नवरात्र में कन्या पूजन अनुष्ठान
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2010)
नवरात्र में कुमारिका पूजन-व्रत-अनुष्ठान को अनिवार्य अंग माना जाता हैं। नवरात्रमें कुंवारी कन्याओं का विधि-विधान से पूजन कर उनको भोजन कराके वस्त्र-दक्षिणा आदि भेट देकर संतुष्ट करना चाहिए। कुमारिका पूजन हेतु कन्या दो से दस वर्ष तक ही होनी चाहिए।
दो वर्ष की कन्या को कुमारी माना जाता हैं।
कुमारी पूजन से व्यक्ति के दु:ख-दरिद्रता का शमन होता हैं।
कुमारी के पूजन का मंत्र-
कुमारस्यचतत्त्वानिया सृजत्यपिलीलया। कादीनपिचदेवांस्तांकुमारींपूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो कुमार कार्तिकेय कि जननी एवं ब्रह्मादि देवताओं की लीलापूर्वक रचना करती हैं, उन कुमारी देवी कि मैं पूजा करता हूं।
तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना जाता हैं।
त्रिमूर्ति के पूजन से व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम कि प्राप्ति होती हैं। इसी के साथ घर में धन-धान्य में वृद्धि होता हैं, तथा पुत्र-पौत्रों का लाभ प्राप्त होता हैं।
त्रिमूर्ति के पूजन का मंत्र-
सत्त्वादिभिस्त्रिमूर्तिर्यातैर्हिनानास्वरूपिणी। त्रिकालव्यापिनीशक्तिस्त्रिमूर्तिपूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो सत्व, रज, तम तीनों गुणों के तीन रूप धारण करती हैं, जिनके अनेक रूप हैं एवं जो तीनों कालों में व्याप्त हैं, उन भगवती त्रिमूर्ति कि मैं पूजा करता हूँ।
चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता हैं।
कल्याणी के पूजन से व्यक्ति को विजय, विद्या, सत्ता एवं सुख कि प्राप्ति होकर व्यक्ति कि समस्त कामनाए पूर्ण होती हैं।
कल्याणी के पूजन का मंत्र-
कल्याणकारिणीनित्यंभक्तानांपूजितानिशम्। पूजयामिचतांभक्त्याकल्याणीम्सर्वकामदाम्॥
अर्थातः निरंतर सुपूजितहोने पर भक्तों का कल्याण करना जिसका स्वभाव ही है, सब मनोरथ पूर्ण करने वाली उन भगवती कल्याणी की मैं पूजा करता हूं।
पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी माना जाता हैं।
रोहिणी के पूजन से व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य कि प्ताप्ति होकर उसके समस्त रोग का विनाश होता हैं।
रोहिणी के पूजन का मंत्र-
रोहयन्तीचबीजानिप्राग्जन्मसंचितानिवै।
या देवी सर्वभूतानांरोहिणीम्पूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो सब प्राणियों के संचित बीजों का रोहण करती हैं, उन भगवती रोहिणी कि मैं उपासना करता हूं।
छ:वर्ष की कन्या को कालिका माना जाता हैं।
कालिका के पूजन से व्यक्ति के विरोधि तथा शत्रु का शमन हो कर उसपर विजय प्राप्त होती हैं।
कालिका के पूजन का मंत्र-
काली कालयतेसर्वब्रह्माण्डंसचराचरम्।
कल्पान्तसमयेया तांकालिकाम्पूजयाम्यहम॥
अर्थातः कल्प के अन्त में जो चर-अचर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने अंदर विलीन कर लेती हैं, उन भगवती कालिका कि मैं पूजा करता हूं।
सात वर्ष की कन्या को चण्डिका माना जाता हैं।
चण्डिका के पूजन से व्यक्ति को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती हैं।
चण्डिका के पूजन का मंत्र-
चण्डिकांचण्डरूपांचचण्ड-मुण्ड विनाशिनीम्।
तांचण्डपापहरिणींचण्डिकांपूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो चण्ड-मुण्ड का संहार करने वाली हैं तथा जिनकी कृपा से घोर पाप भी तत्काल नष्ट हो जाता है, उन भगवती चण्डिका कि मैं पूजा करता हूं।
आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी माना जाता हैं।
शाम्भवी के पूजन से व्यक्ति कि निर्धनता दूर होती हैं, वाद-विवाद में विजय प्राप्त होता हैं।
शाम्भवी के पूजन का मंत्र-
अकारणात्समुत्पत्तिर्यन्मयै:परिकीर्तिता।
यस्यास्तांसुखदांदेवींशाम्भवींपूजयाम्यहम्॥
अर्थातः वेद जिनके प्राकट्य के विषय में कारण का अभाव बतलाते हैं तथा सबको सुखी बनाना जिनका स्वाभाविक गुण है, उन भगवती शाम्भवीकी मैं पूजा करता हूं।
नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा माना जाता हैं।
दुर्गा के पूजन से व्यक्ति के दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति का दमन होता हैं। व्यक्ति के कठिन से कठिन कार्य भी सरलता से सिद्धि होते हैं।
दुर्गा के पूजन का मंत्र-
दुर्गात्त्रायतिभक्तंया सदा दुर्गार्तिनाशिनी।
दुज्र्ञेयासर्वदेवानांतांदुर्गापूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो भक्त को सदा संकट से बचाती हैं, दु:ख दूर करना जिनका स्वभाव हैं तथा देवता लोग भी जिन्हें जानने में असमर्थ हैं, उन भगवती दुर्गा की मैं पूजा करता हूं।
दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा माना जाता हैं।
सुभद्रा के पूजन से व्यक्ति को समस्त लोक में सुख प्राप्त होता हैं।
सुभद्रा के पूजन का मंत्र-
सुभद्राणि चभक्तानांकुरुतेपूजितासदा।
अभद्रनाशिनींदेवींसुभद्रांपूजयाम्यहम्॥
अर्थातः जो सुपूजित होने पर भक्तों का कल्याण करने में सदा संलग्न रहती हैं, उन अशुभ विनाशिनी भगवती सुभद्रा की मैं पूजा करता हूं।
नवरात्रकी अष्टमी अथवा नवमी के दिन कुमारिका-पूजन करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।
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