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गुरुवार, अक्टूबर 07, 2010

मां के चरणों में निवास करते समस्त हैं तीर्थ

maa ke carano me nivasa karate samasta hai tirtha

मां के चरणों में निवास करते समस्त हैं तीर्थ


त्याग और नि:स्वार्थ प्रेम कि प्रति मूर्ति जन्म देने वाली मां अपनी संतान को नौ महिने गर्भ में उसका पोषण कर, असहनीय प्रसव कष्ट सहकर उसे जन्म देती हैं। मां के इस त्याग और नि:स्वार्थ प्रेम का बदला चाहकर भी कोई नहीं चुका सकता।

समस्त व्यक्ति कि प्रथन गुरु मां होती हैं। क्योकि मां से व्यक्ति को जीवन के आदर्श और संस्कार आदि ज्ञान प्राप्त होता हैं। हमारे धर्म शास्त्रो में उल्लेख मिलता हैं कि उपाध्याओं से दस गुना श्रेष्ठ आचार्य होते हैं, एवं आचार्य से सौ गुना श्रेष्ठ पिता और पिता से हजार गुना श्रेष्ठ माता होती है। क्योकि मां के शरीर में सभी देवताओं और सभी तीर्थों का वास होता है। इसी लिए विश्व कि सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति में केवल मां को भगवान के समान माना गया हैं। इस लिये मां पूज्य, स्तुति योग्य और आह्वान करने योग्य होती हैं।

महाभारत में भी उल्लेख मिलता हैं कि जब यक्ष ने युधिष्ठिर से सवाल किया कि भूमि से भी भारी कौन हैं? तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया

माता गुरुतरा भूमे:।
अर्थातः मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती हैं।


आदि शंकराचार्य का कथन हैं '

कुपुत्रो जायेत यद्यपि कुमाता न भवति।
अर्थातः पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।


भगवान श्री रामका वचन हैं।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
अर्थातः जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं।


तैत्तिरीयोपनिषद् में उल्लेख किया गया हैं।

मातृ देवो भव:


शतपथ ब्राह्मण के वचन

मातृमान पितृमानाचार्यवान् पुरुषो वेद
अर्थातः जिसके पास माता, पिता और गुरु जेसे तीन उत्तम शिक्षक हों वहीं मनुष्य सही अर्थ में मानव बनता हैं।

संसार में मातृमान वह होता है, जिसकी माता गर्भाधान से लेकर जब तक गर्भ के शेष विधि-विधान पूरे न हो जाएं, तब तक संयमीत और सुशील व्यवहार करे। क्योकि मातृ गर्भ में संस्कारित होने का सबसे बड़ा आदर्श उदाहरण महाभारत में अभिमन्यु का देखने को मिलता हैं, जिसने अपनी मां से गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने का उपाय सीख लिया था।

इसी मां कि ममता और नि:स्वार्थ प्रेम को पाने के लिये मनुष्य हि नहीं देवता भी तरसते हैं। इस लिये बार-बार अवतार लेकर अपनी लीलाएं बिखेरने के लिये पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। इस्से ज्ञात होता हैं कि मां के चरणों में ही सभी तीर्थ का पुण्य प्राप्त हो जाता है।

इस लिये बच्‍चा सबसे पहले जो बोल नीकलते हैं, वह मां शब्‍द होता हैं, एक बार में ही झटके से बच्‍चे के मुंह से मां निकल जाता है यानि मां का उच्‍चारण भी सबसे आसान। अन्य सभी सब्दो में उसे थोडी कठिनाई होती हैं जिस कारण वह उन शब्दो का उच्चराण धीरे-धीरे सिखता हैं। सबसे बडा उदाहरण हैं, जो आपने आये दिन देखा सुना और आजमाय होगा, व्यक्ति जब परेशानी में होता हैं, कष्ट झेल रहा होता हैं, या आकस्मिक संकट आने, किसी आघात से शरीर पर चोट लग जाये तो पर सबसे पेहले मां को याद करता हैं। इस लिये मां को कष्ट देने वाली संतान को दैवि आपदा, दुःख, कष्ट भोगना पडता हैं। अपने मां का निरादर न करें और उनकी सेवा अवश्य करें।

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