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गुरुवार, दिसंबर 02, 2010

प्रदोष व्रत कि कथा

Pradosh vrat ki katha

प्रदोष व्रत कि कथा

प्रदोष व्रत का महात्म्य वेदों के ज्ञाता सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी बोले कलियुग में जब मनुष्य धर्म मार्ग से हटकर अधर्म के मार्ग पर लचेगा, भूलोक में हर तरफ अधर्म और अनचार का चलन होगा। मनुष्य अपने मूल कर्तव्य से विमुख हो कर अनुचितकर्म, नीच कर्म इत्यादी कृत्यो में संलग्न होगा उस यह समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव कृपा का पात्र बनायेगा और नर्कगति से मुक्त होकर मनुष्य स्वर्ग लोक को प्राप्त होगा।

सूत जी सौनकादि ऋषियों बोले कि प्रदोष व्रत के पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के पाप और कष्ट नष्ट हो जायेगे। प्रदोष व्रत अति कल्याणकारी हैं, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी।

अलग-अलग दिन के प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ को विस्तार वताते हुवे सूत जी बोले
प्रदोष व्रत से हर प्रकार के दोष मिटाने वाला व्रत हैं। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता हैं। जो इस प्रकार हैं।
  • रविवार का प्रदोष व्रत अर्थात रवि प्रदोष व्रत करने से आरोग्य कि प्राप्ति होती हैं।
  • सोमवार का प्रदोष व्रत अर्थात सोम प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति कि मनोकामना पूर्ण होती हैं।
  • मंगलवार का प्रदोष व्रत अर्थात भोम प्रदोष व्रत करने से रोग दूर होते हैं।
  • बुधवार का प्रदोष व्रत अर्थात बुध प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति कि कामना सिद्ध होती है।
  • गुरुवार का प्रदोष व्रत अर्थात गुरु प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति शत्रु विजयी होता हैं।
  • शुक्रवार का प्रदोष व्रत अर्थात शुक्र प्रदोष व्रत करने से सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।
  • शनिवार का प्रदोष व्रत अर्थात शनि प्रदोष व्रत करने से संतान(पुत्र) कि प्राप्ति होती हैं।
 सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को बताया कि प्रदोष व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया हैं।

प्रदोष व्रत विधान बाताते हुवे सूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात 2 घण्टे एवं 24 मिनट रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता हैं। इस व्रत में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।




>> प्रदोष व्रत का महत्व
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