मातृभक्त
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (अक्टूबर-2010)
गरीब परिवार में एक पति-पत्नी व दो बच्चे थे। जब कहीं मजदूरी भी नहीं मिलती थी, तब घर में भोजन के लिए कुछ भी नहीं रह गया, तो पति से अपनी पत्नी व बच्चे का भुख से तड़पना देखा नहीं गया। वह उन्हें छोड़कर कहीं चला गया। परिवार का पेट पालने के लिये उस बेचारी स्त्री ने घर के बर्तन और कपड़े बगैरा बेचकर कुछ दिन काम चलाया। घरका सामान बेच-बेचकर जब घर खाली हो गया, तो वह दोनों बच्चों को लेकर भीख मांगने निकल पडी। उसे भीख में जो कुछ मिलता था, उसे पहले बच्चों को खिलाकर तब वह बचा हुआ खाती और न बचता तो पानी पीकर ही सो जाया करती थी।
थोड़े दिनों के बाद वह स्त्री बीमार हो गई। उसके दस वर्षीय बड़े लड़के को भीख मांगने जाना पड़ता था। किंतु वह बालक भीख में जो कुछ पाता था, उससे तीनों का पेट नहीं भरता था। माता ज्वर में बेसुध पड़ी रहती थी और छोटे बच्चे को संभालने वाला घर में और कोई न था। वह भूख के मारे इधर-उधर भटकते हुए एक दिन वह मर गया।
बड़ा लड़का जो भीख मांगकर लाता वह पहले मां को खिला देता। एक बार कई दिनों तक उसे अपने भोजन के लिए कुछ नहीं मिला। वह एक सज्जन पुरुष के घर पहुंचा, तो उन्होंने कहा- मेरे पास थोड़े सा चावल हैं। तुम यही बैठकर खा लो। लड़के ने बीमार मां का हवाला देते हुए उसके लिए दो मुट्ठी चावल की मांग की। उन सज्जन ने कहा- चावल इतना कम है कि तुम्हारा भी पेट नहीं भरेगा। इसलिए तुम्ही खा लो। तब लड़का बोला मां जब अच्छी थी तो मुझे खिलाकर स्वयं बिना खाए रह जाती थी। अब आज उसके बीमार होने पर मैं उसे बिना खिलाए कैसे खा सकता हूं। लड़के की मातृभक्ति देखकर सज्जन बहुत प्रसन्न हुए और चावल लेने घर में गए। किंतु लौटकर आने पर देखा कि लड़का भूमि पर गिरकर मृत्यु को प्राप्त हो चुका था।
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