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सोमवार, अक्टूबर 11, 2010

पंचम स्कंदमाता

नवरात्र में मां दुर्गा के स्कंदमाता रुप की आराधना,, navaratra meM maa durga ke skandmata rup ki araadhana,


पंचम स्कंदमाता


नवरात्र के पांचवें दिन मां के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं।स्कंदमाता कुमार अर्थात् कार्तिकेय कि माता होने के कारण, उन्हें स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता हैं। सिंह और मयूर स्कंदमाता के वाहन हैं। देवी स्कंदमाता कमल के आसन पर पद्मासन कि मुद्रा में विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें पद्मासन देवी के नाम से भी जाना जाता हैं। स्कंदमाता का स्वरुप चार भुजा वाला हैं। उनके दोनों हाथों में कमलदल लिए हुए हैं, उनकी दाहिनी तरफ कि ऊपर वाली भुजा में ब्रह्मस्वरूप स्कन्द्र कुमार को अपनी गोद में लिये हुए हैं। और स्कंदमाता के दाहिने तरफ कि नीचे वाली भुजा वरमुद्रामें हैं। स्कंदमाता यह स्वरुप परम कल्याणकारी मनागया हैं।

मंत्र:
सिंहासानगता नितयं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

ध्यान:-
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम। अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥ पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्। मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।। प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्। कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्। समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्। ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितांसनत्कुमारसंस्तुताम्। सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्। नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्। सुधार्मिककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्। तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्। सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्। स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्। पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुरार्चिताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

कवच:-
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा। हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥ श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा। सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥ वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता। उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥ इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी। सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥

मंत्र-ध्यान-कवच- का विधि-विधान से पूजन करने वाले व्यक्ति का विशुद्ध चक्र जाग्रत होता हैं। व्यक्ति कि समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती हैं एवं जीवन में परम सुख एवं शांति प्राप्त होती हैं।
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