प्राणेश्वर श्रीकृष्ण मंत्र
मंत्र:-
"ॐ ऐं श्रीं क्लीं प्राण वल्लभाय सौः सौभाग्यदाय श्रीकृष्णाय स्वाहा।"
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीप्राणेश्वर श्रीकृष्ण मंन्त्रस्य भगवान् श्रीवेदव्यास ऋषिः,
गायत्री छंदः-, श्रीकृष्ण-परमात्मा देवता, क्लीं बीजं, श्रीं शक्तिः, ऐं कीलकं, ॐ व्यापकः, मम समस्त-क्लेश-परिहार्थं, चतुर्वर्ग-प्राप्तये, सौभाग्य वृद्धयर्थं च जपे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यासः- श्रीवेदव्यास ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छंदसे नमः मुखे, श्रीकृष्ण परमात्मा देवतायै नमः हृदि, क्लीं बीजाय नमः गुह्ये, श्रीं शक्तये नमः नाभौ, ऐं कीलकाय नमः पादयो, ॐ व्यापकाय नमः सर्वाङ्गे, मम समस्त क्लेश परिहार्थं, चतुर्वर्ग प्राप्तये, सौभाग्य वृद्धयर्थं च जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।
कर-न्यासः- ॐ ऐं श्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः प्राणवल्लभाय तर्जनीभ्यां स्वाहा, सौः मध्यमाभ्यां वषट्, सौभाग्यदाय अनामिकाभ्यां हुं श्रीकृष्णाय कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्, स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।
अंग-न्यासः- ॐ ऐं श्रीं क्लीं हृदयाय नमः, प्राण वल्लभाय शिरसे स्वाहा, सौः शिखायै वषट्, सौभाग्यदाय शिखायै कवचाय हुं, श्रीकृष्णाय नेत्र-त्रयाय वौषट्, स्वाहा अस्त्राय फट्।
ध्यानः- "कृष्णं जगन्मपहन-रुप-वर्णं, विलोक्य लज्जाऽऽकुलितां स्मराढ्याम्।
मधूक-माला-युत-कृष्ण-देहं, विलोक्य चालिंग्य हरिं स्मरन्तीम्।।"
भावार्थ: संसार को मुग्ध करने वाले भगवान् कृष्ण के रुप-रंग को देखकर प्रेम पूर्ण होकर गोपियाँ लज्जापूर्वक व्याकुल होती हैं और मन-ही-मन हरि को स्मरण करती हुई भगवान् कृष्ण की मधूक-पुष्पों की माला से विभुषित देह का आलिंगन करती हैं।
इस मंत्र का विधि-विधान से १,००,००० जाप करने का विधान हैं।
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