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रविवार, अप्रैल 25, 2010

यज्ञोपवीत संस्कार (भाग:3)

Yagnopavit Sanskar part:3
यज्ञोपवीत संस्कार (भाग:3)

 
 नौ धागों में नौ गुणों के प्रतीक हैं।

 
  •  अहिंसा
  • सत्य
  • अस्तेय
  • तितिक्षा
  • अपरिग्रह
  • संयम
  • आस्तिकता
  • शान्ति
  • पवित्रता।
अन्य नौ गुण बताये गये हैं।
  • हृदय से प्रेम
  • वाणी में माधुर्य
  • व्यवहार में सरलता
  • नारी मात्र में मातृत्व की भावना
  • कर्म में कला और सौन्दर्य की अभिव्यक्ति
  • सबके प्रति उदारता और सेवा भावना
  • गुरुजनों का सम्मान एवं अनुशासन
  • सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय एवं सत्संग
  • स्वच्छता, व्यवस्था और निरालस्यता का स्वभाव। 

 
यज्ञोपवीत पहनने का अर्थ है, नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को अपने कन्धों पर परम पवित्र उत्तरदायित्व के रूप में अनुभव करते रहना। अपनी गतिविधियों का सारा ढाँचा इस आदर्शवादिता के अनुरुप ही खड़ा करना। इस उत्तरदायित्व के अनुभव करते रहने की प्रेरणा का यह प्रतीक सत्र धारण किये रहने प्रत्येक हिन्दू का आवश्यक धर्म-कर्तव्य माना गया है। इस लक्ष्य से अवगत कराने के लिए समारोहपूर्वक उपनयन किया जाता है।

 

 
यज्ञोपवीत धारण करने हेतु नियम 

 
बालक जब यज्ञोपवीत के आदर्शों को समझने एवं नियमों को पालन करने योग्य हो जाय तो उसका उपनयन संस्कार किया जाना चाहिए।

  • मल-मूत्र त्यागते समय जनेऊ को कान पर चढ़ाना चाहिये।
  • गायत्री की प्रतिमा समक्ष यज्ञोपवीत की पूजा प्रतिष्ठा के लिए एक माला (108 बार) गायत्री मंत्र का नित्य जप करना चाहिये।
  • कण्ठ से बिना बाहर निकाले ही साबुन आदि से उसे धोनाते रहना चाहिये।
  • एक भी सूत टूट जाने पर उसे निकाल कर दूसरा पहनना चाहिये।
  • घर में जन्म-मरण, सूतक, हो जाने पर अथवा छ: महीने बीत जाने पर पुराना जनेऊ हटाकर नया पहनना चाहिये।
  • चाबी आदि कोई वस्तु उसमें नहीं बाँधना चाहिये।
  • बिना यज्ञोपवीत धारण कये अन्न जल ग्रहण वर्जित माना गया।


 
>> यज्ञोपवीत संस्कार भाग:१

>> यज्ञोपवीत संस्कार भाग:२

 
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