शरद पूर्णिमा
हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में बारह पूर्णिमा आती हैं। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा का अतुल्य सौंदर्य देखते ही बनता है। विद्वानो के अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्ण आकार में होने के कारण वर्ष में आने वाली सभी पूर्णिमा पर्व के समान हैं। लेकिन इन सभी पूर्णिमा में आश्विन मास कि पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आने के कारण इसे शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र का अश्विनी नक्षत्र से संयोग होता है। अश्विनी जो नक्षत्र क्रम में प्रथम नक्षत्र हैं, जिसके स्वामी अश्विनीकुमार है।
कथा के अनुशार च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनीकुमारों ने ही दिया था। यही ज्ञान आज हजारों वर्ष बाद भी हमारे पास अनमोल धरोहर के रूप में संचित है। अश्विनीकुमार आरोग्य के स्वामी हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। यही कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को ब्रह्मांड से अमृत की वर्षा होती है।
खीर का भोग
शरद पूर्णिमा की रात में गाय के दूध से बनी खीर को चंद्रमा कि चांदनी में रखकर उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण किया जाता है। पूर्णिमा की चांदनी में 'अमृत' का अंश होता है, इस लिये मान्यता यह है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी इसकी चांदनी के औषधीय महत्व का वर्णन मिलता है। रखकर दूध से बनी खीर को चांदनी के में असाध्य रोगों की दवाएं खिलाई जाती है।
कथा
एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ शरद पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती हैं। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती हैं। उसने पंतिडतो कि सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया । उसने लडके को लकडी के पट्टे पर लिटाकर ऊपर से कपडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पट्टा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया, बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली तुम मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता तब छोटी बहन बोली यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह पुनः जीवित हो गया हैं । तेरे पुण्य से ही यह अभी जीवित हुआ हैं। उसके बाद से शरद पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का प्रचलन चल निकला।
शरद पूर्णिमा (Sharad Poornima)
जवाब देंहटाएंहिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। साल 2015 में शरद पूर्णिमा 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
शरद पूर्णिमा व्रत विधि (Sharad Purnima Vrat Vidhi in Hindi)
इस पर्व को "कोजागरी पूर्णिमा" के नाम से भी जाना जाता है। नारदपुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। इस दिन वह अपने जागते हुए भक्तों को धन-वैभव का आशीष देती हैं।
इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha in Hindi)
शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में एक दंतकथा अत्यंत प्रचलित है। कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी| बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। इस दिन माता महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
शरद पूर्णिमा को फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इसका विशाल धार्मिक महत्व होता है sharad purnima 2017हिंदू धर्म में
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