Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


मंगलवार, नवंबर 02, 2010

शास्त्रोक्त विधान से दीपावली पूजन

दिवाली कि पूजा, दिपावली पूजन, diwali poojan, deepavali puja, deewali pooja, sastrokta deepawali puja, dipawali pujan, divali poojan,

शास्त्रोक्त विधान से दीपावली पूजन



हमारे धर्मशास्त्रो में कार्तिक मास में दीप दान का विशेष महत्व बताया गया है। दीपावली में दीपदान का विशेष महत्व बताया हैं।

श्रीपुष्करपुराण के अनुशार:

तुलायाम् तिलतैलेन सायंकाले समागते।
आकाशदीपम् यो दद्यान्मासमेकम् हरिम् प्रति।
महतीम् श्रियमाप्नोति रूपसौभाग्यसम्पदम्।।
अर्थात: जो व्यक्ति कार्तिक मास में संध्या समय भगवान श्री हरि(विष्णु) के नाम से तिल के तेल का दीप जलाता हैं, उसे अतुल लक्ष्मी, रूप, सौभाग्य और संपत्ति कि प्राप्ति होती हैं।

देवर्षि नारदजी के अनुसार दीपावली पर्व द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा तक 5 दिन मनाना चाहिए। दीपावली पर्व प्रत्येक दिन अलग-अलग प्रकार कि पूजा का विधान हैं।

गोवत्स द्वादशी
कार्तिक मास कि द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के दिन दूध देने वाली गाय को उसके बछड़े सहित स्नान कराकर वस्त्र ओढ़ा कर गले में पुष्पमाला पहनाना, उसके सींग मँढ़ाना, चंदन का तिलक करना तथा ताँबे के पात्र में सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, तिल और जल का मिश्रण कर निम्न मंत्र से गौ के चरणों का प्रक्षालन करना चाहिए।

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्यं नमो नमः।।
अर्थात: समुद्र-मंथन के समय क्षीर सागर से उत्पन्न देवताओं तथा दानवों द्वारा नमस्कार कि गई सर्व देवस्वरूपिणी माता। आपको बार-बार नमस्कार हैं। आप मेरे द्वारा दिये हुए इस अर्घ्य को स्वीकार करो।

इस दिन पूजन के बाद गाय को उड़द के बड़े खिला कर प्रार्थना करने का विधान हैं।

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस।।
ततः सर्वमये देवि सर्वदेवैरलङ्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी।।
अर्थात: हे जगदम्बे, हे स्वर्ग वासिनी देवी, हे सर्व देवमयी, मेरे द्वारा अर्पित इस अन्न को ग्रहण करो। हे समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत माता नंदिनी मेरा मनोरथ पूर्ण करो।
इसके बाद रात्र के समय इष्ट, ब्राह्मण, गौ, घर के वृद्धजनों कि आरती उतारने का विधान हैं।

त्रयोदशी (धनतेरस)
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस के रुप में मनाया जाता हैं। शास्त्रो में उल्लेख मिलता हैं कि भगवान धन्वंतरी ने समुद्र-मंथन के दौरान प्रकट होकर दुःखी जनों के रोगनिवारणार्थ आयुर्वेद का प्राकट्य किया था।

धनतेरस के दिन संध्या के समय घर और आंगन में हाथ में जलता हुआ दीप लेकर निचे दिये मंत्र से भगवान यमराज कि प्रसन्नता हेतु इस मंत्र के साथ दीपदान करने का विधान हैं।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम।।
अर्थात: त्रयोदशी के दिन दीपदान से पाश और दंडधारी मृत्यु तथा काल के अधिपति देव भगवान यम, देवी श्यामासहित मुझ पर प्रसन्न हों।

नरक चतुर्दशी
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रुप में मनाया जाता हैं। इस दिन चतुर्मुखी दीप का दान करने का विधान हैं। मान्यता हैं, दीप दान से नरक भय से मुक्ति मिलती हैं! नरक चतुर्दशी कि रात को एक चार मुख (चार बत्ती) वाला दीप जलाकर निचे दिये मंत्र से दीपदान करने का विधान हैं।

दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये।।
आज चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता कि प्रसन्नता के लिए एवं समस्त पापों के विनाश के लिए मैं चार मुख वाला चौमुखा दीप अर्पित करता हूँ।

दीपावली
कार्तिक अमावस्या को दीपावली के रुप में मनाया जाता हैं। इस दिन प्रातः उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर जप-तप करने से अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक लाभ प्राप्त होता हैं। दीपावली के दिन पहले से ही स्वच्छ किये गृह को सुसज्जित कर भगवान नारायण के साथ मां लक्ष्मी कि मूर्ति या चित्र कि स्थापना कर उनका विधिवत पूजन करने का विधान हैं।

प्रतिपदा
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट दिवस के रुप में मनाया जाता हैं। इस दिन गाय को सजाकर, उनकी पूजा करके निचे दिये मंत्र उच्चारण करने का विधान हैं।

लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
अर्थात: धेनुरूप में स्थित जो लोकपालों कि साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गाय माता मेरे पापों का नाश करे।
इससे जुडे अन्य लेख पढें (Read Related Article)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें