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शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

वास्तु सिद्धांत (भाग: ३)

Vastu Sidhant (Part: 3) (Bhaga: 3)

वास्तु सिद्धांत (भाग: ३)

वास्तुशास्त्रके नियम केवल भवन या घर के भीतर हीं लागू होते हैं। ईंट, पत्थर आदि से बानी दीवार के भीतर ही लागू होते हैं । तूटे-फूटे भवन या कच्चे घर जहा से वायु का सहजता से आवा-गमन होता हैं, एसे घरमें या भवन में वास्तुशास्त्रके कोई नियम लागू नहीं होते हैं।

वास्तु शास्त्र में दिशा बडा महत्त्व हैं। सूर्य को देख कर दिशा का अंदाजा लगान वास्तुशास्त्र में थिक नहीं होता क्योकी सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन में दिशा परिवर्तन होने पर उत्तर और दक्षिण तो वही रहते हैं, लेकिन पूर्व और पश्चिम की दिशा में अन्तर पड़ जाता हैं । इस लिये सही दिशाका चुनाव केवल दिशासूचक यंत्र ( कम्पास ) के द्वारा ही करना उचित होता हैं।
दिशासूचक यंत्र 360 डिग्री रहती है,

जिससे चार मुख्य दिशाए एवं चार कोण (विदिशाए) अर्थात (ईशान, अग्निय, नैऋत्य वायव्य) को मिलाकर आठों दिशाओं का सहीं अंदाजा लगाया जासकता हैं। क्योकि कम्पास से देखकर दिशा निर्धारण मे प्रत्येक दिशा एवं प्रयेक कोण कि 45 डिग्री होति हैं, जिस्से स्ठिक दिशा निर्णय में सहायक होता हैं।

दिशा और उसके  देवता एवं ग्रह

पूर्व दिशा:
देवता: इंद्र
ग्रह: सूर्य

पश्चिम दिशा:
देवता: वरुण
ग्रह: शनि

दक्षिण दिशा:
देवता: यम
ग्रह: मंगल

उत्तर दिशा:
देवता: कुबेर
ग्रह: बुध

आग्नेय कोण:
देवता: अग्निदेव
ग्रह: शुक्र

नैऋत्य कोण:
देवता: राक्षस
ग्रह: राहु-केतु

वायव्य कोण:
देवता: वायुदेव
ग्रह: चंद्र

ईशान कोण:
देवता: शंकर
ग्रह: बृहस्पति
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