Search

Shop Our products Online @

www.gurutvakaryalay.com

www.gurutvakaryalay.in


मंगलवार, अप्रैल 12, 2011

जब श्रीराम ने किय विजया एकादशी व्रत?

जब श्रीराम ने किय विजया एकादशी व्रत?

एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा हे प्रभु फाल्गुन (गुजरात-महाराष्ट्र में माघ) के कृष्णपक्ष को किस नाम की एकादशी होती हैं और उसका व्रत करने की विधि क्या हैं? कृपा करके बताइये ।
फाल्गुन के कृष्णपक्ष की एकादशी को ‘विजया एकादशी’ के नाम से जाना जाता हैं।

भगवान श्रीकृष्ण पुनः बोले: युधिष्ठिर ! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में नारदजी को जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो :

ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक हैं । यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं ।

त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था ।

उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा : ‘सुमित्रानन्दन ! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है ? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है । मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके ।

लक्ष्मणजी बोले : हे प्रभु ! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं । आपसे क्या छिपा हैं? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं । आप उन विद्वान मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये ।

श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया ।
महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा ।

श्रीरामचन्द्रजी बोले : ब्रह्मन् ! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ ।
मुने ! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये ।

बकदाल्भय मुनि ने कहा : हे श्रीरामजी ! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी। निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे । राजन् ! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये :

एकादशी के एक दिन पूर्व दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें । उस कलश के ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें । फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें । कलश को पुन: स्थापित करें । माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें ।

कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें । गन्ध, धूप, दीप और भाँति-भाँति के नैवेघ से भगवान नारायण का पूजन करें । कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें । अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें ।

फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें । कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए । श्रीराम ! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये । इससे आपकी विजय होगी ।

ब्रह्माजी कहते हैं : नारद ! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया । उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए । उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया । बेटा ! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता हैं।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए । इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता हैं।
इससे जुडे अन्य लेख पढें (Read Related Article)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें