभित रहते हैं।

मंत्र:
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।

ध्यान:-
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढादशभुजांचन्द्रघण्टायशस्वनीम्॥
कंचनाभांमणिपुर स्थितांतृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग गदा त्रिशूल चापहरंपदमकमण्डलु माला वराभीतकराम्।
पटाम्बरपरिधांनामृदुहास्यांनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणिरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधाराकातंकपोलांतुंग कुचाम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकंटिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-
आपदुद्वारिणी स्वंहिआघाशक्ति: शुभा पराम्। मणिमादिसिदिधदात्रीचन्द्रघण्टेप्रणभाम्यहम्॥
चन्द्रमुखीइष्टदात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्। धनदात्रीआनंददात्रीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणीइच्छामयीऐश्वर्यदायनीम्। सौभाग्यारोग्यदायनीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-
रहस्यं श्रुणुवक्ष्यामिशैवेशीकमलानने। श्री चन्द्रघण्टास्यकवचंसर्वसिद्धि दायकम्॥ बिना न्यासंबिना विनियोगंबिना शापोद्धारबिना होमं। स्नानंशौचादिकंनास्तिश्रद्धामात्रेणसिद्धिदम्॥ कुशिष्यामकुटिलायवंचकायनिन्दाकायच। न दातव्यंन दातव्यंपदातव्यंकदाचितम्॥

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने से व्यक्ति का मणिपुर चक्र जाग्रत हो जाता हैं। उपासना से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं उसे समस्त सांसारिक आधि-व्याधि से मुक्ति मिलती हैं। इसके उपरांत व्यक्ति को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होनता प्राप्त होती हैं। व्यक्ति के साहस एव विरता में वृद्धि होती हैं। व्यक्ति स्वर में मिठास आती हैं उसके आकर्षण में भी वृद्धि होती हैं। चन्द्रघण्टा को ज्ञान की देवी भी माना गया है।
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