वास्तु एवं रोग
भवन के उत्तर-पश्चिम भाग(वायव्य कोण) का संबंध वायु तत्त्व के साथ होता हैं।
वायु का प्राण के साथ संबंध हैं। इस लिये भवन के वायव्य कोण के ज्यादा से ज्यादा स्थानको खुल्ला राखना चाहिये। इस कोने में भारी सामन नहिं रखना चाहिये या भारी भवन का निर्माण नहिं करना चाहिये अन्यथा श्वास से संबंधित परेशानी, वायुविकार तथा मानसिक रोग होने कि संभावना अधिक बढ़ जाती हैं।
जिस भवन के वायव्य कोण कि सतह उत्तर-पूर्व कि सतह से थोडी ऊचाई पर एवं दक्षिण-पश्चिम कि सतह से थोडी नीची हो वह भवन निवास हेतु शुभ होता हैं।
जिस भवन में उत्तर दिशा कि जगह अधिक होतो परिवार में महिला वर्ग में त्वचा संबंधी रोग एक्झिमा, एलर्जी इत्यादि होने का खतरा बढ जाता हैं।
यदि भवन के पश्चिम में जगह उत्तर से अधिक होतो पुरुष वर्ग के लिये शारीरिक कष्ट होने का खतरा बढ जाता हैं।
भवन के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) का संबंध जल तत्त्व के साथ होता हैं।
जिस भवन का ईशान कोण भारी हो तो भवन में रेहने वाले लोगो के शरीर में जल तत्व के असंतुलन के कारण विभिन्न प्रकार के रोग एवं परेशानियां उतपन्न होती हैं।
यदि भवन का ईशान कोणजितना होसके खुला एवं हलका रखा जाये उतना शुभ होता हैं।
यदि भवन में ईशान कोण में रसोई घर होतो घरके सदस्यो में पेट से संबंधित रोग एवं परिवार के सदस्यो के बिचमें तनाव होता हैं।
ईशान कोण में भूमिगत जल भंडार या घरमें आनेवाले पानी कि लाइन इस दिशा मे होतो अति उत्तम होता हैं।
यदि घरमें बीमारी घर कर गई होतो रोगी को घर के ईशान कोण कि और मुख करके दवाई का सेवन कराने से रोग जल्द थीक होजाता हैं।
यदि भवन का ईशान कोण कटा हो तो भवन में निवास करने वाले लोग रक्त-विकार एवं यौन रोग हो सकता हैं एवं व्यक्ति कि प्रजनन क्षमता कमजोर होसकती हैं।
यदि ईशान कोण से उत्तर का भाग ऊंचा होय तो परिवार में स्त्री वर्ग का स्वास्थ्य पर खराब असर होता हैं।
यदि ईशान कोण से पूर्वनुं का भाग ऊंचा होय तो परिवार में पुरुषो के स्वास्थ्य पर खराब असर होता हैं।
भवन के पूर्वी-दक्षिण (अग्नि कोण) का संबंध अग्नि तत्व के साथ होता हैं।
जिस भवन के अग्नि कोण में रसोई घरको वास्तु कि द्रष्टि से शुभ मानागया हैं।
जिस भवन के अग्नि कोण में जल भंडार या स्त्रोत हो वहा निवास करने वाले उदर रोग एवं पित्त विकार होने कि संभावना होती हैं।
भवन के दक्षिण-पूर्व दिशामे यदि दक्षिण का स्थान ज्यादा होतो परिवार के पुरुष सदस्यो में मानसिक परेशानी होती हैं।
वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन का केन्द्र स्थान(ब्रह्म स्थान) को ज्यदा महत्व हिया गया हैं। जो वास्तु में आकाश तत्त्व से संबंध रखता हैं। इस लिये इस स्थान को यथा संभव खाली रखना आवश्यक हैं जिस्से परिवार के लोगो का स्वाश्थ्य उत्तम होता हैं एवं परिवार का विकास शीघ्र होता हैं।
भवन के ब्रह्म स्थान पर किसी भी प्रकार कि अस्वच्छता होने से परिवार के सदस्यो के स्वास्थ्य पर बुरा असर देखा गया हैं।
भवन के ब्रह्म स्थान पर शौचालय, पगथियां (सीडी), गटर, सेफ्टी टेन्क आदि होने से सदस्यो में कान कि परेशानी, बदनामी, धन हानि एवं परिवार के विकास में रुकावट होते देखा गया हैं।
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