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गुरुवार, नवंबर 04, 2010

दीपक कि महिमा

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दीपक कि महिमा


           प्रकाश, तेज ऊर्जा के कुदरति स्त्रोत हैं। ऊर्जा के बिना मानव जीवन का कोई अस्तित्व नहीं हैं। समग्र ब्रह्मांड में प्रकाश ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत एक मात्र सूर्य हैं, उस के अलावा कोई और प्रमुख स्त्रोत का अस्तित्व नहीं हैं। यही कारण हैं कि आज सूर्य के तेज से ही हमारा जीवन सुचारु रुप से प्रकाशमान हैं। वायु मंडल में व्याप्त वायुकण (धूल) और बादल इत्यादि सभी में अपनी चुम्बकीय शक्ति होती हैं जिसके कारण सब एक दूसरे की ओर आकर्षित होते रहते हैं। इसी आकर्षित होने के कारण कण एक दूसरे से पास आते और दूर होते रहते हैं, जिसके बल के कारण हि ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इस्से उत्पन्न होने वाली उर्जा को हि प्रकाश कहा जाता हैं।

           प्रकाश का हमारे जीवन में बहुत महत्व हैं, इस महत्व से हर व्यक्ति भली भाति वाकिफ हैं। हमारी भारतिय संस्कृति के धार्मिक कार्यक्रम में भी अग्नि का विशेष महत्व हैं। एवं अग्नि प्रकाश का प्रतिक हैं जो यज्ञ, हवन, विवाह, संस्कार जेसे अन्य धार्मिक कर्मकांडो में बिना अग्नि के बिना संपन्न होना असंभव सा प्रतित होता हैं। इसी कारण भारतिय सभ्यताओं में अग्नि को देव कहा गया हैं।

           अग्नि को देवता मनकर उसका पूजन किया जाता हैं। क्योकि एसा माना जाता हैं, कि यदि अग्नि देव क्रोधित होजाये तो बड़े-बड़े महलों व ऊंचे-ऊंचे भवनों को धूलमें उडादे और राख बनादे।
इस लिये प्रकाश का पूजन कर उन्हें शांत रखने का प्रयास किया जाता हैं।
           
हमारे प्रमुख धर्म ग्रंथो में एक ऋग्वेद का सर्व प्रथम मंत्र ही प्रकाश से शुरू होता है।
मंत्र:
प्रकाशमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥
भावार्थ:- सर्वप्रथम आराधन किए जाने वाले, यज्ञ को प्रकाशित करने वाले, ऋतुओं के अनुसार यज्ञ सम्पादित करने वाले, देवताओं का आह्वान करने वाले तथा धन प्रदान करने वालों में सर्वश्रेष्ठ अग्नि देवता की मैं स्तुति करता हूं।
           
           अनादिकाल से मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अंधकार रुपी अज्ञानता रही हैं। इस लिये पुरातन कालसे हि अंधकार को दूर करने वाला प्रकाश मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र रहा है। क्योकि प्रकाश हमें देखने की शक्ति देता हैं। वायुमंडल में वस्तु कि सही पहचान करने के लिये प्रकाश आवश्यक है।

उपनिषद में इसी लिये अंधकार से ज्योति की ओर जाने की कामना की गई है।
असतो मा सद्गमय
तमसो मां ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय

शास्त्रो में अग्नि के तीन रूपों वर्णन किया गया हैं।
पृथ्वी पर अग्नि, अन्तरिक्ष में विद्युत और आकाश में सूर्य। प्रकाश के उद्दगम के विषय में कहा गया है कि काल के संघर्ष-मंथन से उसका जन्म हुआ। सूर्य कि अग्नि अंधकार को मिटाता है, असुरी शक्ति को डराता, प्रकाश का आह्वान करता, चिर युवा और प्राचीन पुरोहित है। ऋग्वेद के अनुशार महार्षि भृगु ऋषि ने अग्नि की खोज की।

अग्नि के लिये ऋग्वेद में कहा गया हैं।

अग्निमीळे पुरोहितं (ऋग्वेद)

ऋग्वेद
इंद्र ज्योतिः अमृतं मर्तेषु
सूर्यांश संभवो दीपः

अर्थात: सूर्य के अंश से दीप की उत्पत्ति हुई।
दीप जीवन की पवित्रता, भक्ति, अर्चना और आशीर्वाद स्वरुप माना जाता हैं।

सूर्य के अंश से उत्पन्न पृथ्वी की अग्नि को जिस पात्र में स्थापित किया गया उसे आज दीपक के रूप में हमारे घरों में पूजा जाता है ।

शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा
शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।।

अर्थात: हमे शुभ, सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीपक कि ज्योति, हमारे शत्रों कि बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं।

           पूरातन काल में दीप का पात्र स्फटिक, पाषाण या सीप का होता था। कालान्तर में मिट्टी को गढने और पकाने के आविष्कार के साथ दीप मिट्टी का बनने लगा। प्राचीन काल से धनिकों द्वारा बड़े कलात्मक दियों का प्रयोग किया जाता था, जो पत्थर, धातु, कीमती रत्नों, सोने और चांदी के होते थे। ये छोटे बड़े सभी आकारों के थे।

समय के साथ साथ दीप स्तंभ भी प्रचलन में आए।

           रामायण में उल्लेख मिलता हैं कि जब हनुमान लंका पहुँचे तो उन्हें सुनहरे दीपों को देख कर भ्रम हुआ कि कहीं वे स्वर्ग में तो नहीं आ गए। उन्हें वहां पीले और जलते हुए स्वर्णदीप दिखाई दिए।

           भारतीय शास्त्रो मे उल्लेख मिलता है, कि अग्नि का संबंध मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक होता हैं। यही कारण हैं हमारी संस्कृति में विभिन्न व्रत-त्योहार इत्यादि में दीप क महत्व हैं। दीपवली भी हमारे प्रमुख त्यौहारो में से एक है, जिस में उर्जा के प्रतिक के रुप में दीपक जलाने कि परंपरा हैं।

           हमारे शास्त्रों में दीपज्योति कि महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया हैं। शास्त्रों में दीपज्योति को पापनाशक, शत्रुओं कि वृद्धि रोकने वाली, आयु एवं आरोग्य प्रदान करने वाली हैं।

दीपो ज्योतिः परम् ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु में पापम् साध्यदीप नमोऽस्तु ते।।
शुभम् करोतु कल्याणम् आरोग्यम् सुखसम्पदम्।
शत्रुबुद्धिविनाशम् च दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते।।

• मान्यता हैं कि यदि घर में दीपक की लौ पूर्व दिशा की ओर हो, तो आयु कि वृद्धि करती हैं।
• दीपक की लौ पश्चिम दिशा की ओर हो, तो दुःख की वृद्धि करती हैं।
• दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर हो, तो स्वास्थ्य और प्रसन्नता कि वृद्धि करती हैं।
• दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर हो, तो हानि करती हैं।

यदि घर में आप दीपक जलायें तो उसे आपके घरके उत्तर अथवा पूर्व कोने में होना चाहिए। दीपज्योति के प्रभाव से पाप-ताप का हरण होता है, शत्रुबुद्धि का शमन होता है और पुण्यमय, सुखमय जीवन की वृद्धि होती है।

पुरूषोत्तम महात्त्म्य में दीपक कि ज्योति के लिये कहा गया हैं।

रूक्षैर्लक्ष्मी विनाशःस्यात श्वैतेरन्नक्षयो भवेत्
अति रक्तेषु युध्दानि मृत्युःकृष्ण शिखीषु च।।

अर्थात: कोरी शुष्क (रूखी) ज्योति लक्ष्मी का नाश, श्वेतज्योति अन्नक्षय, अति लाल ज्योति युद्ध और काली ज्योति मृत्यु की द्योतक होती हैं।
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