वास्तु सिद्धांत (भाग: १)
आज भौतिकता की दौड में भवनों की बनावट को सुंदर व भव्य बनाने की जरूर हो गई है, इस भव्य एवं सुंदर भवनो के निर्माण के चलते व्यक्ति को वास्तु का खयाल नही रहता।
लेकिन कोन्ट्राक्टर या आर्किटेक्ट के बनाये हुवे प्लान पर मकानों को सुंदरता प्रदान करने हेतु भवन को अनियमित आकार को महत्व देने लगे हैं। इन सब कारण मकान बनाते समय जाने-अनजाने वास्तु सिद्धांतों की अवहेलना हो जाती हैं। इस्से वास्तु दोष लगता हैं।
वास्तु दोष के कारण घर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा से घर में असंतुलन की स्थिति पैदा होती रेहती है। इस कारण वहां रहने वालों के शारीरिक व मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
वास्तु सिद्धान्त में सभी दिशा अपना अलग प्रभाव रखती हैं, इस लिये दिशाओ के अनुरुप भवन निर्माण करने से अत्याधिक सुफल प्राप्त होते देखे गये हैं। प्राकृतिक उर्जा का प्रमुख एवं अद्भुत स्तोत्र सूर्य हैं, वास्तु के अनुरुप भवन बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा जात हैं।
सूर्य से प्राप्त सकारात्मक ऊर्जा के स्त्रोत का सर्व श्रेष्ठ उपयोग करने में वास्तुशास्त्र हमारे लिये विशेष मार्गदर्शक हैं।
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