गणेश वाहन मूषक केसे बना
समेरू पर्वत पर सौमरि ऋषि का आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवान तथा पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषिवर लकड़ी लेने के लिए वन में चले गए। उनके जाने के पश्चयात मनोमयी गृहकार्य में व्यस्त हो गईं। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहां आया। जब कौंच ने लावव्यमयी मनोमयी को देखा, तो उसके भीतर काम जागृत होगया एवं वह व्याकुल हो गया। कौंच ने मनोमयी का हाथ पकड़ लिया। रोती व कांपती हुई मनोमयी उससे दया की भीख मांगने लगी। उसी समय वहा सौभरि ऋषि आ गए।
उन्हें गंधर्व को श्राप देते हुए कहा, तुमने चोर की भांति मेरी सहधर्मिनी का हाथ पकड़ा हैं, इस कारण तुम अबसे मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरोगे।’
ऋषि का श्राप सुनकर गंधर्व ने ऋषि से प्रार्थना की- हे ऋषिवर, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया। मुझे क्षमा कर दें।
ऋषि बोले: कौंच! मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा। तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहां गणपति देव गजरूप में प्रकट होंगे। तब तुम उनका वाहन बन जाओगे। इसके पश्चयात तुम्हारा कल्याण होगा तथा देवगण भी तुम्हारा सम्मान करेंगे।’
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