रत्न एवं रंगों द्वारा रोग निवारण भाग:-२
हमारे आस पास के माहोल मे इन रंगों के होने से ही हम अपने अंगों द्वारा स्पर्श, सूंघने, स्वाद, दृष्टि और आवाज का आभास प्राप्त करते हैं। इसी वजह से हम नाक से केवल सूंघ सकते हैं, देख नहीं सकते या स्वाद नहीं ले सकते। ऐसा इसलिए होता हैं क्योकि खुशबू और बदबू को केवल नाक ग्रहन कर स्कती हैं क्योकि वह हरे रंग से प्रभावित हैं एवं वह केवल हरे रंग को ही ग्रहण करती हैं, बाकी को नहीं कर सकती। इसी लिये हरे रंग को खुशबू और बदबू जेसी सूंघने कि शक्ति के साथ में संबंध होता हैं।
इसी प्रकार सही रोग का अनुसंधान कर सही रंगोका चुनाव कर व्यक्ति निश्चित लाभा उठा सकते हैं इस मे कोइ दो राइ नहीं हो सकती।
मनुष्य के शरीर मे उत्पन्न होने वाले त्रिदोष भी इसी प्रकार सात रंगों के कारण पैदा होते हैं। आयुर्वेद में वायु दोष वायु तत्व नीले और जामुनी रंग से उतपन्न होती हैं। पित्त अग्नि तत्व के लाल रंग से उतपन्न होता हैं। कफ जल तत्व के केसरी या नारंगी से उतपन्न होता हैं। पृथ्वी तत्व हरे रंग से उतपन्न होता हैं।
पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला हरा रंग बाकि सब रंगो में सबसे ठंडा होता है। इसी लिए हमे किसी पेड़ या हरे रंग छपरे के नीचे होने से हमे कम गरमी लगती हैं। शायद इसी अनुसंधान के से आजकल प्लस्टिक के हरें रंगके छपरे या प्लास्टिक प्लेट (ग्रीन इफेक्ट) वाली चद्दर कि बिक्री जोरो पर हैं।
इस लिये मानव शरीर को गरम-ठंडा रख कर और सही रंगों की पेहचान कर मानव शरीर में प्रवाहित कर दिया जाये तो व्यक्ति सदैव निरोग रेह सकता हैं। क्योकि जन शरीर में गरमी एवं ठंडी का संतुलन खराब होजाता हैं तभी शरीरमे त्रिदोष उत्पन्न होते हैं जिसे हम विस्तान में वायु, पित्त और कफ के नाम से जानते हैं। वायु, पित्त और कफ कि उत्पत्ति से हर छोटी बडी बिमारी उत्पन्न होना शुरु होजाती हैं चाहे वह मामिली शर्दी खासीं होया बडे से बडा कैंसर इत्यादि हो।
हमारे शरीर में जब गर्मी या ठंडी की अधिकता या कमी हो जाती है तो विपरीत रंगो या रत्नो के माध्यमों द्वारा रंगों के संतुलन से इसे ठीक किया जाता हैं।
क्योकि रंग हमें प्राप्त होते हैं रत्नों से। हर एक रत्न में रोग ठीक करने की क्षमता होती है। शरीर में जब रोग पैदा होते हैं तो वह रंग को लेकर और यह कमी पूरी करते हैं रत्न। सदियों से आयुर्वेद में रत्नों का उपयोग भस्म के रूप में किया जाता रहा हैं ज्योतिष में रोगों को ग्रहो से जोड कर उसे शांत करने हेतु रत्न धारण कर प्रयोग किया जाता हैं। इसी लिये यह सारी क्रियाए महज रंगों का संतुलन शरीर में करने से ही संपन्न होती है।
ज्यादातर लोगो को गरमी में काला कपड़ा पहनने से अधिक गरमी महसूस होती हैं और सफेद कपड़ा पहनने से ठंडक महसूस होती हैं आपने भी अपने जीवन में कभी ना कभी यह जरुर महसुश किया होगा कि किसी रंग विशेष के कपडे या अन्य सामग्री से आपको लाभा हो रहा हैं या नुक्शान हो रहा हैं।
किसी विशेष रंग के कपडे पहनेते हि आपको ज्यादा गुस्सा आजाता हैं तो कभी किसी रंग के कपडे पहने होने पर गुस्से बहोत कम मात्रा में या नहीं के बराबर आता हैं यह प्रभाव तो आपने सहज में ही महसूस किया होगा।। यह सब खेल रंगो कि माय का हैं।
नोट:-
नोट:-
- उपरोक्त सभी जानकारी हमारे निजी एवं हमारे द्वारा किये गये प्रयोगो एवं अनुशंधान के आधार पर दिगई हैं।
- कृप्या किसी भी प्रकार के प्रयोग या रंग या रत्न का चुनाव करने से पूर्व विशेषज्ञ कि सलाह अवश्य ले।
- यदि कोइ व्यक्ति विशेषज्ञ कि सलाह नही लेकर उपरोक्त जानकारी के प्रयोग करता हैं तो उसके लभा या हानी उसकी स्वयं कि जिन्मेदारी होगी। इस्से के लिये कार्यालय के सदस्य या संस्थपक जिन्मेदार नहीं होंगे।
- हम उपयोक्त लाभ का दावा नहीं कर रहे यह महज एक जानकारी प्रदान करेने हेतु इस ब्लोग पर उपलब्ध कराइ हैं।
- रंगोका प्रभाव निश्चित हैं इसमे कोइ दो राय नहीं किन्तु रत्न एवं रंगो का चुनाव अन्य उसकि गुणवत्ता एवं सफाई पर निर्भर हैं अपितु विशेषज्ञ कि सलाह अवश्य ले धन्यवाद।
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