दीपावली से जुडी लक्ष्मी कथा
लेख साभार: गुरुत्व ज्योतिष पत्रिका (नवम्बर-2010)
भारतीय संस्कृति में दीपावली के त्योहार कि बड़ी लोक प्रिय कथा प्रचलित हैं।
कथा: एक बार कार्तिक मास की अमावस को लक्ष्मीजी पृथ्वी भ्रमण पर निकलीं। अमावस कि काली छाया के कारण पृथ्वी के चारों ओर अंधकार व्याप्त था। जिस कारण देवी लक्ष्मी रास्ता भूल गईं। लक्ष्मी जी नी निश्चय किया कि रात्रि का प्रहर वे मृत्युलोक में व्यतीत कर लेंगी और सूर्योदय के पश्चात पुनः बैकुंठधाम लौट जाएँगी, परंतु लक्ष्मी जी ने पाया कि पृथ्वी पर सभी लोग अपने-अपने घरों में द्वार बंद कर सो रहे हैं।
तभी अंधकार से भरे पृथ्वी लोक में उन्हें एक द्वार खुला दिखा जिसमें एक दीपक कि ज्योति टिमटिमा रही थी। लक्ष्मी जी उस प्रकाश कि ओर पहुंच कर वहाँ उन्होंने एक वृद्ध महिला को चरखा चलाते देखा। वृद्ध महिला से रात्रि विश्राम की अनुमति माँग कर लक्ष्मी जी बुढ़िया की कुटिया में रुकीं।
वृद्ध महिला ने लक्ष्मी जी को विश्राम के लिये बिस्तर प्रदान कर पुन: अपने कार्य में व्यस्त हो गई। चरखा चलाते-चलाते वृ्द्धा की आँख लग गई। दूसरे दिन उठने पर वृद्ध महिला ने पाया कि अतिथि महिला वहां से जा चुकी हैं लेकिन कुटिया के स्थान पर विशालमहल खड़ा था। जिसमें चारों ओर धन-धान्य, रत्न-जेवरात इत्यादि बिखरे हुए थे।
एसी मान्यता हैं कि तभी से कार्तिक अमावस (दीपावली)कि रात को दीप जलाने की प्रथा चली आरही हैं। दीपावली के रात्री काल में लोग द्वार खोलकर लक्ष्मीदेवी के आगमन कि प्रतीक्षा करने कि परंपरा चली आरही हैं।
क्योकी लोगो का तत्पर्य यह हैं कि माँ लक्ष्मी देवी जिस प्रकार उस वृद्धा पर प्रसन्न हुईं उसी प्रकार सब पर प्रसन्न हों।
कथा सार: दीपावली कि रात मात्र दीप जलाने और द्वार खुले रखने से लक्ष्मी जी घर में निवास नहीं करती! लक्ष्मी जी विश्राम करती हैं। क्योंकि देवी लक्ष्मी तो चंचल हैं। वह एक स्थान पर अस्थिर नहीं रहती। अपना आशिष देकर चलीजाती हैं। जिसके फल स्वरुप आने वाले वर्ष भव में मां लक्ष्मी के भक्त को किसी प्रकार के दुःख, दरिद्रता एवं आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पडता।
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें