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शनिवार, दिसंबर 19, 2009

हिन्दू धर्म (भाग: २)

Hindu Dharam
हिन्दू धर्म

ऋग्वेद में कई बार सप्त सिन्धु का उल्लेख मिलता है - वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे। संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं - पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास से निकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुई समुद्र मे मिलती है, दूसरा, कोई समुद्र या जलराशि।


 
ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वे सात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता (झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास), परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)।

 
भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्य भाषाओं की ध्वनि ईरानी भाषाओं की ध्वनि में बदल जाती है। इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु मे परिवर्तित हो गया (अवेस्ता : वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। मुख्य सिद्धान्त

 
हिन्दू धर्म के अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं, और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं।

फ़िर भी, हिन्दू धर्म का मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं,वह है इन सब में
  • विश्वास :
  • धर्म (वैश्विक क़ानून),
  • कर्म (और उसके फल),
  • पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र,
  • मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं),
  • और , ईश्वर।

 

 हिन्दू धर्म मे स्वर्ग और नरक को अस्थायी मानाजाता है।

 हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनो कर्म भोग सकता है, और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

 
हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं :

 
  • वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं),
  • शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं),
  • शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं)
  • और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)।
लेकिन ज्यादातर हिन्दू स्वयं को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं।

 
ब्रह्म हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)।

 
ब्रह्म ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक, और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वातीत भी है और विश्व के परे भी। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्म के दो रूप हैं : परब्रह्म और अपरब्रह्म। परब्रह्म असीम, अनन्त और रूप-शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से भी परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनत चित् और अनन्त आनन्द है। ब्रह्म की पूजा नही की जाती है, क्योंकि वो पूजा से परे और अनिर्वचनीय है। उसका ध्यान किया जाता है।

 
प्रणव ॐ (ओम्) ब्रह्मवाक्य है, जिसे हिन्दू धर्म में परम पवित्र शब्द मानते हैं।

 
हिन्दु धर्म में मानते है कि ओम की ध्वनि पूरे ब्रह्मांड मे गून्ज रही है। ध्यान की उच्चतम सीमा मे गहरे उतरने पर यह सुनाई देता है। ब्रह्म की परिकल्पना वेदान्त दर्शन का केन्द्रीय स्तम्भ है, और हिन्दू धर्म की विश्व को अनुपम देन है।

 
ईश्वर ब्रह्म और ईश्वर में क्या सम्बन्ध है, इसमें हिन्दू दर्शनों की सोच अलग अलग है।

अद्वैत वेदान्त के अनुसार जब मानव ब्रह्म को अपने मन से जानने की कोशिश करता है, तब मानव ब्रह्म ईश्वर हो जाता है, क्योंकि मानव माया नाम की एक जादुई शक्ति के वश मे रहता है।

 
क्रमशः अगल क्रम शीध्र प्रस्तुत होगा।
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