संकष्टहर चतुर्थी व्रत का प्रारंभ कब हुवा
संकष्टहर चतुदर्शी कथाः भारद्वाज मुनि और पृथ्वी के पुत्र मंगल की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माघ मास के कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को गणपति ने उनको दर्शन दिये थे।
गजानन के वरदान के फलस्वरूप मंगल कुमार को इस दिन मंगल ग्रह के रूप में सौर मण्डल में स्थान प्राप्त हुवाथा। मंगल कुमार को गजानन से यह भी वरदान मिला कि माघ कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी जिसे संकष्टहर चतुर्थी के नाम से जाना जाता हैं उस दिन जो भी व्यक्ति गणपतिजी का व्रत रखेगा उसके सभी प्रकार के कष्ट एवं विघ्न समाप्त हो जाएंगे।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शंकर ने गणपतिजी से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्रमा मेरे सिर से उतरकर गणेश के सिर पर शोभायमान होगा। इस दिन गणेश जी की उपासना और व्रत त्रि-ताप (तीनो प्रकार के ताप) का हरण करने वाला होगा। इस तिथि को जो व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से युक्त होकर विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करेगा उसे मनोवांछित फल कि प्राप्ति होगी।
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