हनुमान जयंती 18 अप्रैल 2011 (Hanuman Jayanti puja, pooja 18-April-2011)
सरल विधि-विधान से हनुमानजी की पूजा
इस कलयुग में सर्वाधिक देवता के रुप में श्री रामभक्त हनुमानजी की ही पूजा की जाती हैं क्योंकि हनुमानजी को कलयुग का जीवंत अर्थात साक्षात देवता माना गया हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी का जन्म चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस लिये प्रतिवर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा का पर्व हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2011 में हनुमान जयंती 18 अप्रैल, सोमवार को हैं।
वैसे तो हनुमानजी की पूजा हेतु अनेको विधि-विधान प्रचलन में हैं पर यहा साधारण व्यक्ति जो संपूर्ण विधि-विधान से हनुमानजी का पूजन नहीं कर सकते वह व्यक्ति यदि इस विधि-विधान से पूजन करे तो उन्हें भी पूर्ण फल प्राप्त हो सकता हैं।
श्रीहनुमान पूजन विधि
हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। हनुमानजी की छोटी प्रतिमा अथवा चित्र स्थापित करें।
इसके पश्चात हाथ में अक्षत (अर्थात बिना टूटे चावल) एवं फूल लेकर इस मंत्र से हनुमानजी का
ध्यान:
अतुलितबलधामम् हेमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुम् ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानम् वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तम् वातजातम् नमामि॥
ॐ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि॥
इसके पश्चयात चावल और फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
आवाह्न:
हाथ में फूल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें।
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशम् जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठम् सुग्रीवप्रमुखार्चितम्॥
विन्नासयन्तम् नादेन राक्षसान् मारुतिम् भजेत्॥
ॐ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
इसके पश्चयात फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दें।
आसन:
इस मंत्र से हनुमानजी का आसन अर्पित करें। आसन हेतु कमल अथवा गुलाब का फूल अर्पित करें।
तप्तकांचनवर्णाभम् मुक्तामणिविराजितम्।
अमलम् कमलम् दिव्यमासनम् प्रतिगृह्यताम्॥
आचमनी:
इसके पश्चयात इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सम्मुख भूमि पर अथवा किसी बर्तन में तीन बार जल छोड़ें।
ॐ हनुमते नम:, पाद्यम् समर्पयामि॥
अध्र्यम् समर्पयामि। आचमनीयम् समर्पयामि॥
स्नान:
इसके पश्चयात हनुमानजी की मूर्ति को गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान करवाएं तत्पश्चात पंचामृत (घी, शहद, शक्कर, दूध व दही ) से स्नान करवाएं। पुन: एक बार शुद्ध जल से स्नान करवाएं।
वस्त्र:
इसके पश्चयात अब इस मंत्र से हनुमानजी को वस्त्र अर्पित करें व वस्त्र के निमित्त मौली भी चढ़ाएं-
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणम् परम्।
देहालकरणम् वस्त्रमत: शांति प्रयच्छ मे॥
ॐ हनुमते नम:, वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि॥
पुष्प:
इसके पश्चयात हनुमानजी को अष्ट गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें।
धुप-दिप:
इसके पश्चयात इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-
साज्यम् च वर्तिसंयुक्तम् वह्निना योजितम् मया।
दीपम् गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥
भक्त्या दीपम् प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।
त्राहि माम् निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते॥
ॐ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि॥
नैवेद्य (प्रसाद):
इसके पश्चयात केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते पर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें तत्पश्चात ऋतुफल इत्यादि अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा, बुंदी अथवा बेसन के लडडू या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।)
इसके पश्चयात मुखशुद्धि हेतु लौंग-इलाइचीयुक्त पान चढ़ाएं।
दक्षिणा:
पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए इस मंत्र को बोलते हुए हनुमानजी को दक्षिणा अर्पित करें-
ॐ हिरण्यगर्भगर्भस्थम् देवबीजम् विभावसों:।
अनन्तपुण्यफलदमत: शांति प्रयच्छ मे॥
ॐ हनुमते नम:, पूजा साफल्यार्थं द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि॥
आरति:
इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें।
इस प्रकार के पूजन करने से भी हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं।
इस विधि-विधान से किये गये पूजन से भी भक्तगण हनुमाजी की पूर्ण कृपा प्रप्त कर अपनी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। इस में लेस मात्र भी संसय नहीं हैं।
साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
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