शयन और वास्तु सिद्धांत
सर्वदा पूर्व या दक्षिणकी तरफ सिर करके सोना चाहिये आयु की वृद्धि होती हैं, उत्तर या पश्चिमकी तरफ सिर करके सोने से आयु क्षीण होती हैं तथा शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।नोत्तराभिमुखः सुप्यात् पश्चिमाभिमुखो न च ॥
(लघुव्यास स्मृति २ । ८८)
उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन् ॥
स्वप्रादायुःक्षयम् याति ब्रह्महा पुरुषो भवेत् ।
न कुर्वीत ततः स्वप्रं शस्तम् च पूर्वदक्षिणम् ॥
( पदम पुरण, सृष्टि ५१। १२५ - १२६ )
पूर्व की तरफ सिर करके सोनेसे व्यक्ति को विद्या प्राप्त होती हैं ।
दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयुकी वृद्धि होती हैं ।
पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता होती हैं ।
उत्तर की तरफ सिर करके सोनेसे धन, यश, आयु की हानि तथा मृत्यु प्राप्त होती हैं,
अर्थात् आयु क्षीण हो जाती हैं।
प्राकशिरः शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणो ।
पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे ॥
( आचारमयूखः विश्वकर्मप्रकाश )
शास्त्रमें उल्लेख हैं कि अपने घरमें पुर्व की तरफ सिर करके, ससुरालमें दक्षिण की तरफ सिर करके और परदेश(विदेश)में पश्चिम की तरफ सिर करके सोये, परंतु उत्तर की तरफ सिर करके कभी न सोये -
स्वगेहे प्राक्छिराः सुप्याच्छ्वशुरे दक्षिणाशिराः ।
प्रत्यक्छिराः प्रवासे तु नोदक्सुप्यात्कदाचन ॥
( आचारमयूख; विश्वकर्मप्रकाश १० । ४५ )
भारतीय संस्कृति में एसी मान्य ता हैं, की जिस घर मे निवास करते हो उस घर के मुख्य द्वार की और सिर या पैर कर के शयन करने से अशुभ प्रभाव प्राप्त होता हैं। क्योकि मरणासत्र व्यक्तिका सिर मुख्य द्वार की तरफ रखा जात हैं।
धन - सम्पत्ति इच्छा रखने वाले वाले व्यक्ति को अन्न, गौ, गुरु, अग्नि और देवता के शयन स्थान के ऊपर नहीं सोना चाहिये ।
अर्थांत: अन्न रखने वाले भण्डार गृह, गौ-शाला, गुरु के शयन स्थान, पाकशाला(रसोई गृह) और मंदिर के ऊपर शयन या शयन कक्ष नहीं बनाना चाहिये ।
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