जब विष्णुजी ने दी लक्ष्मीजी को सजा?
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (नवम्बर-2010)
एक दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी भ्रमण करने एवं मनुष्यों को देखने के लिये पृथ्वी पर आयें। किन्तु माता लक्ष्मी को भ्रमण हेतु साथ लाने के कारण भगवान विष्णु ने एक शर्त रखी, और काहा कि तुम उत्तर दिशा कि तरफ नहीं देखोगी ।
माता लक्ष्मी ने अपनी सहमति दे दी और वे शीघ्र ही पृथ्वी पर भ्रमण के लिये निकल गये । पृथ्वी पर चारों और सुन्दरता दिख रही थी और वहाँ पर बहुत ही शान्ति थी । पृथ्वी का रमणिय द्रश्य देखकर माता लक्ष्मी को बहोत हि प्रशन्न हुई और वह भूल गयी कि भगवान विष्णु ने उनसे क्या कहा था । प्रशन्नता एवं उत्सुकता वश लक्ष्मी जी उत्तर दिशा में देखने लगी । उत्तर दिशा में उन्हों ने अत्यंत खुबसूरत फूलों का एक बगीचा देखा जहाँ से बहुत हि सुंदर खुशबू आ रही थी । माता लक्ष्मी बिना सोचे ही उस बगीचे पर उतरी और वहाँ से एक फूल तोड़ लिये । भगवान विष्णु ने जब यह द्रश्य देखा तो उन्होंने माता लक्ष्मी को अपनी भूल याद दिलाते हुवे कहा कि किसी से बिना पूछे कुछ भी नहीं लेना चाहिये ।
इतना कहते हुवे भगवान विष्णु कि आंखो से आँसू आ गये ! माता लक्ष्मी ने अपनी भूल स्वीकार कि और भगवान विष्णु से माफी माँगी । तब भगवान विष्णु बोले कि तुमने जो भूल कि हैं उसके लिये तुम्हें सजा भी भुगतनी पड़ेगी । तुम जिस फूल को उसके माली से पूछे बिना लिया हैं अब तुम उसी के घर में 3 साल के लिये वहां काम करोगी उसकी देखभाल करोगी । तभी मैं तुम्हें बैकुण्ड में वापिस बुलाऊंगा। माता लक्ष्मी एक औरत का रुप लेकर उस खेत के मालिक माधवा के पास गयी । वह एक गरीब तथा बड़े परिवार का मुखिया था । उसके साथ उसकी पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियां सब मिलकर एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे । उनके पास सम्पत्ति के नाम पर सिर्फ वही एक छोटा सा बगीचे का टुकड़ा था । वे उसी से ही अपना गुजर-बसर करता था । माता लक्ष्मी उसके घर में गयी तो माधवा ने उन्हें देखा और पूछा कि वह कौन हैं । तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं हैं मुझ पर दया करो और मुझे अपने यहाँ रहने दो मैं आपका सारा काम करुँगी । माधव एक दयालु और उदार इनसान था लेकिन वह गरीब भी था, और वह जो कमाता था उसमें तो बहुत ही मुश्किल से उसी के घर का खर्चा चलता था परन्तु फिर भी उसने सोचा कि यदि मेरे तीन कि जगह चार बेटियाँ होती तब भी तो वह यहाँ रहती यह सोचकर उसने माता लक्ष्मी को अपने यहाँ शरण दे दी और इस तरह माता लक्ष्मी तीन साल तक उसके यहाँ काम करती रही ।
जैसे ही माता लक्ष्मी उसके यहाँ आयी तो उसने एक गाय खरीद ली जिस्से उसकी कमाई भी बढ़ गयी अब तो उसने कुछ जमीन और जेवर भी खरीद लिये थे और इस तरह उसने अपने लिये एक घर और अच्छे कपड़े खरीदे । तथा अब हर किसी के लिये एक अलग से कमरा भी था । इतना सब मिलने पर माधव ने सोचा कि यह सब कुछ मुझे इसी औरत (माता लक्ष्मी) के घर में प्रवेश करने के बाद मिला हैं वही हमारे भाग्य को बदलने वाली हैं । 2.5 साल निकलने के बाद माता लक्ष्मी ने उस नये घर में प्रवेश किया और उनके साथ एक परिवार के सदस्य कि तरह रही परन्तु उन्होंने खेत पर काम करना बंद नहीं किया ।
उन्हें तो अभी अपने 6 महीने और पूरे करने थे। अब माता लक्ष्मी ने अपने 3 साल पूरे कर लिये थी। एक दिन माधव अपना काम खत्म करके बैलगाड़ी पर अपने घर लौटा तो अपने दरवाजे पर अच्छे रत्न जड़ित पोशाक पहने तथा अनमोल जेवरों से सुसज्जित एक खुबसूरत औरत को देखा ।
उसने कहा कि वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी हैं । तब माधव और उसके घर वाले आश्चर्य चकित ही रह गये कि जो स्त्री हमारे साथ रह रही थी वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी स्वयं थी । इस पर उन सभी के नेत्रों से आँसू कि धारा बहने लगी और माधवा बोला कि यह क्या माँ हमसे इतना बड़ा अपराध कैसे हो गया । हमने स्वयं माता लक्ष्मी से ही काम करवाया । माता हमें माफ कर देना । तब माधव बोला कि हे माता हम पर दया करो । हममे से कोई भी नहीं जानता था कि आप माता लक्ष्मी हैं । हे माता हमें वरदान दीजिये । हमारी रक्षा करिये ।
तब माता लक्ष्मी मुस्कुराते हुवे बोली कि हे माधव तुम किसी प्रकार कि चिन्ता मत करो तुम एक बहुत ही दयालु इनसान हो और तुमने मुझे अपने यहाँ आसरा दिया हैं उन तीन सालों कि मुझे याद हैं मैं तुम लोगों के साथ एक परिवार कि तरह रही हूँ । इसके बदले में मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि तुम्हारे पास कभी भी धन कि और खुशियों कि कमी नहीं होगी । तुम्हें वो सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो । इतना कहकर लक्ष्मी जी अपने सोने से बने हुये रथ पर सवार होकर बैकुण्ठ लोक चली गयी । माता लक्ष्मी ने कहा कि जो लोग दयालु, और सच्चे हृदय वाले होते हैं मैं हमेशा वहाँ निवास करती हूँ । हमें गरीबों कि सेवा करनी चाहिये ।
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