आधि-व्यघि उपाधि नाशक महामृत्युन्जय मंत्र, सर्व रोग नाशक महा मृत्युन्जय मंत्र, सर्व रोग निवारण महा मृत्युन्जय मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र के विधि विधान के साथ में जाप करने से अकाल मृत्यु तो टलती ही हैं, रोग, शोक, भय इत्यादि का नाश होकर व्यक्ति को स्वस्थ आरोग्यता की प्राप्ति होती हैं।
यदि स्नान करते समय शरीर पर पानी डालते समय महामृत्युन्जय मंत्र का जप करने से त्वचा सम्बन्धित समस्याए दूर होकर स्वास्थ्य लाभ होता हैं।
यदि किसी भी प्रकार के अरिष्ट की आशंका हो, तो उसके निवारण एवं शान्ति के लिये शास्त्रों में सम्पूर्ण विधि-विधान से महामृत्युंजय मंत्र के जप करने का उल्लेख किया गया हैं। जिस्से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्ति का वरदान देने वाले देवो के देव महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्त के समस्त रोगो का हरण कर व्यक्ति को रोगमुक्त कर उसे दीर्घायु प्रदान करते हैं।
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है। महामृत्यंजय मंत्र की महिमा का वर्णन शिव पुराण, काशीखंड और महापुराण में किया गया हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मृत्युंजय मंत्र का उल्लेख है। मृत्यु को जीत लेने के कारण ही इस मंत्र को मृत्युंजय कहा जाता है।
महत्व:
मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात् तस्मान्मृत्युंजय: स्मृत: या मृत्युंजयति इति मृत्युंजय,
अर्थात जो मृत्यु को जीत ले, उसे ही मृत्युंजय कहा जाता है।
मानव शरीर में जो भी रोग उत्पन्न होते हैं उसके बारे में शास्त्रो में जो उल्लेख हैं वह इस प्रकार हैं
"शरीरं व्याधिमंदिरम्" ब्रह्मांड के पंच तत्वों से उत्पन्न शरीर में समय के अंतराल पर नाना प्रकार की आधि-व्यघि उपाधियां उत्पन्न होती रहती हैं। इस लिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए आहार-विहार, खान-पान और नियमित दिनचर्या निश्चित समय पर करना पडता हैं। यदि इन सब को निश्चित समय अवधि पर करते रहने के बाद भी यदि कोई रोग या व्याधि हो जाए एवं वह रोग इलाज कराने के बाद भी यदि ठीक नहीं हो एवं सभी जगा से निराशा हाथ लगरही हो तो एसे अरिष्ट की निवृत्ति या शांति के लिए महामृत्युज्य मंत्र जप का प्रयोग अवश्य करें।
शास्त्रों में मृत्यु भयको विपत्ति या संकट माना गया हैं, एवं शास्रो के अनुशार विपत्ति या मृत्य के निवारण के देवता शिव हैं। एवं ज्योतिषशास्त्र के अनुशार दुख, विपत्ति या मृत्य के प्रदाता एवं निवारण के देवता शनिदेव हैं, क्योकि शनि व्यक्ति के कर्मो के अनुरुप व्यक्ति को फल प्रदान करते हैं। शास्त्रो के अनुशार मार्कण्डेय ऋषि का जीवन अत्यल्प था, परंतु महामृत्युंजय मंत्र जप से शिव कृपा प्राप्त कर उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त हुवा।
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
मंत्र उच्चारण विचार :
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द का उच्चारण स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि स्पष्ट शब्द उच्चारण मे ही मंत्र है। इस मंत्र में उल्लेखित प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण बीज मंत्र का अर्थ लिए हुए है।
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